अहमदाबाद: 12 जून की वह मनहूस तारीख, जिसने सैकड़ों हंसते-खेलते परिवारों की खुशियां छीन लीं। अहमदाबाद से गैटविक (Gatwick) जा रही फ्लाइट AI 171 के दुर्घटनाग्रस्त होने के छह महीने बीत चुके हैं, लेकिन उसका दर्द आज भी उतना ही गहरा है। इस हादसे ने न केवल 260 लोगों (विमान में सवार 241 यात्री और जमीन पर मौजूद 19 लोग) की जान ली, बल्कि पीछे छूट गए लोगों की जिंदगी भी तहस-नहस कर दी।
इस त्रासदी का सबसे बुरा असर गुजरात के उन परिवारों पर पड़ा है, जो एक बेहतर भविष्य की आस में ब्रिटेन गए थे। अब, कम से कम 10 ऐसे परिवार हैं, जो अपने टूटे सपनों, आय के खत्म होते जरियों और इमिग्रेशन (आप्रवासन) की कानूनी उलझनों से हारकर वापस अपने वतन लौटने को मजबूर हो गए हैं।
मां की लोरी और वो आखिरी वीडियो कॉल
सूरत के रहने वाले हिरेन दयानी के लिए यह हादसा किसी बुरे सपने से कम नहीं है, जिससे वे आज तक जाग नहीं पाए हैं। इस हादसे में उन्होंने अपनी मां, कैलाशबेन को खो दिया।
अपनी मां को याद करते हुए हिरेन की आवाज भर आती है, “वह लंदन में रहती थीं और मेरे बेटे के लिए खुद हालरडा (लोरी) बनाती और सुनाती थीं। 12 जून को वह अहमदाबाद एयरपोर्ट से लगातार वीडियो कॉल पर थीं, क्योंकि वह पहली बार अकेले सफर कर रही थीं। जब भी मैं उस दिन के बारे में सोचता हूं, सारी यादें आंखों के सामने तैरने लगती हैं।”
इस हादसे के बाद हिरेन ने लंदन में बिताए अपने सात साल के जीवन को अलविदा कह दिया और अपनी पत्नी नम्रता और तीन साल के बेटे वास्तु के साथ हमेशा के लिए सूरत लौट आए। हिरेन बताते हैं, “मेरी एक छोटी बहन है जो मानसिक रूप से बीमार है। मां ही उसकी एकमात्र देखभाल करने वाली थीं। पिता को हम पहले ही कार्डियक अरेस्ट में खो चुके थे।”
अब यह परिवार शून्य से शुरुआत कर रहा है। हिरेन की पत्नी नम्रता, जो पहले यूके में नेशनल हेल्थ सर्विस (NHS) के साथ काम करती थीं, ने सूरत में अपना क्लिनिक शुरू किया है। वहीं, क्लिनिकल रिसर्च साइंटिस्ट के रूप में काम करने वाले हिरेन अभी नौकरी की तलाश में हैं।
वह अफसोस जताते हुए कहते हैं, “मुझे यूके में ‘इंडेफिनिट लीव टू रिमेन’ (स्थायी निवासी का दर्जा) मिलने में बस कुछ ही महीने बाकी थे, लेकिन उस एक घटना ने सब कुछ बदल दिया।”
रोजी-रोटी छिनने से बिखरे परिवार
अमेरिका की ‘बीसली एलन लॉ फर्म’ के एविएशन वकील माइक एंड्रयूज, जो 130 से अधिक पीड़ित परिवारों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, हाल ही में अहमदाबाद, वडोदरा और सूरत में बचे लोगों से मिलने आए थे। उन्होंने एक बेहद चिंताजनक तस्वीर पेश की।
एंड्रयूज ने बताया, “हमने लीसेस्टर (Leicester) के एक परिवार से मुलाकात की, जहां घर का खर्च चलाने वाले मुख्य व्यक्ति (पति) की इस हादसे में मौत हो गई। वे अपनी पत्नी और बच्चों के साथ वेम्बली में रहते थे। उनकी मृत्यु के बाद, आय का जरिया खत्म हो गया और परिवार को मजबूरन एक सस्ते इलाके में शिफ्ट होना पड़ा।”
आर्थिक तंगी का आलम यह है कि विधवा मां और उनके 17, 18 और 20 साल के तीन बच्चों को पढ़ाई छोड़कर काम करने के लिए मजबूर होना पड़ा। एंड्रयूज कहते हैं, “यह सिर्फ एक जान का जाना नहीं है, बल्कि पूरे जीवन की दिशा बदल जाने की बात है। हमने ऐसे कई परिवारों को देखा है जो बेहतर मौकों के लिए यूके गए थे, लेकिन अब कमाई का साधन न होने के कारण वे भारत लौट रहे हैं क्योंकि वहां रहने का खर्च उठाना उनके बस की बात नहीं रही।”
