मानसून सत्र के पहले ही दिन जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे के बाद यह सवाल उठ रहा है कि अगला उप-राष्ट्रपति कौन होगा। इस बीच सूत्रों का कहना है कि अगला उप-राष्ट्रपति भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से होगा, न कि जनता दल (यूनाइटेड) के नेता और केंद्रीय मंत्री रामनाथ ठाकुर।
सूत्रों के अनुसार, बीजेपी ऐसा चेहरा चुनने जा रही है जो पार्टी की विचारधारा से गहराई से जुड़ा हो। रामनाथ ठाकुर को लेकर चल रही अटकलों को “बिलकुल निराधार” बताया गया है।
रामनाथ ठाकुर की उम्मीदवारी पर विराम
हाल ही में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से रामनाथ ठाकुर की मुलाकात को “सामान्य मुलाकात” बताया गया है। उसी दौरान कई अन्य सांसदों ने भी नड्डा से मुलाकात की थी। सूत्रों के अनुसार, जेडीयू और बीजेपी नेतृत्व के बीच ठाकुर की उम्मीदवारी को लेकर कोई आधिकारिक चर्चा नहीं हुई।
रामनाथ ठाकुर का नाम उस वक्त चर्चा में आया जब यह कयास लगाए जाने लगे कि बीजेपी बिहार से किसी नेता को उप-राष्ट्रपति बना सकती है, क्योंकि राज्य में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। एक थ्योरी यह भी है कि धनखड़ के इस्तीफे के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उप-राष्ट्रपति बनाया जा सकता है, जिससे चुनाव से पहले उन्हें खुश रखा जा सके।
मंगलवार को बीजेपी विधायक हरीभूषण ठाकुर ने इस अटकल को और हवा दे दी। उन्होंने कहा, “अगर नीतीश कुमार को उप-राष्ट्रपति बनाया जाता है तो यह बिहार के लिए बहुत अच्छा होगा।”
बिहार चुनाव से पहले बीजेपी की बड़ी रणनीति
बीजेपी के लिए बिहार चुनाव बेहद अहम हैं, क्योंकि पार्टी ने राज्य में अब तक अकेले सरकार नहीं बनाई है। यदि नीतीश कुमार को केंद्र में लाया जाता है, तो यह गठबंधन की एकता का संकेत हो सकता है और राज्य में बीजेपी के लिए राजनीतिक जगह खोल सकता है।
उसी दिन उप-राष्ट्रपति धनखड़ ने राज्यसभा की कार्यवाही की अध्यक्षता नहीं की। उनकी अनुपस्थिति में उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह—जो खुद जेडीयू से हैं—ने सदन का संचालन किया।
हरिवंश 2020 से उपसभापति हैं और वे मानसून सत्र के शेष हिस्से की अध्यक्षता कर सकते हैं। एक बिहारी नेता द्वारा उच्च सदन का संचालन करना एनडीए के लिए चुनाव से पहले राजनीतिक रूप से लाभकारी साबित हो सकता है।
इस्तीफे के पीछे सत्ता संघर्ष और बढ़ता तनाव
हालांकि धनखड़ का इस्तीफा चौंकाने वाला था, लेकिन सूत्रों का कहना है कि सरकार और उप-राष्ट्रपति के बीच महीनों से तनाव चल रहा था। यह इस्तीफा उसी तनाव और सत्ता संघर्ष का नतीजा है।
सबसे हालिया विवाद जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार करने को लेकर हुआ, जिनके आवास से इस साल की शुरुआत में बड़ी मात्रा में बेहिसाब नकदी जब्त हुई थी।
सूत्रों के अनुसार, धनखड़ इस मुद्दे पर कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के संपर्क में थे और सरकार की कई बार की अपील के बावजूद उन्होंने प्रस्ताव स्वीकार करने में देरी नहीं की।
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू, कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने उन्हें संयम बरतने और सर्वदलीय सहमति से प्रस्ताव लाने का आग्रह किया था। बावजूद इसके, धनखड़ ने विपक्षी सांसदों के पर्याप्त हस्ताक्षर होने का हवाला देते हुए प्रस्ताव को आगे बढ़ा दिया।
मानसून सत्र शुरू होने से कुछ दिन पहले ही रिजिजू ने उन्हें सूचित कर दिया था कि केंद्र सरकार यह प्रस्ताव लोकसभा में लाने की योजना बना चुकी है और विपक्षी सांसदों का समर्थन भी मिल चुका है।
धनखड़ के इस कदम ने सरकार में गहरी चिंता पैदा कर दी, जिसने इसे एनडीए के भीतर समन्वय का उल्लंघन माना।
पीएम मोदी की नाराज़गी और धनखड़ की मांगें
सूत्रों के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मुद्दे को लेकर एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाई जिसमें गृह मंत्री सहित कई शीर्ष अधिकारी मौजूद थे। उन्होंने धनखड़ की कार्यशैली पर नाराज़गी जताई—खासकर इसलिए क्योंकि बीजेपी ने 2022 में उन्हें उप-राष्ट्रपति पद के लिए समर्थन दिया था।
यह पहली बार नहीं था जब तनाव उभरा। इससे पहले भी धनखड़ ने अमेरिका के उप-राष्ट्रपति जेडी वेंस की भारत यात्रा के दौरान मुख्य बैठक की मेज़बानी की मांग की थी। उनका तर्क था कि वे वेंस के समकक्ष हैं, इसलिए मुलाकात की मेज़बानी उन्हें करनी चाहिए। इस पर एक वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री को स्पष्ट करना पड़ा कि वेंस केवल राष्ट्रपति बाइडन का संदेश देने आए हैं, न कि किसी द्विपक्षीय उप-राष्ट्रपति स्तरीय वार्ता के लिए।
इसके अलावा, धनखड़ ने अपने कार्यकाल में कई विवादास्पद मांगें भी कीं:
- उनकी तस्वीर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के साथ सभी मंत्रियों के कार्यालयों में लगाने की मांग
- अपने आधिकारिक वाहन को मर्सिडीज-बेंज से बदलने की लगातार सिफारिश
अंतिम क्षण: सरकार के संपर्क में आए बिना इस्तीफा
सोमवार दोपहर को धनखड़ ने एक बार फिर उसी वरिष्ठ कांग्रेस नेता से मुलाकात की। इसके तुरंत बाद, बिना किसी पूर्व सूचना के वे राष्ट्रपति भवन पहुंचे, लगभग 25 मिनट इंतजार किया, और फिर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना इस्तीफा सौंप दिया।
सूत्रों के अनुसार, धनखड़ को उम्मीद थी कि सरकार उनसे संपर्क करेगी या उनके इस्तीफे को मंजूरी देने में देरी करेगी। लेकिन सरकार ने पहले ही तय कर लिया था कि उन्हें पद से हटाना है। इसीलिए उनका इस्तीफा तुरंत स्वीकार कर लिया गया।








