गुजरात हाई कोर्ट ने मंगलवार को सूचना के अधिकार कानून (RTI) के अनुसार राज्य सूचना आयोग के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें हाई कोर्ट प्रशासन से तबादलों, शिकायतों पर कार्रवाई और कुछ न्यायिक अधिकारियों को बर्खास्त करने के आधार के बारे में जानकारी मांगी गई थी।
अदालत के वकील हेमांग शाह की इस दलील से सहमत होने के बाद कि आयोग अधिनियम की धारा 8(1)(जे) द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के आलोक में हाईकोर्ट प्रशासन को तीसरे पक्ष से संबंधित जानकारी देने का निर्देश नहीं दे सकता था, जस्टिस बीरेन वैष्णव ने गुजरात सूचना आयोग (जीआईसी) के आदेश को रद्द कर दिया।
उन्होंने आवेदक जज (applicant judge) परेशकुमार गोदीगजबर से अन्य जजों के बारे में जानकारी वापस लेने के लोक सूचना अधिकारी (public information officer) के फैसले का भी बचाव किया। उन्होंने आगे कहा कि कानून ऐसे किसी भी व्यक्तिगत डेटा के खुलासे को रोकता है, जो किसी भी गतिविधि या जनता के हित से संबंधित नहीं है।
जज गोदीगजबर ने 17 फरवरी, 2014 के अपने आवेदन में 19 विभिन्न प्रकार की जानकारी मांगी थी। इनमें ट्रांसफर के बारे में हाई कोर्ट के फैसलों की बारीकियों, कुछ ज्यूडिशियल अफसरों के खिलाफ कार्रवाई और कुछ को निकाले जाने की प्रक्रिया से संबंधित जानकारियां थीं। पीआईओ ने डेटा संकलित करने और जज के सामने पेश करने के लिए कुछ समय लेने के बाद अपील दायर की।
हाई कोर्ट के पीआईओ ने तब कुछ ब्योरों का खुलासा किया और अन्य को यह दावा करते हुए रखा कि वे तीसरे पक्ष से संबंधित हैं। इसलिए कानूनन उनका खुलासा नहीं हो सकता है।
23 जून 2014 को सूचना आयोग ने हाई कोर्ट के पीआईओ को 15 दिनों के भीतर सूचना जारी करने का आदेश दिया। हाईकोर्ट प्रशासन ने इस आदेश को न्यायिक पीठ (judicial bench) के समक्ष चुनौती दी।
अदालत ने जनहित में जरूरी नहीं देखते हुए सूचना आयोग के आदेश को गैरकानूनी और आरटीआई कानूनों के प्रावधानों का उल्लंघन बता दिया।
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