अहमदाबाद: सर्दियों की सुहानी सुबह और शाम के समय अहमदाबाद की सड़कें जॉगर्स और फिटनेस के शौकीनों से गुलजार हो जाती हैं। शहर की जीवंत संस्कृति और तेजी से हो रहे शहरीकरण की चर्चा हर जगह है, लेकिन इस चमक-धमक के बीच एक कड़वा सच छिपा है। सेप्ट यूनिवर्सिटी (CEPT University) के छात्रों द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन ने शहर की एक चिंताजनक तस्वीर पेश की है।
अध्ययन के मुताबिक, अहमदाबाद में प्रति व्यक्ति (per capita) खुली सार्वजनिक जगह महज 0.5 वर्ग मीटर है। यह आंकड़ा भारत के अन्य प्रमुख शहरों की तुलना में बेहद कम है, जो इस बात का संकेत है कि शहर में ‘सांस लेने वाली जगहों’ की भारी कमी है।
मानकों से कोसों दूर है अहमदाबाद
सेप्ट यूनिवर्सिटी के ‘सिटी स्टूडियो प्रोजेक्ट’ के तहत किए गए इस अध्ययन में यह बात सामने आई है कि शहरी और क्षेत्रीय विकास योजना निर्माण और कार्यान्वयन (URDPFI) के दिशा-निर्देशों के अनुसार, प्रति व्यक्ति 10 से 12 वर्ग मीटर खुली जगह होनी चाहिए। लेकिन अहमदाबाद इस मानक के आसपास भी नहीं है।
अगर हम अन्य महानगरों से तुलना करें, तो मुंबई में यह आंकड़ा 1.08 वर्ग मीटर, चेन्नई में 0.81 वर्ग मीटर और कोलकाता में 0.67 वर्ग मीटर है। यानी भीड़भाड़ के लिए मशहूर मुंबई में भी अहमदाबाद से दोगुनी खुली जगह मौजूद है।
यह व्यापक विश्लेषण 50 से अधिक छात्रों द्वारा किया गया है और इसे सेप्ट यूनिवर्सिटी की विंटर प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया है।
पूर्व और पश्चिम के बीच गहरी खाई
विशेषज्ञों का कहना है कि भले ही शहर लॉ गार्डन, परिमल गार्डन, साबरमती रिवरफ्रंट और कांकरिया लेकफ्रंट जैसी बड़ी जगहों पर गर्व कर सकता है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। शहर के अधिकांश पार्क बेहद छोटे हैं। अध्ययन में शहर के विकास में एक असमानता भी देखी गई है। शहर के पश्चिमी इलाकों में हरियाली और खुली जगहें पूर्वी इलाकों की तुलना में ज्यादा हैं, जबकि पूर्वी हिस्सा कंक्रीट से भरा (greyer) नजर आता है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?
सेप्ट यूनिवर्सिटी में पीजी फाउंडेशन प्रोग्राम के प्रमुख, प्रोफेसर रुतुल जोशी ने बदलाव की वकालत की है। उन्होंने कहा, “मौजूदा आंकड़े अनुशंसित औसत से काफी कम हैं। इसे बदलने की सख्त जरूरत है क्योंकि हमने देखा है कि नागरिक हर छोटे से छोटे ग्रीन पैच का भी भरपूर उपयोग करते हैं। शहर के पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों के बीच भी भारी विसंगति है।”
प्रो. जोशी ने सुझाव दिया कि टाउन प्लानिंग (TP) स्कीम के जरिए कई योजनाओं को मिलाकर बड़े पार्क बनाए जाने चाहिए। आवासीय और वाणिज्यिक जगहों की नीलामी से पहले प्रमुख खुली जगहों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
जमीन पर क्या हैं आंकड़े?
अहमदाबाद के 357 पार्कों के विश्लेषण से चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं:
- केवल 13% पार्कों का औसत क्षेत्रफल 192 वर्ग मीटर है।
- कम्युनिटी लेवल के पार्कों का औसत सिर्फ 145 वर्ग मीटर है।
- पड़ोस (Neighborhood) के स्तर पर पार्क औसतन मात्र 48 वर्ग मीटर के हैं।
अगर हम इलाकों की बात करें, तो वाडज (Vadaj) के पास अपने कुल क्षेत्रफल का केवल 0.3% हिस्सा ही खुली सार्वजनिक जगह के रूप में है। वहीं, बोपल में यह 0.7% और थलतेज में 1.6% है।
नागरिकों का दर्द
वेजलपुर के निवासी सार्थक पंड्या जैसे आम लोग अच्छे पार्कों की कमी महसूस करते हैं। उन्होंने बताया, “मैं अक्सर अपने बच्चों को साइकिलिंग के लिए साबरमती रिवरफ्रंट ले जाता हूं। अगर घर के आसपास कोई अच्छा पार्क हो, तो वह न केवल टहलने और योग जैसी गतिविधियों को बढ़ावा देगा, बल्कि बुजुर्गों के लिए भी एक मिलन स्थल का काम करेगा।”
पार्क तक पहुँचने के लिए लंबी दूरी
प्रदर्शनी में शामिल एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि अहमदाबाद के 40% परिवारों को सार्वजनिक पार्क खोजने के लिए 300 मीटर से ज्यादा का सफर तय करना पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के ‘3-30-300’ के नियम (हरियाली और दूरी का मानक) के विपरीत, अध्ययन में पाया गया कि केवल 28% पेड़ ही सार्वजनिक दायरे (public realm) में हैं।
जैसे-जैसे अहमदाबाद का विस्तार हो रहा है, खुली जगहों की इस कमी को दूर करना बेहद जरूरी हो गया है, ताकि नागरिकों को एक स्वस्थ और टिकाऊ शहरी वातावरण मिल सके।
यह भी पढ़ें-










