नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को मुंबई 7/11 सीरियल ट्रेन ब्लास्ट केस में बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले पर आंशिक रूप से रोक लगा दी है, जिसमें 11 आरोपियों को बरी किया गया था। हालांकि, शीर्ष अदालत ने साफ किया कि आरोपियों की रिहाई पर कोई रोक नहीं होगी।
जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले को अन्य मामलों में मिसाल (precedent) के रूप में नहीं माना जाएगा। इस कानूनी बिंदु पर कोर्ट ने उक्त फैसले पर सीमित रोक लगाई है।
कोर्ट ने कहा, “सभी आरोपी पहले ही रिहा हो चुके हैं, इसलिए उन्हें दोबारा जेल भेजने का कोई सवाल नहीं उठता। हालांकि, कानूनी सवालों के संदर्भ में हम यह स्पष्ट करते हैं कि इस फैसले को किसी अन्य मामले में मिसाल के तौर पर नहीं माना जाएगा। अतः इस सीमा तक हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई जाती है।”
मामले में महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हाईकोर्ट का यह फैसला महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट (MCOCA) के तहत चल रहे अन्य मुकदमों को प्रभावित कर सकता है। इसलिए उन्होंने फैसले पर रोक की मांग की, लेकिन बरी किए गए आरोपियों की रिहाई पर रोक लगाने की मांग नहीं की।
मेहता ने कहा, “मैं आरोपियों की रिहाई पर नहीं, बल्कि फैसले के कुछ बिंदुओं पर रोक की मांग कर रहा हूं, जो हमारे MCOCA के बाकी मुकदमों को प्रभावित कर सकते हैं।”
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केवल इस बात पर रोक लगाई कि बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला किसी अन्य मुकदमे में उदाहरण नहीं बनाया जाएगा। साथ ही कोर्ट ने आरोपियों को नोटिस जारी करते हुए अगली सुनवाई में पक्ष रखने को कहा।
क्या है 7/11 ट्रेन ब्लास्ट मामला?
11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में एक के बाद एक सात बम धमाके हुए थे। ये धमाके वेस्टर्न रेलवे की उपनगरीय ट्रेनों में हुए थे, जिनमें 187 लोगों की मौत हो गई थी और 800 से अधिक घायल हुए थे।
लंबी सुनवाई के बाद विशेष अदालत ने अक्टूबर 2015 में पांच आरोपियों को फांसी और सात को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
फांसी की सजा पाने वाले आरोपी थे:
- कमाल अंसारी
- मोहम्मद फैसल अताउर रहमान शेख
- एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी
- नावेद हुसैन खान
- आसिफ खान
ये सभी आरोपी ट्रेन में बम रखने के दोषी पाए गए थे। कमाल अंसारी की 2021 में नागपुर की जेल में कोविड-19 के कारण मौत हो गई थी।
उम्रकैद पाने वाले सात आरोपी थे:
- तनवीर अहमद अंसारी
- मोहम्मद माजिद शफी
- शेख मोहम्मद अली आलम
- मोहम्मद साजिद मरगूब अंसारी
- मुझम्मिल अताउर रहमान शेख
- सुहैल महमूद शेख
- जमीर अहमद लतीफुर रहमान शेख
इन सभी ने अपने दोषसिद्धि और सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की थी।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सभी 11 आरोपियों को बरी किया
हाईकोर्ट की जस्टिस अनिल किलोर और जस्टिस श्याम चंदक की पीठ ने कहा कि “प्रॉसिक्यूशन आरोपों को संदेह से परे साबित करने में पूरी तरह विफल रहा”। अदालत ने जांच और ट्रायल प्रक्रिया में गंभीर खामियां पाई और कहा कि इससे जनता को “गलत तरीके से न्याय होने का भ्रम दिया गया, जबकि असली खतरा अब भी आज़ाद घूम रहा है।”
हाईकोर्ट ने गवाहों की गवाही को अविश्वसनीय बताया और कहा कि विस्फोट के करीब 100 दिन बाद किसी टैक्सी चालक या ट्रेन में सवार व्यक्ति का आरोपियों को पहचानना अव्यावहारिक है।
इसके अलावा कोर्ट ने बम, हथियार, नक्शे आदि की बरामदगी को भी अहम नहीं माना क्योंकि अभियोजन यह साबित करने में असफल रहा कि किस तरह का विस्फोटक इस्तेमाल किया गया था।
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