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ट्रंप गोल्ड कार्ड: भारतीयों के लिए करोड़ों खर्च करके भी ग्रीन कार्ड की कोई गारंटी नहीं, जानिए क्या है पूरी सच्चाई

| Updated: December 12, 2025 17:49

ट्रंप गोल्ड कार्ड का सच: 4 मिलियन डॉलर (34 करोड़ रु.) खर्च करके भी कतार में खड़े रहेंगे भारतीय, जानिए क्यों यह सौदा घाटे का है?

अमेरिका में बसने का सपना देख रहे लोगों के लिए बुधवार की रात ट्रंप गोल्ड कार्ड (Trump Gold Card) की आधिकारिक वेबसाइट लाइव हो गई। वेबसाइट पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है— ‘Unlock life in America. Apply now’ (अमेरिका में जीवन की नई शुरुआत करें। अभी आवेदन करें)। लेकिन, अगर आप इन सुनहरे वादों की गहराई में जाएंगे, तो हकीकत कुछ और ही नजर आएगी।

कहावत है कि ‘हर चमकती चीज सोना नहीं होती’, और यह बात उन भारतीयों पर बिल्कुल सटीक बैठती है जो इस कार्ड के जरिए अमेरिका में परमानेंट रेजिडेंसी (PR) पाने की उम्मीद कर रहे हैं।

भारतीय आवेदकों के लिए ‘अभी आवेदन करें’ का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि उन्हें ‘अभी पीआर मिल जाएगी’। कड़वा सच तो यह है कि लाखों-करोड़ों डॉलर खर्च करने के बावजूद, उन्हें उन्हीं पुरानी और लंबी कतारों में वर्षों—या शायद दशकों—तक इंतजार करना पड़ सकता है।

एक परिवार के लिए 4 मिलियन डॉलर का झटका

इस प्रोग्राम की कीमत ही किसी आम इंसान के होश उड़ाने के लिए काफी है। नियमों के मुताबिक, अमेरिकी ट्रेजरी को 1 मिलियन डॉलर (कॉर्पोरेट स्पॉन्सरशिप के लिए 2 मिलियन डॉलर) का दान देना होगा। इसके अलावा, होमलैंड सिक्योरिटी विभाग (DHS) को हर आवेदक के लिए 15,000 डॉलर की प्रोसेसिंग फीस अलग से देनी होगी।

ग्लोबल इमिग्रेशन लॉ फर्म ‘फ्रैगोमेन’ के सीनियर काउंसलर मिच वेक्सलर ने वेबसाइट पर अपडेट किए गए नए नियमों की ओर इशारा करते हुए एक और चौंकाने वाली बात बताई है। उन्होंने कहा, “हैरानी की बात यह है कि परिवार के प्रत्येक सदस्य (पति/पत्नी या 21 वर्ष से कम उम्र के बच्चे) को भी अपना अलग से 1 मिलियन डॉलर का दान और 15,000 डॉलर की प्रोसेसिंग फीस जमा करनी होगी।”

आधिकारिक वेबसाइट पर यह स्पष्ट रूप से लिखा गया है: “यदि कोई आवेदक या कॉर्पोरेट प्रायोजक चाहता है कि उनका जीवनसाथी या अविवाहित बच्चे (21 वर्ष से कम) भी उनके साथ अमेरिका आएं, तो उन्हें शुरुआती आवेदन में ही शामिल करना होगा। यह सुनिश्चित करेगा कि परिवार को गोल्ड कार्ड के सभी विशेषाधिकार और फास्ट-ट्रैक प्रोसेसिंग मिले। लेकिन इसके लिए हर सदस्य पर 1 मिलियन डॉलर का गिफ्ट और फीस लागू होगी।”

इसका सीधा मतलब है कि चार लोगों के एक परिवार को कानूनी फीस और कागजी कार्रवाई के खर्च से पहले ही कम से कम 4 मिलियन डॉलर (लगभग 33-34 करोड़ रुपये) चुकाने होंगे।

पुरानी शराब, नई बोतल: कोई नई इमिग्रेशन कैटेगरी नहीं

इतनी भारी भरकम रकम वसूलने के बावजूद, यह प्रोग्राम इमिग्रेशन की कोई नई कैटेगरी नहीं बनाता है। न ही यह वीजा की संख्या रिजर्व करता है और न ही कोई विशेष प्राथमिकता देता है। गोल्ड कार्ड आवेदकों के लिए USCIS फॉर्म में साफ तौर पर कहा गया है कि उन्हें मौजूदा ग्रीन कार्ड रास्तों—EB-1A (असाधारण क्षमता) या EB-2 NIW (नेशनल इंटरेस्ट वेवर)—के तहत ही फाइल करना होगा। गोल्ड कार्ड के लिए कोई अलग से वर्गीकरण (Classification) नहीं है।

