अहमदाबाद में टेकऑफ़ के तुरंत बाद हुए एयर इंडिया की फ्लाइट 171 के हादसे को अब ढाई महीने से अधिक समय बीत चुका है। इस दुर्घटना में विमान में सवार 241 यात्रियों की जान चली गई थी, जबकि ज़मीन पर मौजूद 19 लोग भी मारे गए थे। हालांकि, अब तक सिर्फ़ एक प्रारंभिक रिपोर्ट सामने आई है, जिसने जवाब देने से ज्यादा सवाल खड़े कर दिए हैं।
प्रारंभिक रिपोर्ट पर उठे सवाल
एयरक्राफ्ट एक्सिडेंट इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो (AAIB) ने 12 जुलाई को जारी अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में बताया कि बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर के दोनों इंजनों में ईंधन आपूर्ति अचानक बंद हो गई थी, जिससे पायलट असमंजस में पड़ गए। हालांकि, रिपोर्ट में किसी भी पायलट या बोइंग कंपनी पर सीधा आरोप नहीं लगाया गया।
परिवारों ने लीगल मदद की ओर रुख किया
भारत और विदेश में रह रहे पीड़ित परिवारों ने अमेरिका स्थित मशहूर एविएशन लॉ फर्म Beasley Allen से संपर्क किया है। इस फर्म के वरिष्ठ वकील माइक एंड्रयूज़ (57) इस मामले में बोइंग के खिलाफ प्रोडक्ट लाइबिलिटी यानी उत्पाद दोष से जुड़ी दावेदारी पर विचार कर रहे हैं। वे पहले भी कई बड़े विमान हादसों के मामलों में मुकदमे लड़ चुके हैं, जिनमें 2018-19 के बीच हुई बोइंग 737 मैक्स दुर्घटनाएं शामिल हैं, जिनमें 346 लोगों की मौत हुई थी। उस मामले में बोइंग को भारी भरकम मुआवज़ा देना पड़ा था।
माइक एंड्रयूज़ ने क्या कहा?
माइक एंड्रयूज़ का कहना है कि यह रिपोर्ट अधूरी है और पायलटों पर ज़रूरत से ज़्यादा ध्यान केंद्रित करती है। उनका कहना है कि जब तक फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (ब्लैक बॉक्स) की पूरी जानकारी सामने नहीं आती, तब तक सच्चाई का अंदाज़ा लगाना मुश्किल है।
एंड्रयूज़ ने पीड़ित परिवारों से मुलाकात की है। वे बताते हैं कि परिवार दो मुख्य बातों को लेकर चिंतित हैं—
- उन्हें पारदर्शिता और पूरी जानकारी चाहिए कि हादसा क्यों और कैसे हुआ।
- वे चाहते हैं कि इस घटना से सबक लिया जाए ताकि भविष्य में ऐसी घटना कभी दोहराई न जाए।
कुछ परिवार अब भी गहरे सदमे और दुख में हैं, कुछ गुस्से में और कई परिवार जवाब की प्रतीक्षा में धैर्यपूर्वक बैठे हैं।
अकेले बचे यात्री और उनका दर्द
इस हादसे के इकलौते जीवित बचे यात्री विश्वास कुमार रमेश और उनके परिवार से भी वकील की टीम मिली। एंड्रयूज़ ने बताया कि यह परिवार गहरे दुख में है क्योंकि विश्वास बच तो गए, लेकिन उन्होंने अपने ही परिवार के एक सदस्य को खो दिया। ऐसे में उनकी स्थिति बेहद दयनीय है।
घटनास्थल का दौरा
एंड्रयूज़ ने जून के अंत में पहली बार अहमदाबाद स्थित क्रैश साइट का दौरा किया। उस समय वहां पुलिस का कड़ा पहरा था। लेकिन पहचान बताने पर उन्हें उस जगह ले जाया गया, जहां से विश्वास बाहर निकले थे। दूसरी बार वे परिवारों के साथ कैंडल लाइट मेमोरियल में शामिल हुए। उनका कहना है कि घटनास्थल देखने से हादसे की सच्चाई को समझने में मदद मिलती है और पीड़ित परिवारों से बातचीत भी ज्यादा संवेदनशीलता के साथ हो पाती है।
जांच रिपोर्ट पर सवाल
एंड्रयूज़ ने साफ़ कहा कि प्रारंभिक रिपोर्ट अधूरी है और संदर्भ से बाहर जानकारी देती है। इसमें ईंधन स्विच की स्थिति का ज़िक्र है, लेकिन यह जानकारी अपने आप में पर्याप्त नहीं है। रिपोर्ट से ऐसा लगता है कि फोकस पायलटों की क्रियाओं पर है, जबकि विमान और उसके तकनीकी पहलुओं पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया।
उनका कहना है कि अमेरिकी एफएए और बोइंग की पिछली रिपोर्टों में ड्रीमलाइनर 787 में कई समस्याओं का उल्लेख हुआ है, जो इस हादसे से जुड़ी हो सकती हैं। इसलिए जल्दबाज़ी में दी गई रिपोर्ट सिर्फ़ अटकलों को जन्म देती है।
क्यों देर हो रही है अंतिम रिपोर्ट में?
