वडोदरा: केंद्रीय विश्वविद्यालय गुजरात (CUG), वडोदरा में छात्रावास मेस में नॉन-वेज भोजन शामिल करने की मांग को लेकर उठे विवाद के बीच अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) की गुजरात इकाई ने इस मांग से खुद को अलग कर लिया है।
CUG इकाई द्वारा विश्वविद्यालय प्रशासन को दिए गए ज्ञापन के कुछ दिनों बाद ही ABVP के राज्य सचिव ने साफ किया कि यह मांग संगठन की आधिकारिक नीति का हिस्सा नहीं थी और यह स्थानीय कार्यकर्ताओं द्वारा की गई “एक गलती” थी।
ABVP गुजरात के सचिव समर्थ भट्ट ने कहा, “ABVP इस मांग से औपचारिक रूप से खुद को अलग करता है। यह सच है कि हमारे कार्यकर्ता पूर्वोत्तर और केरल जैसे दक्षिणी राज्यों में रहते हैं और वहां नॉन-वेज खाते हैं, लेकिन हमारी आधिकारिक स्थिति यह नहीं है कि CUG परिसर में नॉन-वेज भोजन की अनुमति दी जाए। हमारे कार्यकर्ताओं से यह मांग करना एक गलती थी।”
उन्होंने आगे कहा, “हम केवल यह चाह रहे थे कि विश्वविद्यालय प्रशासन पूर्वोत्तर और केरल जैसे राज्यों से आने वाले छात्रों की खाद्य आवश्यकताओं का ध्यान रखे, न कि यह कि नॉन-वेज को अनिवार्य रूप से मेन्यू में जोड़ा जाए।”
क्या था मांग का मामला?
इससे पहले, CUG ABVP इकाई के अध्यक्ष मुन्ना कुमार, जो बिहार से हैं, ने विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार एच.बी. पटेल को एक ज्ञापन सौंपा था। इसमें नए मेस टेंडर में “अनियमितताओं” का हवाला देते हुए, सप्ताह में कम से कम दो दिन नॉन-वेज भोजन उपलब्ध कराने और नाश्ते में अंडा व फल शामिल करने की मांग की गई थी।
ज्ञापन में कहा गया, “CUG में 80–90% छात्र गुजरात के बाहर से आते हैं। उनकी भोजन संबंधी आवश्यकताओं को अनदेखा नहीं किया जा सकता। मेस टेंडर में छात्रों की भागीदारी के अभाव में कई खामियां हैं, जिन्हें तुरंत दूर किया जाना चाहिए।”
विश्वविद्यालय प्रशासन का जवाब
रजिस्ट्रार एच.बी. पटेल ने पुष्टि की कि उन्हें यह मांग प्राप्त हुई है, लेकिन इस पर कोई निर्णय अभी नहीं लिया गया है।
पटेल ने कहा, “नए मेस टेंडर की प्रक्रिया जारी है। अब तक नॉन-वेज खाने को शामिल नहीं किया गया है, न ही पहले किसी टेंडर में था। इस पर निर्णय लेने से पहले हमें प्रोवोस्ट और डीन स्टूडेंट वेलफेयर (DSW) से सलाह लेनी होगी।”
फिलहाल CUG के छात्रावासों में करीब 550 छात्र रहते हैं। विश्वविद्यालय ने हाल ही में गांधीनगर के सेक्टर 29 स्थित अस्थायी परिसर से वडोदरा के डभोई तालुका के कुंधेला स्थित नए स्थायी परिसर में शिफ्ट होना शुरू किया है।
विविधता और पूर्व की व्यवस्था
मुन्ना कुमार के अनुसार, यह मांग छात्रों की विविध पृष्ठभूमि और भोजन की पसंद को ध्यान में रखते हुए रखी गई थी।
उन्होंने कहा, “पहले जब छात्र गांधीनगर परिसर के बाहर रहते थे, तब वे अपनी व्यवस्था से नॉन-वेज भोजन करते थे। अब जब छात्रावास की सुविधा है, तो प्रशासन को सभी छात्रों की पसंद को ध्यान में रखते हुए व्यवस्था करनी चाहिए।”
सूत्रों के अनुसार, यह ज्ञापन विश्वविद्यालय में ABVP के कुछ कार्यकर्ताओं की बैठक के बाद बिना राज्य इकाई की जानकारी या परामर्श के सौंपा गया।
ABVP के राज्य सचिव समर्थ भट्ट ने फिर दोहराया:
“संगठन के तौर पर हमारी कोई आधिकारिक नीति नहीं है कि हम विश्वविद्यालय में नॉन-वेज भोजन की मांग करें। स्थानीय कार्यकर्ताओं ने केवल विविधता का हवाला देते हुए पूर्व की व्यवस्थाओं को ध्यान में रखकर यह ज्ञापन सौंपा।”
छात्रों ने भी जताई चिंता
वहीं, कुछ छात्रों ने बताया कि नया परिसर शहर से काफी दूर है, और वहां भोजन के सीमित विकल्प उपलब्ध हैं।
एक छात्र ने कहा, “कैम्पस मुख्य शहर से बहुत दूर है, इसलिए हमारे पास खाने-पीने के बहुत सीमित विकल्प हैं। ऐसे में मेस मेन्यू को सभी छात्रों की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर तैयार किया जाना चाहिए।”
गुजरात में मांसाहार की स्थिति
गुजरात में शाकाहार का चलन ऐतिहासिक रूप से नहीं रहा है। हालाँकि, यह एक तरह की राज्य-प्रायोजित मूल्य-व्यवस्था है जो भाजपा के शासन में एक तरह से संस्थागत हो गई है। दिलचस्प बात यह है कि 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, गुजरात की 39 प्रतिशत से ज़्यादा आबादी खुद को मांसाहारी बताती है। और गौर करें तो राज्य की आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी सिर्फ़ नौ प्रतिशत है। इस तरह, यह धारणा गलत साबित होती है कि सिर्फ़ मुसलमान ही मांस खाते हैं।
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