कभी देश की रक्षा के लिए कठोर से कठोर सैन्य प्रशिक्षण लेने वाले ये नौजवान आज बिस्तर पर पड़े हैं। किसी की ज़ुबान लड़खड़ाती है, कोई पानी का गिलास तक नहीं पकड़ सकता, तो कोई पूरी तरह दूसरों पर आश्रित है।
26 वर्षीय विक्रांत राज को बचपन से ही पता था कि वह सेना में अफसर बनना चाहता है। आज उन्हें हर कदम पर सहारे की ज़रूरत है — लेकिन जब टीवी पर सेना से जुड़ी कोई फिल्म आती है, तो उनकी आंखों में वही पुराना जोश लौट आता है।

शुभम गुप्ता कभी लड़ाकू विमान उड़ाने का सपना देखते थे, लेकिन आज वे खुद पानी भी नहीं पी सकते। किशन कुलकर्णी अपनी मां पर पूरी तरह निर्भर हैं, जबकि हरीश सिंहमार कहते हैं कि उन्होंने “जीने की इच्छा ही खो दी है।”
ये सभी कभी देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों नेशनल डिफेंस अकादमी (NDA) और इंडियन मिलिट्री अकादमी (IMA) में प्रशिक्षण ले रहे थे। कठिन चयन प्रक्रिया और कड़े प्रशिक्षण के बाद इनका सपना था देश की सेवा करना, लेकिन प्रशिक्षण के दौरान लगी गंभीर चोटों ने उनकी जिंदगी की दिशा बदल दी।
1985 से अब तक 500 से अधिक कैडेट्स मेडिकल डिस्चार्ज
ऐसे करीब 500 अफसर कैडेट्स को 1985 से अब तक NDA और IMA से प्रशिक्षण के दौरान लगी गंभीर चोटों के कारण मेडिकल डिस्चार्ज किया गया है। सिर्फ NDA से ही वर्ष 2021 से जुलाई 2025 के बीच लगभग 20 कैडेट्स को मेडिकल कारणों से बाहर किया गया।
सबसे बड़ी चुनौती — इन्हें पूर्व सैनिक (Ex-Serviceman) का दर्जा नहीं मिलता, क्योंकि चोटें कमीशन से पहले लगीं। इस कारण इन्हें Ex-Servicemen Contributory Health Scheme (ECHS) के तहत मुफ्त इलाज की सुविधा नहीं मिलती, जो समान परिस्थितियों में घायल सैनिकों को मिलती है।
इसके बदले इन्हें केवल अधिकतम ₹40,000 प्रति माह तक की अनुग्रह राशि मिलती है, जो उनकी चिकित्सा लागत का आधा भी पूरा नहीं कर पाती। अधिकतर का इलाज प्रति माह ₹50,000 से ₹1 लाख तक का होता है।
सरकार की ओर से इन्हें राहत देने का प्रस्ताव एक साल से अधिक समय से फाइलों में अटका हुआ है।

“अफसर बनने के लिए ही पैदा हुआ था” — विक्रांत राज, 26, चंडीगढ़
NDA कार्यकाल: दिसंबर 2016 – जून 2020
चोट: सिर में चोट, सबड्यूरल हेमरेज
मासिक अनुग्रह राशि: ₹40,000
मासिक चिकित्सा खर्च: ₹95,000
NDA प्रवेश परीक्षा में चौथा स्थान पाने वाले विक्रांत को लोग ‘जनरल मटेरियल’ कहते थे। 2018 में बॉक्सिंग के दौरान सिर में चोट लगी। कुछ महीनों बाद फुटबॉल खेलते समय उसी जगह पर गेंद लगी, जिससे उन्हें ब्रेन सर्जरी करानी पड़ी और वे छह महीने कोमा में रहे।
उनकी मां सुमन राज, जो खुद एक पूर्व वायुसेना अधिकारी की बेटी हैं, कहती हैं:
“उन्होंने 11 साल की उम्र से आठ साल सेना को दिए। आज भी जब वे कोई सैन्य भाषण सुनते हैं या देशभक्ति से जुड़ी फिल्म देखते हैं, तो पूछते हैं कि देश की सेवा कैसे कर सकते हैं।”

