गुजरात सरकार अक्सर यह दावा करती रही है कि राज्य में शराबबंदी (liquor prohibition) का सख्ती से पालन हो रहा है। लेकिन, विडंबना यह है कि जहां एक तरफ शराब पर आधिकारिक प्रतिबंध है, वहीं दूसरी तरफ गुजरात अब नशीले पदार्थों (Drugs) की तस्करी का एक बड़ा प्रवेश द्वार बनता जा रहा है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा साझा किए गए चौंकाने वाले आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में राज्य के भीतर 91,453 किलोग्राम नशीले पदार्थ जब्त किए गए हैं। ये भारी-भरकम आंकड़े अपने आप में कई गंभीर सवाल खड़े करते हैं कि आखिर कितनी बड़ी मात्रा में ड्रग्स बिना पकड़ में आए राज्य में प्रवेश कर रहे होंगे और बांटे जा रहे होंगे।
‘गांधी के गुजरात’ में नशाबंदी केवल एक प्रतीक?
जिस राज्य को ‘गांधी के गुजरात’ के रूप में जाना जाता है, वहां नशाबंदी काफी हद तक सिर्फ प्रतीकात्मक बनकर रह गई है। हालांकि सरकार “ड्रग-फ्री गुजरात” के विचार को जोर-शोर से प्रचारित करती है, लेकिन जमीनी हकीकत इसके ठीक उलट दिखाई देती है। राज्य में ड्रग तस्करी का दायरा काफी बढ़ गया है और चिंता की बात यह है कि युवाओं के बीच शराब की खपत की तुलना में ड्रग्स का नशा कहीं अधिक तेजी से बढ़ रहा है।
राजनीतिक संरक्षण और बेखौफ तस्कर
एमडी (MD – मेथामफेटामाइन) और अन्य नशीले पदार्थों की बढ़ती मांग ने ड्रग नेटवर्क के हौसले बुलंद कर दिए हैं। कई रिपोर्ट्स बताती हैं कि ये नेटवर्क कथित तौर पर राजनीतिक संरक्षण में फल-फूल रहे हैं। एक अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, अब शहरी इलाकों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी ड्रग्स खुलेआम बिक रहे हैं और तस्करों को कानून का रत्ती भर भी खौफ नहीं है।
औसतन, गुजरात में हर साल लगभग 1,500 किलोग्राम ड्रग्स खुफिया जानकारी के आधार पर पकड़ी जाती है। लेकिन अखबार की रिपोर्ट का दावा है कि यह जब्ती उस विशाल खेप का केवल एक छोटा सा हिस्सा हो सकती है, जो वास्तव में राज्य में प्रवेश करती है।
अनसुलझे सवाल: कौन है इस खेल का असली खिलाड़ी?
लोकसभा में पेश की गई एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि 2018 से 2022 के बीच कुल 91,435 किलोग्राम नशीले पदार्थ जब्त किए गए। इसके बावजूद, कई अहम सवाल आज भी अनुत्तरित हैं—करोड़ों रुपये की यह ड्रग्स आखिर कौन भेज रहा है? यह कहां से आ रही है? इसके असली प्राप्तकर्ता (recipients) कौन हैं और अंततः यह खेप कहां पहुंचाई जा रही है?
अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस जांच में अभी तक ड्रग माफिया से जुड़े विशिष्ट शहरों, गांवों या नेटवर्क के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी सामने नहीं आई है। स्पष्टता की यह कमी इशारा करती है कि पूरे राज्य में एक बेहद संगठित और गहरी जड़ों वाला वितरण तंत्र (distribution system) काम कर रहा है।
किंगपिन्स अब भी पुलिस की गिरफ्त से दूर
बार-बार बड़ी बरामदगी होने के बावजूद, न तो शीर्ष स्तर के ड्रग माफिया और न ही मध्यम स्तर के तस्करों की प्रभावी पहचान हो पाई है, न ही उन्हें सजा के अंजाम तक पहुंचाया गया है। सरकार और पुलिस बरामद ड्रग्स की मात्रा को अपनी सफलता के रूप में पेश करते हैं, लेकिन वे इस व्यापार के मूल ढांचे (core structure) को ध्वस्त करने में अब तक नाकाम रहे हैं।
बेरोजगारी और बदलता ट्रेंड: महिलाएं और युवा बने मोहरा
चिंता को और बढ़ाने वाली बात यह है कि ड्रग तस्करों की प्रोफाइल बदल रही है। रिपोर्ट बताती है कि अब महिलाएं भी ड्रग पेडलर्स की कतार में शामिल हो रही हैं। वहीं, बेरोजगारी से जूझ रहे पढ़े-लिखे युवा भी आय के स्रोत के रूप में ड्रग्स बांटने का काम कर रहे हैं। ड्रग्स की बढ़ती मांग के साथ, पेडलर्स अब शहरों और गांवों दोनों में फैल गए हैं। युवाओं को आकर्षित करने के लिए वे अक्सर आसान किश्तों (installments) पर ड्रग्स उपलब्ध कराने जैसे तरीके अपना रहे हैं।
कांग्रेस का हल्ला बोल
इन हालातों के बीच, कांग्रेस ने गुरुवार को गुजरात को नशा और शराब मुक्त बनाने के लिए एक अभियान की शुरुआत की है। अपनी ‘जन आक्रोश यात्रा’ के दौरान, जिग्नेश मेवाणी (Jignesh Mevani) ने गुजरात में ड्रग्स और शराब की खुलेआम उपलब्धता को लेकर सरकार पर तीखा हमला बोला है।
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