नई दिल्ली: हाल ही में इंडिगो (IndiGo) में आए संकट और उसके बाद उड़ानों के रद्द होने के सिलसिले ने पूरे देश की एविएशन व्यवस्था को हिलाकर रख दिया है। पिछले हफ्ते की शुरुआत से रोजाना रद्द हो रही फ्लाइट्स ने यह साफ कर दिया कि जब बाजार में किसी एक कंपनी का इतना बड़ा वर्चस्व होता है, तो उसका असर कितना व्यापक हो सकता है।
यह संकट इस बात का प्रमाण है कि इंडिगो भारतीय विमानन क्षेत्र में ‘टू बिग टू फेल’ (इतनी बड़ी कि असफल नहीं हो सकती) वाली स्थिति में पहुंच चुकी है।
आंकड़ों पर नजर डालें तो घरेलू हवाई यात्रा करने वाले हर 10 में से 6 यात्री इंडिगो से उड़ान भरते हैं। लेकिन इंडिगो की यह पकड़ केवल यात्रियों की संख्या या 65 प्रतिशत की भारी-भरकम मार्केट हिस्सेदारी तक ही सीमित नहीं है।
एकाधिकार (Monopoly) की असली तस्वीर
वैसे तो भारतीय एविएशन सेक्टर को मुख्य रूप से एक ‘डुओपोली’ (दो कंपनियों का राज) माना जाता है, जिसमें अक्टूबर के आंकड़ों के अनुसार एयर इंडिया समूह की हिस्सेदारी 26.5 प्रतिशत है। लेकिन गहराई से देखें तो इंडिगो के कई रूट्स ऐसे हैं जहां उसका पूरा एकाधिकार है।
इन मार्गों पर आपको सिर्फ इंडिगो की ‘ब्लू टेल’ वाली फ्लाइट्स ही नजर आएंगी। इंडिगो और एयर इंडिया समूह की संयुक्त घरेलू बाजार हिस्सेदारी 90 प्रतिशत से अधिक है, जो इसे भारत में सबसे अधिक ‘मार्केट कंसंट्रेशन’ (बाजार एकाग्रता) वाला सेक्टर बनाता है।
एविएशन एनालिस्ट और पूर्व नेटवर्क प्लानर अमेया जोशी (Ameya Joshi) द्वारा विश्लेषण किए गए डेटा से एक चौंकाने वाली तस्वीर सामने आती है। भारतीय एयरलाइंस कुल मिलाकर लगभग 1,200 घरेलू मार्गों पर उड़ान भरती हैं। इनमें से इंडिगो 950 से अधिक मार्गों पर अपनी सेवाएं दे रही है।
- चौंकाने वाला तथ्य: इंडिगो के इन रूट्स में से लगभग 600 यानी 63 प्रतिशत रूट ‘मोनोपोली रूट्स’ हैं, जहां कोई और एयरलाइन सीधी टक्कर में नहीं है।
- इसके अलावा, करीब 200 (21 प्रतिशत) रूट ऐसे हैं जहां इंडिगो का मुकाबला सिर्फ एक प्रतिद्वंद्वी से है।
हालांकि सरकार की क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना (RCS) के तहत कुछ रूट्स डिजाइन के तहत मोनोपोली वाले हैं, लेकिन वहां सरकारी कंपनी एलायंस एयर (Alliance Air) का दबदबा है। इंडिगो की मोनोपोली वाले रूट्स का RCS से कोई खास लेना-देना नहीं है।
प्रतियोगियों की विफलता से मिला फायदा
विशेषज्ञों का कहना है कि इंडिगो का यह एकाधिकार किसी योजना का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह दूसरी घरेलू एयरलाइंस के फेल होने का नतीजा है। पिछले दो दशकों में कई कंपनियां डूब गईं, जिनमें गो फर्स्ट (Go First) और जेट एयरवेज (Jet Airways) सबसे ताजे उदाहरण हैं।
एक तर्क यह भी है कि इंडिगो जैसी मजबूत एयरलाइन की वजह से ही कई ऐसे रूट्स आज भी चालू हैं, जो शायद अन्यथा बंद हो जाते। इस संकट से पहले तक, भारत के उतार-चढ़ाव भरे एविएशन इतिहास में इंडिगो का सुरक्षा रिकॉर्ड और परिचालन क्षमता बेदाग रही है।
सरकार की चिंता और मंत्री का बयान
हालांकि, अब इंडिगो धीरे-धीरे सामान्य परिचालन की ओर लौट रही है, जिसमें रेगुलेटर द्वारा दी गई अस्थायी छूटों का बड़ा हाथ है, लेकिन पिछले एक हफ्ते ने बाजार में भारी एकाधिकार के जोखिमों को उजागर कर दिया है। सरकार भी इस स्थिति की गंभीरता को समझ रही है। नागरिक उड्डयन मंत्री के. राममोहन नायडू (K Rammohan Naidu) ने सोमवार को संसद में कहा कि भारत में हवाई यात्रा की बढ़ती मांग को देखते हुए देश को पांच बड़ी एयरलाइंस की जरूरत है।
