अहमदाबाद की किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board – JJB) ने जम्मू-कश्मीर के एक किशोर को आतंकवाद से जुड़े आरोपों से बरी कर दिया है। इस मामले में न्यायिक कार्यवाही को शुरू हुए पूरे 18 साल बीत चुके हैं। उस समय वह मात्र 14 साल का था, जब साल 2006 में उसे गिरफ्तार किया गया था।
2006 में हुई थी गिरफ्तारी
राजौरी (जम्मू-कश्मीर) का रहने वाला यह लड़का उस समय सूरत जिले के मांडवी क्षेत्र स्थित तड़केश्वर मदरसे में पढ़ाई कर रहा था। उसके साथ मदरसे के कुछ पूर्व छात्र और एक मौलवी समेत कई अन्य लोगों को भी गिरफ्तार किया गया था। इन सभी पर भारतीय दंड संहिता (IPC) और गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम (UAPA) के तहत देशद्रोह, आपराधिक साजिश और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोप लगाए गए थे।
यह किशोर 18 सितंबर 2006 को अहमदाबाद पुलिस की डिटेक्शन ऑफ क्राइम ब्रांच (DCB) द्वारा कलूपुर रेलवे स्टेशन के पास स्थित एक मुसाफिरखाना से पकड़ा गया था। उस समय पुलिस का दावा था कि उसने लश्कर-ए-तैयबा की एक बड़ी साजिश को नाकाम कर दिया है, जो 2002 के गुजरात दंगों का बदला लेने के लिए रची गई थी। इसी दौरान मदरसे में भी छापेमारी की गई और कई गिरफ्तारियां हुईं।
जांच एजेंसियों ने आरोप लगाया था कि गुजरात के मुस्लिम युवाओं को कट्टरपंथ की ओर धकेलकर उन्हें कश्मीर, बांग्लादेश और पाकिस्तान में आतंकी प्रशिक्षण के लिए भेजा जा रहा था। साथ ही, वहां से जिहादी साहित्य और सीडी बरामद होने की भी बात कही गई थी।
जेल से रिमांड होम तक का सफर
शुरुआत में इस किशोर को अन्य आरोपियों के साथ जेल में रखा गया था, लेकिन नाबालिग साबित होने के बाद उसे रिमांड होम में भेज दिया गया। 2007 में यह मामला किशोर न्याय बोर्ड को सौंपा गया। बाद में उसे ज़मानत मिल गई, इस शर्त पर कि वह अहमदाबाद से बाहर नहीं जाएगा।
गवाह बने दुश्मन
शहर की सत्र अदालत पहले ही कुछ अन्य सह-आरोपियों को बरी कर चुकी थी। वहीं, किशोर का मामला किशोर न्याय अधिनियम की धारा 14 के तहत अलग से चला। इस केस में तीन पंच गवाह – दिनेश मारवाड़ी, उमाकांत परमार और कमलेश हकाजी – अदालत में मुकर गए। उन्होंने कोर्ट को बताया कि जब वे क्राइम ब्रांच मुख्यालय (गायकवाड़ हवेली) के पास से गुजर रहे थे, तब पुलिस ने उन्हें बुलाकर पंचनामा पर हस्ताक्षर करने को कहा था।
सबूतों के अभाव में मिली राहत
जेजेबी की तीन सदस्यीय पीठ ने आखिरकार इस किशोर को सबूतों के अभाव और ‘संदेह का लाभ’ देते हुए बरी कर दिया। अपने आदेश में बोर्ड ने कहा,
“रिकॉर्ड पर उपलब्ध समूचे साक्ष्यों और उस पर हुई चर्चा को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि अभियोजन पक्ष किशोर अभियुक्त के खिलाफ आरोपों को संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है।”
बोर्ड ने आदेश दिया है कि किशोर की जमानत अगले छह महीने तक जारी रहेगी।
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