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गुजरात से अंतरराष्ट्रीय ‘साइबर स्लेवरी’ रैकेट का पर्दाफाश: ‘द घोस्ट’ गिरफ्तार, पाकिस्तान से भी जुड़े थे तार

| Updated: November 19, 2025 15:40

फर्जी नौकरी का झांसा देकर म्यांमार में बनाते थे बंधक, पाकिस्तान से भी जुड़े तार; जानें कैसे काम करता था 500 लोगों को बेचने वाला 'द घोस्ट' का सिंडिकेट

गांधीनगर/अहमदाबाद: गुजरात साइबर सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (CCoE) ने एक बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए एक विशाल अंतरराष्ट्रीय मानव तस्करी और साइबर-स्लेवरी (Cyber-Slavery) नेटवर्क को ध्वस्त कर दिया है। पुलिस ने इस गिरोह के मुख्य सरगना (किंगपिन) नीलेश पुरोहित उर्फ ‘नील’, जिसे अपराध की दुनिया में “द घोस्ट” (The Ghost) के नाम से जाना जाता है, को गिरफ्तार कर लिया है। नीलेश के साथ एक दंपत्ति सहित उसके पांच अन्य साथियों को भी हिरासत में लिया गया है।

यह सिंडिकेट दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से संचालित हो रहा था और फर्जी नौकरी का झांसा देकर भारतीय नागरिकों, विशेषकर गुजरात के युवाओं को अपना शिकार बना रहा था।

पाकिस्तान तक फैला नेटवर्क, 100 कंपनियों से कनेक्शन

राज्य के गृह विभाग का प्रभार संभाल रहे उप-मुख्यमंत्री हर्ष संघवी ने मामले की जानकारी देते हुए बताया कि नीलेश पुरोहित एक वैश्विक सिंडिकेट का प्रमुख था, जिसके नीचे 126 से अधिक सब-एजेंट काम कर रहे थे। संघवी ने खुलासा किया, “जांच में पता चला है कि पुरोहित के तार पाकिस्तान में बैठे एजेंटों से भी जुड़े थे। इसके अलावा, अलग-अलग देशों की करीब 100 कंपनियों के साथ उसके संबंध थे, जो दक्षिण-पूर्व एशिया में चल रहे ‘साइबर-फ्रॉड सेंटरों’ को मानव संसाधन (Manpower) सप्लाई करती थीं।”

भागने की फिराक में था ‘द घोस्ट’

मुख्य आरोपी नीलेश पुरोहित को गांधीनगर से उस समय हिरासत में लिया गया जब वह देश छोड़कर भागने की कोशिश कर रहा था। उसके साथ उसके साथी हितेश सोमैया, सोनल फल्दू, भावदीप जडेजा और हरदीप जडेजा को भी गिरफ्तार किया गया है। पुलिस ने सोनल के पति संजय को भी हिरासत में लिया है।

11 देशों के 500 से ज्यादा लोगों की तस्करी

उप-मुख्यमंत्री के अनुसार, नीलेश पुरोहित का नेटवर्क सिर्फ भारत तक सीमित नहीं था। वह भारत, श्रीलंका, फिलीपींस, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, नाइजीरिया, मिस्र, कैमरून, बेनिन और ट्यूनीशिया के 500 से अधिक लोगों की तस्करी में शामिल रहा है। इन पीड़ितों को म्यांमार, कंबोडिया, वियतनाम और थाईलैंड जैसे देशों में भेजा गया था।

ठगों का यह गिरोह सोशल मीडिया पर विज्ञापन देकर युवाओं को विदेश में ‘डेटा एंट्री’ की हाई-सैलरी वाली नौकरी का लालच देता था।

पासपोर्ट जब्त कर करवाते थे साइबर अपराध

संघवी ने बताया, “एक बार जब पीड़ित जाल में फंस जाते, तो उनके पासपोर्ट जब्त कर लिए जाते थे। इसके बाद, उन्हें केके पार्क (KK Park) और म्यावाडी टाउनशिप के पास के रास्तों से सीमा पार कराकर म्यांमार ले जाया जाता था। वहां उन्हें बंधक बनाकर जबरन अवैध ऑनलाइन गतिविधियों को अंजाम देने के लिए मजबूर किया जाता था। इसमें फिशिंग, क्रिप्टोकरेंसी फ्रॉड, पोंजी स्कीम और डेटिंग-ऐप स्कैम जैसे अपराध शामिल थे।”

हर पीड़ित पर होती थी मोटी कमाई

रिकॉर्ड्स से पता चलता है कि पुरोहित प्रति पीड़ित 2,000 से 4,500 डॉलर (USD) के बीच कमाई करता था। इस रकम का 30% से 40% हिस्सा वह अपने सब-एजेंटों को देता था। उप-मुख्यमंत्री ने कहा, “वित्तीय लेनदेन को छिपाने के लिए ‘म्यूल बैंक खातों’ (Mule Accounts) और कई क्रिप्टोकरेंसी वॉलेट्स का इस्तेमाल किया जाता था।”

4,000 लोगों का रेस्क्यू और खुफिया ऑपरेशन

उन्होंने बताया कि भारत सरकार ने थाईलैंड और म्यांमार के अधिकारियों की मदद से संयुक्त अभियान चलाकर अब तक करीब 4,000 लोगों को रेस्क्यू किया है। संघवी ने कहा, “वापस लौटे कई पीड़ितों ने नीलेश पुरोहित की पहचान उस एजेंट के रूप में की जिसने उन्हें विदेश भेजा था। इसी आधार पर मामला दर्ज कर विस्तृत जांच शुरू की गई।”

अधिकारियों ने बताया कि CCoE लगातार डेटा का विश्लेषण कर रहा था। इसमें I4C जैसी केंद्रीय एजेंसियों द्वारा साझा किए गए रेस्क्यू किए गए लोगों के इंटरव्यू और इन स्कैम कंपाउंड से जुड़े एजेंटों की संदिग्ध गतिविधियों की निगरानी शामिल थी। तकनीकी विश्लेषण, डिजिटल फोरेंसिक, पूछताछ और फील्ड ऑपरेशन के लिए विशेष टीमें गठित की गई थीं, जिससे उन एजेंटों की पहचान हो सकी जो पीड़ितों को दक्षिण-पूर्व एशिया के साइबर-फ्रॉड हब में भेज रहे थे।

हथियारबंद गुर्गों का पहरा: ऐसे होता था सफर

अधिकारियों ने इस गिरोह के काम करने के तरीके (Modus Operandi) को समझाते हुए बताया कि आरोपी सोशल मीडिया या जान-पहचान के जरिए नागरिकों से संपर्क करते थे और विदेश में आकर्षक नौकरी का ऑफर देते थे। जब कोई शिकार रुचि दिखाता, तो एजेंट उसका इंटरव्यू लेते और फ्लाइट टिकट व अन्य रसद की व्यवस्था करते। तस्करी किए जाने वाले लोगों को आमतौर पर पर्यटक वीजा (Tourist Visa) पर यात्रा करने का निर्देश दिया जाता था।

अधिकारियों ने बताया, “बैंकॉक एयरपोर्ट पर उतरने के बाद, पीड़ितों को हथियारबंद मलेशियाई या चीनी गुर्गे रिसीव करते थे। इसके बाद उन्हें गुप्त रूप से—अक्सर दूरदराज के रास्तों से—म्यांमार के उन क्षेत्रों में ले जाया जाता था जहां ये स्कैम कंपाउंड स्थित हैं।”

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