गर्भ में पल रहे बच्चे ने पिता का चेहरा तक नहीं देखा
घटना की एक और दिल दहला देने वाली कहानी मोब्बशेरा वोहोरा की है। उन्होंने इस क्रैश में अपने पति परवेज और चार साल की बेटी जुवेरिया को खो दिया। परवेज एक ई-कॉमर्स कंपनी में फुल-टाइम नौकरी करने के साथ-साथ, परिवार की आय बढ़ाने के लिए फूड और राइड डिलीवरी प्लेटफॉर्म्स पर पार्ट-टाइम काम भी करते थे। वे भारत में अपने माता-पिता, नसीमबानू और हसनभाई वोहोरा को भी पैसे भेजते थे।
मोब्बशेरा, जो अब अपने भाई के घर रह रही हैं, बताती हैं, “जब यह हादसा हुआ, मैं गर्भवती थी। मेरा बच्चा अब पांच महीने का है। हम अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए सिर्फ दो साल पहले ही यूके गए थे। हम ईस्ट लंदन में रहते थे और वहां एक नई दुनिया बसाने का सपना देख रहे थे, लेकिन अब सब खत्म हो गया।”
यूके के इमिग्रेशन नियमों में बदलाव के कारण, अब उनके लिए वापस जाने का कोई रास्ता नहीं बचा है।
“वहां अब मेरा कोई नहीं बचा”
देवभूमि द्वारका के हरीश गोधनिया के पास लंदन न लौटने का एक बेहद दर्दनाक कारण है। उन्होंने अपनी पत्नी रिद्धि और तीन साल के बेटे क्रियांश को खो दिया है। हरीश कहते हैं, “अब वहां मेरा कोई नहीं बचा। मैं वहां जाकर क्या करूंगा? हम बेहतर जिंदगी के सपने लेकर विदेश गए थे, लेकिन उस हादसे ने मिनटों में मेरी पूरी दुनिया छीन ली।” भारत लौटने के बाद से वे अब तक दोबारा काम शुरू करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए हैं।
वीसा की समय सीमा और निर्वासन का डर
वडोदरा के मोहम्मदमिया मोहम्मदआसिफ शेठवाला की स्थिति शायद सबसे ज्यादा अनिश्चित है। उन्होंने अपनी पत्नी सादिकाबानू और बेटी फातिमा को खो दिया। सादिकाबानू प्राइमरी वीसा होल्डर थीं, जिनकी नौकरी के आधार पर परिवार को वीसा मिला था, जबकि फातिमा का जन्म यूके में हुआ था। पत्नी और बेटी को खोने के बाद, मोहम्मदमिया अब एक लॉजिस्टिक्स फर्म में काम तो कर रहे हैं, लेकिन उन पर इमिग्रेशन का संकट मंडरा रहा है।
उनके दोस्त युसूफ बताते हैं, “अंतिम संस्कार के बाद वे वापस यूके चले गए क्योंकि वडोदरा में रहना उनके लिए बहुत दर्दनाक था। कम से कम यूके में उन्हें हर पल हादसे की याद नहीं आती। लेकिन इमिग्रेशन कानूनों के मुताबिक, उन्हें अगले साल 26 जनवरी तक एक ‘क्वालीफाइंग एम्प्लॉयमेंट’ (मान्य रोजगार) सुरक्षित करना होगा। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो उन्हें भारत लौटने के अलावा कोई चारा नहीं होगा।”
कानूनी टीम ने आणंद के एक और मामले का जिक्र किया, जहां एक व्यक्ति अपनी पत्नी (जो प्राइमरी वीसा होल्डर थीं) को खोने के बाद भारत लौट आया। पत्नी ने दो साल पहले यूके में बसने के लिए एक निजी बैंक से पर्सनल लोन लिया था।
टीम के एक सदस्य ने बताया, “उनकी मौत के बाद भी बैंक लोन पर ब्याज जोड़ता रहा। जब परिवार ने बैंक से संपर्क किया, तो अधिकारियों ने जल्द समाधान का आश्वासन दिया है।”
इन परिवारों ने विदेश में पाई-पाई जोड़कर जो दुनिया बसाई थी, वह अब ताश के पत्तों की तरह बिखर चुकी है। 12 जून के उस भयानक विमान हादसे को छह महीने बीत चुके हैं, लेकिन बचे हुए लोगों के लिए संघर्ष और दुख का अध्याय अभी खत्म नहीं हुआ है।
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