अमेरिकी कानूनों के तहत, रोजगार-आधारित ग्रीन कार्ड (जिसमें यह गोल्ड कार्ड भी आता है) की सालाना सीमा 1.40 लाख है, साथ ही इसमें परिवार-प्रायोजित कोटे के बचे हुए वीजा जुड़ जाते हैं। इसमें भी हर देश के लिए 7% की सीमा (per-country cap) तय है। चूँकि भारत से हाई-स्किल्ड आवेदकों की संख्या बहुत ज्यादा है, इसलिए इन श्रेणियों में पहले से ही भारी बैकलॉग है।

भारतीयों के लिए चेतावनी: सालों का लंबा इंतजार

न्यूयॉर्क स्थित इमिग्रेशन अटॉर्नी साइरस डी. मेहता ने इस स्थिति की कड़वी सच्चाई बयां की है। उनका कहना है, “अगर आप भारत में जन्मे हैं, तो ट्रंप के गोल्ड कार्ड से सावधान रहें। आप 1 मिलियन डॉलर या उससे ज्यादा खर्च करने के बाद भी भारत के लिए निर्धारित EB-1 या EB-2 के बैकलॉग में फंस जाएंगे। हो सकता है आपको ग्रीन कार्ड बहुत लंबे समय तक न मिले या शायद कभी न मिले।”

वेबसाइट पर भी दबी जुबान में लिखा है कि ‘वीजा (ग्रीन कार्ड) की उपलब्धता के आधार पर कुछ देशों के लिए प्रतीक्षा का समय एक वर्ष या उससे अधिक हो सकता है’। लेकिन भारतीय मूल के आवेदकों के लिए यह ‘एक वर्ष’ का समय वास्तविकता से कोसों दूर है।

क्या कहते हैं आंकड़े? (दिसंबर 2025 वीज़ा बुलेटिन)

समस्या की जड़ ‘प्रायोरिटी डेट’ (Priority Date) है। यह वह तारीख है जब USCIS को ग्रीन कार्ड का आवेदन मिलता है। जब तक आपकी यह तारीख ‘करंट’ (Current) नहीं हो जाती, आप ग्रीन कार्ड के लिए स्टेटस नहीं बदल सकते।

दिसंबर 2025 के वीज़ा बुलेटिन के आंकड़ों पर नजर डालें तो स्थिति स्पष्ट हो जाती है:

  • EB-1 इंडिया कैटेगरी: इसकी प्रायोरिटी डेट 15 अप्रैल, 2023 के आसपास चल रही है। यानी जिन लोगों ने इस तारीख से पहले अर्जी दी थी, सिर्फ उन्हीं की फाइल आगे बढ़ रही है।
  • EB-2 इंडिया कैटेगरी: यहाँ हालात और भी बुरे हैं। यह 15 मई, 2013 पर अटकी हुई है। यानी जिन्होंने 2013 से पहले आवेदन किया था, अभी सिर्फ उनकी प्रोसेसिंग हो रही है।

गोल्ड कार्ड के तहत दिया गया करोड़ों का दान आपको इस कतार में आगे बढ़ाने में कोई मदद नहीं करेगा।

पैसा ही काफी नहीं, काबिलियत भी साबित करनी होगी

सिर्फ पैसे देने से बात नहीं बनेगी। गोल्ड कार्ड आवेदकों को EB-1A या EB-2 NIW के कड़े मानकों को भी पूरा करना होगा। ट्रंप के कार्यकारी आदेश में यह स्पष्ट नहीं है कि क्या केवल दान देना ही काफी होगा, लेकिन मौजूदा नियम कहते हैं कि आवेदकों को अपनी योग्यता साबित करनी होगी।

  • EB-1A के लिए: आवेदक को यह दिखाना होगा कि वह अपने क्षेत्र के “शीर्ष कुछ प्रतिशत” लोगों में शामिल है। इसके लिए प्रमुख पुरस्कार, हाई-इम्पैक्ट पब्लिकेशन और अपने क्षेत्र में मौलिक योगदान जैसे सबूत देने होते हैं।
  • EB-2 NIW के लिए: इसमें ‘असाधारण क्षमता’ साबित करनी होती है, जैसे कि पेशेवर मान्यता, क्षेत्र के मुकाबले हाई सैलरी, या महत्वपूर्ण योगदान। साथ ही यह भी बताना होगा कि उनके काम का राष्ट्रीय महत्व है।

कौंसुलर इंटरव्यू का पेंच

मिच वेक्सलर का अनुमान है कि आवेदन प्रोसेस होने के बाद, गोल्ड कार्ड आवेदकों को अपने देश में अमेरिकी वाणिज्य दूतावास (Consulate) में व्यक्तिगत साक्षात्कार (In-person interview) के लिए जाना होगा। “सामान्य तौर पर, कौंसुलर प्रोसेसिंग अंतिम चरण होता है और इसमें भी कई महीने लग सकते हैं,” वेक्सलर ने बताया।

फिलहाल, यह भी स्पष्ट नहीं है कि जो विदेशी नागरिक पहले से अमेरिका में मौजूद हैं, क्या वे वहीं रहते हुए ‘एडजस्टमेंट ऑफ स्टेटस’ (Adjustment of Status) का उपयोग कर पाएंगे या नहीं। ट्रंप प्रशासन की ओर से इस पर अभी विस्तृत जानकारी का इंतजार है।

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