“गर्दन से नीचे लकवा” — शुभम गुप्ता, 33, बठिंडा, पंजाब
NDA कार्यकाल: जून 2010 – जून 2014
चोट: सर्वाइकल स्पाइनल इंजरी, क्वाड्रिप्लेजिया
मासिक अनुग्रह राशि: ₹40,000
मासिक चिकित्सा खर्च: ₹40,000
अप्रैल 2012 में चौथे टर्म के दौरान स्विमिंग पूल में गोता लगाते समय शुभम को रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट लगी, जिससे गर्दन से नीचे का हिस्सा हमेशा के लिए लकवाग्रस्त हो गया।
वे कहते हैं, “मैं खुद से गिलास भी नहीं उठा सकता। रोज़ फिजियोथेरेपी करनी पड़ती है और दो अटेंडेंट मदद करते हैं।”

“90% नसों को नुकसान” — किशन कुलकर्णी, 25, हुबली, कर्नाटक
NDA कार्यकाल: जनवरी 2019 – अप्रैल 2022
चोट: कार्डियक अरेस्ट, हाइपॉक्सिक इस्केमिक एन्सेफालोपैथी (HIE)
मासिक अनुग्रह राशि: ₹40,000
मासिक चिकित्सा खर्च: ₹40,000
जुलाई 2020 में नाश्ते के दौरान ड्यूटी करते समय किशन अचानक गिर पड़े। कार्डियक अरेस्ट से मस्तिष्क की 90% नसें क्षतिग्रस्त हो गईं। वे तब से बिस्तर पर हैं।
उनकी मां भारती जोशी, जो पूर्व शिक्षिका हैं, कहती हैं:
“अनुग्रह राशि हाल ही में मिलने लगी है, इसलिए अभी फिजियोथेरेपी शुरू नहीं कर पाई हूं। बिना अटेंडेंट के देखभाल करना बेहद मुश्किल है।”

“कैडेट से पैरा एथलीट तक” — कार्तिक शर्मा, 27, बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश
NDA कार्यकाल: जून 2015 – नवंबर 2021
चोट: रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट, क्वाड्रिप्लेजिया
मासिक अनुग्रह राशि: ₹40,000
मासिक चिकित्सा खर्च: ₹40,000
2016 में प्रशिक्षण के दौरान घायल हुए कार्तिक ने पांच साल से अधिक पुनर्वास में बिताए। हार मानने के बजाय उन्होंने पैरा टेबल टेनिस में राष्ट्रीय स्तर पर हिस्सा लिया और अब राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर कर रहे हैं। उन्होंने UGC NET भी पास कर लिया है और सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं।

“जीवन में कुछ नहीं बचा” — हरीश सिंहमार, 40, रोहतक, हरियाणा
IMA कार्यकाल: जून 2006 – दिसंबर 2007
चोट: गंभीर सिर की चोट
मासिक अनुग्रह राशि: ₹40,000
मासिक चिकित्सा खर्च: ₹70,000
IMA में बॉक्सिंग के दौरान लगी चोट ने हरीश को 42 दिन के कोमा में डाल दिया। आज वे दौरे (सीजर्स), याददाश्त की कमी और धुंधली दृष्टि से जूझ रहे हैं।
वे कहते हैं, “मेरे कोर्समेट आज कर्नल हैं। मेरे माता-पिता मेरी देखभाल करते हैं, लेकिन कब तक? पिता कहते हैं कि मैं उनके सामने ही मर जाऊं ताकि अकेला न रह जाऊं।”
पूर्व सैनिक का दर्जा ही समाधान
इन सभी पूर्व कैडेट्स का मानना है कि पूर्व सैनिक का दर्जा मिलने से उन्हें सैन्य अस्पतालों में मुफ्त इलाज और विकलांगता पेंशन मिल सकेगी, जिससे आर्थिक और मानसिक बोझ कम होगा।
विक्रांत की मां सुमन कहती हैं:
“अगर हमारे बच्चे देश की रक्षा के लिए ट्रेनिंग के काबिल थे, तो चोट लगने के बाद उनकी देखभाल भी देश की जिम्मेदारी होनी चाहिए।”
जब तक यह नहीं होता, देश के ये भूले-बिसरे कैडेट अपने घर की चारदीवारी में ही अपनी सबसे कठिन लड़ाई लड़ते रहेंगे।
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