सिर्फ एविएशन नहीं, अन्य सेक्टर्स में भी यही हाल
यह समस्या सिर्फ विमानन तक सीमित नहीं है। भारत में टेलीकॉम, सीमेंट, स्टील, प्राइवेट पोर्ट्स और ई-कॉमर्स जैसे कई क्षेत्रों में पिछले कुछ सालों में बाजार का केंद्रीकरण बढ़ा है। इंडिगो का संकट इन एकाधिकार और द्व्याधिकार (Duopoly) वाली स्थितियों के खतरों के प्रति एक ‘वेक-अप कॉल’ है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि किसी भी सेक्टर में बड़ी और स्थिर कंपनियों का होना अच्छा है, लेकिन जब उनकी हिस्सेदारी इतनी बढ़ जाए कि दूसरे खिलाड़ियों के लिए रास्ता बंद हो जाए, तो यह समस्या बन जाती है।
अमेया जोशी का कहना है, “देश के स्तर पर एकाधिकार बुरा हो सकता है, लेकिन रूट स्तर पर इंडिगो ने कमाल किया है। अगर इंडिगो नहीं होती, तो कई रूट्स पर परिचालन ही नहीं होता और यात्रियों को वन-स्टॉप फ्लाइट्स लेनी पड़तीं। इंडिगो का एकाधिकार दूसरों की विफलता से बना है, न कि डिजाइन से। हालांकि, ऐसी स्थिति में दंड के प्रावधान सख्त होने चाहिए ताकि बड़ी कंपनियों को अपनी जिम्मेदारी का अहसास रहे।”
नीति निर्माताओं के लिए सबक
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि बाजार में दबदबा समस्या नहीं है, बल्कि उस दबदबे का दुरुपयोग असली समस्या है। वहीं, एक अन्य अधिकारी ने चिंता जताई कि बढ़ते एकाधिकार के कारण नई कंपनियां बाजार में आने से कतराती हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि नीतियां कुछ खास खिलाड़ियों के पक्ष में हैं। जब यह प्रभुत्व अधिग्रहण (Acquisitions) जैसे इनऑर्गेनिक तरीकों से बढ़ता है, तो छोटी कंपनियों के निगल लिए जाने का खतरा और बढ़ जाता है।
बाजार का यह झुकाव ग्राहकों के लिए भी जोखिम भरा है। अगर प्रमुख कंपनियां लड़खड़ाती हैं तो यह ‘प्रणालीगत जोखिम’ (Systemic Risk) बन जाता है। साथ ही, कम प्रतिस्पर्धा का मतलब है कम विकल्प, ऊंची कीमतें और कम इनोवेशन।
हरफिंडahl-हर्षमैन इंडेक्स (HHI) और बाजार का गणित
नीति निर्माताओं के लिए यह समय सीखने का है। हरफिंडahl-हर्षमैन इंडेक्स (HHI), जो बाजार की एकाग्रता को मापता है, बता रहा है कि टेलीकॉम, एयरलाइंस, सीमेंट, और स्टील जैसे सेक्टर्स में यह ग्राफ ऊपर जा रहा है।
अमेरिकी न्याय विभाग के अनुसार, HHI बाजार में कंपनियों के आकार और वितरण को देखता है।
- 1,000 से 1,800 अंक: मध्यम एकाग्रता।
- 1,800 से अधिक अंक: अत्यधिक एकाग्रता।
उद्योग के अनुमानों के मुताबिक, भारत में एविएशन, टेलीकॉम और पेंट जैसे सेक्टर्स का HHI स्कोर 1,800 से ऊपर है।
क्रेया यूनिवर्सिटी (KREA University) के गौरव घोष और आईआईएम-बैंगलोर (IIM-Bangalore) के सुभाशीष गुप्ता द्वारा 2023 में ‘भारत में औद्योगिक एकाग्रता’ पर लिखे गए एक वर्किंग पेपर के अनुसार, आर्थिक शक्ति का केंद्रीकरण सामाजिक और राजनीतिक कारणों से अवांछनीय माना जाता है। हालांकि, इसका दूसरा पहलू यह भी है कि यह एकाग्रता कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा करने के लिए आवश्यक ‘स्केल’ (पैमाना) प्रदान करती है।
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