एंड्रयूज़ का मानना है कि विस्तृत रिपोर्ट आने में समय लगना स्वाभाविक है। ब्लैक बॉक्स में दर्ज डेटा बेहद विशाल होता है और भले ही यह उड़ान कुछ ही मिनटों की रही हो, लेकिन रिकॉर्ड हुए सैकड़ों पैनल डेटा को समझने और विश्लेषण करने में समय लगता है। उनका कहना है कि बेहतर है जांच एजेंसियां जल्दबाज़ी न करें और ठोस नतीजे पेश करें।
मुआवज़े और जवाबदेही का सवाल
एंड्रयूज़ ने कहा कि कोई भी मुआवज़ा खोए हुए जीवन की भरपाई नहीं कर सकता, लेकिन यह ज़रूरी है कि अगर गलती बोइंग की डिज़ाइन या मैन्युफैक्चरिंग में पाई जाती है, तो मुआवज़े की राशि इतनी हो कि भविष्य में कंपनियां ऐसी लापरवाही न करें।
क्या सच्चाई सामने आएगी?
उनका मानना है कि यदि फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर की पूरी जानकारी सार्वजनिक की जाती है, तो सच ज़रूर सामने आएगा। उनका कहना है कि अक्सर वास्तविक जवाब परिवारों और उनके कानूनी प्रयासों के दबाव में निकलकर आता है, क्योंकि कंपनियां और नियामक संस्थाएं खुद पूरी तरह पारदर्शी नहीं रहतीं।
कानूनी प्रक्रिया और परिवारों की उम्मीदें
अब तक 100 से ज्यादा परिवार इस कानूनी टीम से जुड़ चुके हैं। एंड्रयूज़ बताते हैं कि अधिकतर परिवार आपसी बातचीत और जानकारी साझा करने के बाद इस प्रक्रिया में शामिल हो रहे हैं। उनका कहना है कि यह मुकदमा परिवारों से शुल्क लेकर नहीं, बल्कि कॉन्टिजेंसी बेसिस पर लड़ा जाएगा— यानी अगर मुआवज़ा मिलेगा तभी फीस ली जाएगी, अन्यथा नहीं।
एंड्रयूज़ के अनुसार, अंतिम रिपोर्ट आने में लगभग एक साल लग सकता है। उन्होंने अमेरिकी कानून के तहत सूचना अधिकार (FOIA) के ज़रिए वहां की एजेंसियों से डेटा साझा करने का अनुरोध भी किया है, क्योंकि कुछ जानकारियां अमेरिकी नियामकों तक पहुंचाई गई हैं।
उन्होंने साफ कहा कि अभी तक बोइंग, एयर इंडिया या भारतीय जांच एजेंसियों से उनका कोई औपचारिक संपर्क नहीं हुआ है। उनका ध्यान सिर्फ़ एक बात पर है— सच्चाई सामने आनी चाहिए और परिवारों को न्याय मिलना चाहिए।
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