गांधीनगर/नई दिल्ली: गुजरात में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के तहत चल रही धांधली को लेकर एक बेहद चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। केंद्र सरकार द्वारा लोकसभा में पेश की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक, गुजरात में मनरेगा योजना के तहत पंजीकृत 22 लाख मजदूर फर्जी पाए गए हैं। यह आंकड़ा न केवल प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है, बल्कि राज्य में चल रहे भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों की ओर भी इशारा करता है।
पांच साल से चल रहा था ‘कागजी’ खेल
लोकसभा में रखे गए आंकड़ों से पता चलता है कि यह खेल पिछले पांच सालों से बेरोकटोक जारी था। रिपोर्ट के अनुसार, लाखों रुपये का भुगतान उन मजदूरों के नाम पर किया गया, जो केवल कागजों पर मौजूद थे। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इन मजदूरों के नाम हटाने को लेकर कोई स्पष्टीकरण या ठोस वजह भी नहीं दी गई है।
आंकड़ों पर एक नजर डालें तो स्थिति की गंभीरता समझ आती है:
- साल 2019-20: मनरेगा योजना से 1,54,654 मजदूरों के नाम रद्द किए गए।
- साल 2023-24: यह संख्या बढ़कर 9,75,994 तक पहुंच गई।
- पिछले पांच साल: कुल 7,49,973 जॉब कार्ड रद्द किए गए हैं।
70 करोड़ का घोटाला और मंत्री पुत्रों की गिरफ्तारी
इस नए खुलासे से पहले, इसी साल की शुरुआत में विपक्षी दल कांग्रेस ने गुजरात में मनरेगा के तहत 70 करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले का पर्दाफाश किया था। इस मामले की आंच तत्कालीन पंचायत राज्य मंत्री बच्चू खाबड़ तक पहुंची थी, जिसके बाद उनके दो बेटों को गिरफ्तार किया गया था। फिलहाल वे जमानत पर बाहर हैं।
जांच में सामने आया था कि भुगतान उन फर्मों को किया गया, जिनसे खाबड़ के दोनों बेटे जुड़े हुए थे। काम सिर्फ कागजों पर दिखाया गया था और कुछ मामलों में तो जिस जमीन पर काम होना बताया गया, वह खुद खाबड़ के परिवार के सदस्यों की थी। गौरतलब है कि पिछले महीने हुए राज्य मंत्रिमंडल के विस्तार में बच्चू खाबड़ को जगह नहीं मिली थी।
“ऊपर से नीचे तक मिलीभगत”: अमित चावड़ा
गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अमित चावड़ा, जिन्होंने दाहोद और आसपास के इलाकों में बच्चू खाबड़ के बेटों से जुड़े घोटाले को सबसे पहले उजागर किया था, ने इस मुद्दे पर तीखी प्रतिक्रिया दी है।
मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि वे लगातार विजिलेंस जांच (सतर्कता जांच) की मांग कर रहे हैं। चावड़ा का दावा है कि, “अगर विजिलेंस जांच शुरू होती है, तो करोड़ों रुपये के और भी घोटाले सामने आएंगे।” उन्होंने आरोप लगाया कि इस तरह का बड़ा फर्जीवाड़ा गांधीनगर में बैठे शीर्ष अधिकारियों से लेकर मैदानी स्तर के कर्मचारियों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं है।
गुजरात में ‘फर्जीवाड़े’ का दौर
यह मामला सिर्फ मनरेगा में फर्जी मजदूरों तक सीमित नहीं है। हाल के दिनों में गुजरात कई तरह के अजीबोगरीब और फर्जी मामलों का गवाह बना है। राज्य में कभी आदिवासी सब-प्लान के फर्जी दफ्तर पकड़े जाते हैं, तो कभी फर्जी जज, फर्जी पुलिस अधिकारी और यहां तक कि प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) के फर्जी अधिकारी भी सामने आए हैं।
मनरेगा योजना को कांग्रेस शासन के दौरान समाज के गरीब तबके, विशेषकर आदिवासियों को साल में 100 दिन का रोजगार सुनिश्चित करने के लिए शुरू किया गया था। लेकिन लोकसभा की यह रिपोर्ट बताती है कि किस तरह गरीबों के हक का पैसा कागजी मजदूरों के नाम पर डकारा जा रहा है।
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