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गुजरात: क्या सीएम भूपेंद्र पटेल से ज्यादा ताकतवर हो रहे हैं हर्ष संघवी? अंदरूनी समीकरणों ने बढ़ाई हलचल

| Updated: November 18, 2025 14:42

गुजरात सरकार में बड़ा फेरबदल: क्या सीएम भूपेंद्र पटेल से ज्यादा 'पावरफुल' हो रहे हैं हर्ष संघवी? जानिये अंदरूनी समीकरण

अहमदाबाद/गांधीनगर: गुजरात की सत्ता के गलियारों में इन दिनों हवा का रुख कुछ बदला हुआ सा है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या शक्ति संतुलन धीरे-धीरे 2021 में आश्चर्यजनक रूप से मुख्यमंत्री बने मृदुभाषी भूपेंद्र पटेल के कार्यालय से खिसककर, युवा उपमुख्यमंत्री हर्ष संघवी की ओर झुक रहा है? करीब एक महीने पहले हुए कैबिनेट फेरबदल के बाद से यह चर्चा और तेज हो गई है।

चार साल का कार्यकाल पूरा कर चुके मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल और हाल ही में उपमुख्यमंत्री बनाए गए हर्ष संघवी के बीच काम के बंटवारे के बाद, संघवी का कद सरकार में स्पष्ट रूप से बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। सचिवालय के भीतर की गतिविधियां इस बात की गवाह हैं।

जहां एक तरफ खबरें हैं कि हर्ष संघवी अपने कार्यालय में आईएएस अधिकारियों की नियुक्तियां कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ खुद मुख्यमंत्री ने अपने विभागों के कम होने के बाद अपने कार्यालय में आईएएस अधिकारियों की संख्या में कटौती कर दी है।

मंत्रालयों का गणित: किसके पास क्या बचा?

ताजा स्थिति यह है कि भूपेंद्र पटेल के पास अब सरकार के ‘कोर पोर्टफोलियो’ कहे जाने वाले विभाग नहीं बचे हैं। गृह, वित्त, उद्योग, एमएसएमई (MSME), शहरी विकास या कृषि जैसे महत्वपूर्ण विभाग उनके हाथ से निकल चुके हैं। उनके पास अब केवल राजस्व विभाग शेष है।

दूसरी ओर, गृह विभाग जो पहले सीएम के पास था, अब संघवी के पास है, जबकि भूपेंद्र पटेल का सबसे पसंदीदा विभाग ‘शहरी विकास’ अब कनुभाई देसाई को सौंप दिया गया है।

विभागों की संख्या का अंतर भी इस कहानी को बयां करता है। पटेल द्वारा संभाले जाने वाले विभागों की संख्या 15 से घटकर मात्र 9 रह गई है, जबकि हर्ष संघवी के पास विभागों की संख्या 8 से उछलकर 17 हो गई है।

संघवी: गुजरात भाजपा का नया चेहरा?

हर्ष संघवी न केवल गृह और एमएसएमई संभाल रहे हैं, बल्कि खेल विभाग भी उन्हीं के पास है। गुजरात के लिए खेल विभाग का महत्व इसलिए भी बढ़ गया है क्योंकि 2030 में अहमदाबाद में कॉमनवेल्थ गेम्स होने हैं और राज्य 2036 के समर ओलंपिक की मेजबानी के लिए भी जोर लगा रहा है। ऐसे में यह विभाग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दृश्यता (visibility) दिलाता है।

39 वर्षीय और तीन बार के विधायक रह चुके संघवी को अब कई लोग गुजरात भाजपा का चेहरा मान रहे हैं। यदि उनसे कोई बड़ी चूक नहीं होती है, तो 2027 के आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा के ‘डबल इंजन सरकार’ अभियान में वे स्थानीय स्तर पर प्रमुख ऊर्जा स्रोत साबित हो सकते हैं।

