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गुजरात: बेमौसम बारिश से किसान बेहाल, कर्ज में डूबे अन्नदाता; उधर विधायकों पर हो रही सुविधाओं की ‘बरसात’

| Updated: November 6, 2025 21:34

गुजरात में 51 लाख किसान 1.46 लाख करोड़ के कर्ज में डूबे, जबकि 'माननीयों' को मिल रही मुफ्त हवाई यात्रा और आलीशान बंगले; बेमौसम बारिश ने खोली व्यवस्था की पोल।

गुजरात में बेमौसम बारिश ने कहर बरपाया है, जिससे किसानों को अभूतपूर्व नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। चारों तरफ से बढ़ते दबाव के बीच उम्मीद है कि राज्य सरकार जल्द ही राहत पैकेज की घोषणा करेगी। लेकिन इस मुश्किल घड़ी में, एक तुलना जो इन दिनों खूब चर्चा में है, वह है राज्य के 182 विधायकों को मिलने वाली बेहतरीन सुविधाएं और दूसरी तरफ किसानों व स्वास्थ्य बीमा से वंचित करोड़ों आम लोगों की दयनीय स्थिति।

‘जनप्रतिनिधि’ बनाम असली किसान

एक प्रमुख स्थानीय दैनिक अखबार की रिपोर्ट ने इस विरोधाभास को उजागर किया है। रिपोर्ट के मुताबिक, गुजरात के 182 विधायकों में से 15 मंत्री, 37 में से 21 सांसद और तीन केंद्रीय मंत्रियों ने अपने चुनावी हलफनामे में अपना पेशा ‘खेती’ बताया है। विडंबना यह है कि इन ‘जनप्रतिनिधि किसानों’ को राज्य के असली किसानों के मुकाबले कहीं ज्यादा सरकारी लाभ मिल रहे हैं।

जमीनी हकीकत बेहद दर्दनाक है। पिछले एक हफ्ते में ही फसल बर्बाद होने के चलते कथित तौर पर दो किसानों ने आत्महत्या कर ली है।

अखबार ने तुलना की है कि जहां विधायकों को स्वास्थ्य सहित कई सुविधाएं मुफ्त मिलती हैं, वहीं राज्य के 51 लाख से ज्यादा किसान कुल 1.46 लाख करोड़ रुपये के कर्ज में डूबे हैं। इसका मतलब है कि औसतन हर किसान पर 2.86 लाख रुपये का कर्ज है।

एनसीआरबी (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक, 2018 से 2023 के बीच राज्य में 797 किसानों और खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की है।

छोटे और सीमांत किसानों की हालत सबसे ज्यादा खराब है। 1 हेक्टेयर से कम जमीन वाले सीमांत और 1 से 2 हेक्टेयर वाले छोटे किसानों पर 66,600 करोड़ रुपये का कर्ज है। पिछले 6 सालों में कर्ज लेने वाले छोटे किसानों की संख्या 65% बढ़कर 36.36 लाख हो गई है। किसानों के कुल कर्ज का 40% हिस्सा इन्हीं पर है।

विधायकों की ‘हाई-क्लास’ सुविधाएं

इसके ठीक उलट, विधायकों को मिलने वाली सुविधाओं की सूची लंबी है:

  • यात्रा: वे राज्य के भीतर अपनी पत्नी और परिवार के दो सदस्यों के साथ फर्स्ट या सेकेंड क्लास एसी ट्रेन में सफर कर सकते हैं। गुजरात के बाहर, वे साल में अकेले 10 हजार किलोमीटर या किसी सह-यात्री के साथ 20 हजार किलोमीटर तक यात्रा कर सकते हैं। इसके अलावा, परिवार के एक सदस्य के साथ साल में तीन बार देशभर में हवाई यात्रा की सुविधा भी मिलती है।
  • भत्ते: विधानसभा सत्र के दौरान उपस्थिति के लिए उन्हें 1000 रुपये दैनिक भत्ता मिलता है। अगर विधायक अपनी कार से आते हैं तो 11 रुपये प्रति किलोमीटर और ट्रेन से आने पर फर्स्ट या सेकेंड एसी का किराया मिलता है।
  • स्वास्थ्य: वर्तमान और पूर्व विधायकों और उनके परिवार के सदस्यों को सरकारी और निजी अस्पतालों में मुफ्त इलाज मिलता है, जिसका पूरा खर्च सरकार उठाती है।
  • आवास: प्रत्येक विधायक को 238.45 वर्ग मीटर का एक फ्लैट आवंटित होता है, जिसमें 3 बेडरूम, लिविंग रूम, किचन, ऑफिस और सर्वेंट रूम जैसी सुविधाएं होती हैं।
  • अन्य: एमएलए आवास के रेस्तरां में रियायती दरों पर खाना, घर में टेलीफोन सुविधा और बिजली का बिल भी सरकार भरती है। विधानसभा भवन में रेलवे रिजर्वेशन और पोस्ट ऑफिस की विशेष सुविधा भी उपलब्ध है।

आम आदमी की स्थिति और बारिश का कहर

अखबार ने आगे बताया कि इसके विपरीत, राज्य के लगभग 3 करोड़ गुजरातियों के पास कोई स्वास्थ्य बीमा नहीं है। 1.40 करोड़ लोगों के पास निजी स्वास्थ्य बीमा है और 2.94 करोड़ लोग आयुष्मान योजना के दायरे में हैं, फिर भी लगभग 3 करोड़ लोग अभी भी बीमा रहित हैं।

बेमौसम बारिश ने राज्य के 249 तालुकों के 16 हजार गांवों में तबाही मचाई है। कुल 31 लाख हेक्टेयर जमीन प्रभावित हुई है, जिसमें मूंगफली, कपास और धान जैसी मुख्य फसलें बुरी तरह बर्बाद हो गई हैं।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं

इस असमानता पर आम आदमी पार्टी (AAP) की गुजरात इकाई के अध्यक्ष इसुदान गढ़वी ने वाइब्स ऑफ इंडिया से कहा कि देश की मदद पर पहला हक गरीबों, वंचितों और किसानों का है। उन्होंने आरोप लगाया कि किसानों और वंचितों की आवाज सुनी नहीं जाती, जबकि उद्योगपतियों को प्राथमिकता दी जाती है।

वहीं, गुजरात कांग्रेस के प्रवक्ता डॉ. हिरेन बैंकर का कहना है कि आदर्श रूप से तुलना उद्योगपतियों और किसानों के बीच होनी चाहिए क्योंकि दोनों व्यवसाय करते हैं और जोखिम उठाते हैं।

उन्होंने कहा कि उद्योगपतियों को मनचाही जगह जमीन मिल जाती है, लेकिन किसानों को अक्सर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तक नहीं मिलता। उन्होंने भाजपा पर कटाक्ष करते हुए कहा कि इतनी अच्छी संख्या बल होने के बावजूद विधायक किसानों की चिंता नहीं करते; वे जनता के प्रतिनिधि नहीं बल्कि “भाजपा के मैनेजर” हैं।

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