शहरी विकास विभाग छिनने के सियासी मायने

मुख्यमंत्री पटेल से शहरी विकास विभाग का जाना विशेष रूप से चौंकाने वाला है, क्योंकि उनकी राजनीतिक जड़ें पिछले तीन दशकों से अहमदाबाद नगर निगम (AMC) में ही जमी थीं। अगले साल जनवरी-फरवरी में शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव होने हैं, जिन्हें अक्सर विधानसभा चुनावों का बैरोमीटर माना जाता है।

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि पटेल का कद भले ही प्रभावी रूप से छोटा कर दिया गया है, लेकिन उन्हें औपचारिक रूप से नहीं हटाया गया। इसके पीछे पाटीदार समुदाय की नाराजगी का डर है।

भाजपा 2017 की गलतियों को दोहराना नहीं चाहती, जब पाटीदार आंदोलन और आनंदीबेन पटेल को हटाने के फैसले के बाद समुदाय में विश्वासघात की भावना पैदा हुई थी। इसका नतीजा यह हुआ था कि 2017 में भाजपा 99 सीटों पर सिमट गई थी, जो राज्य में उसका सबसे खराब प्रदर्शन था।

शहरीकरण और भविष्य की राजनीति

गुजरात में शहरी विकास विभाग शासन और राजनीति दोनों ही लिहाज से बेहद अहम है। 2011 की जनगणना के अनुसार, गुजरात 42.6 प्रतिशत शहरी आबादी के साथ सबसे तेजी से शहरीकरण करने वाले राज्यों में से एक है। 2001 से 2011 के बीच यहां शहरी आबादी की वृद्धि दर 35.83 प्रतिशत थी, जो राष्ट्रीय औसत से अधिक थी। अनुमान है कि 2030 तक गुजरात में 66 प्रतिशत शहरीकरण हो जाएगा।

राज्य की 182 विधानसभा सीटों में से लगभग 73 सीटें ‘शहरी मतदाताओं’ की मानी जाती हैं, जिनमें से पिछले चुनाव में भाजपा ने 56 पर जीत हासिल की थी। 2027 तक शहरी सीटों का यह आंकड़ा 50 प्रतिशत को पार करने की संभावना है। इसी महत्व को देखते हुए 2025-26 के बजट में इस विभाग का आवंटन 40 प्रतिशत बढ़ाकर 30,325 करोड़ रुपये किया गया है और इसी जनवरी में 9 नगर पालिकाओं को अपग्रेड कर नगर निगम बनाया गया है, जिससे कुल संख्या 17 हो गई है।

नौकरशाही का बदलता रुख और एंटी-इनकंबेंसी

अधिकारियों के बीच दबी जुबान में शक्ति संतुलन बदलने की चर्चाएं आम हैं, और वे अब संघवी के कार्यालय के चक्कर लगाते ज्यादा दिखते हैं। विश्लेषकों के अनुसार, पार्टी युवाओं की ओर से सत्ता विरोधी लहर (anti-incumbency) के दबाव को महसूस कर रही थी, इसलिए सरकार में बदलाव की जरूरत समझी गई।

हालांकि, मुख्यमंत्री को बदलने से अस्थिरता का संदेश जा सकता था, विशेषकर उद्योगों और निवेशकों के बीच। साथ ही, इससे यह संदेश भी जाता कि 2022 में 156 सीटें जीतने के बावजूद पटेल डिलीवर करने में विफल रहे।

एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा, “मुख्यमंत्री को बुनियादी ढांचे से जुड़ी कई दुर्घटनाओं का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। राजकोट गेमिंग जोन में आग, वडोदरा में नाव पलटना, पुल गिरना और खराब सड़कों के कारण होने वाली दुर्घटनाएं—इन सबकी जिम्मेदारी प्रशासनिक विफलताओं पर आती है, भले ही जांच में वरिष्ठ अधिकारियों की जवाबदेही तय न हो पाई हो। यह जंग लगा सिस्टम मुख्यमंत्री से पहले का है, लेकिन वे अब इसके लिए ‘फॉल गाई’ (बलि का बकरा) बनते दिख रहे हैं।”

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