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अमित शाह का सेवानिवृत्ति के बाद का प्लान: वेद-उपनिषद पढ़ेंगे, प्राकृतिक खेती को देंगे बढ़ावा

| Updated: July 10, 2025 11:37

अहमदाबाद में ‘सहकार संवाद’ के दौरान अमित शाह ने रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों पर चिंता जताई और प्राकृतिक खेती को स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए लाभकारी बताया।

देश के गृह मंत्री और सहकारिता मंत्री अमित शाह ने बुधवार को अपने राजनीतिक जीवन के बाद की योजनाओं को लेकर एक व्यक्तिगत और आत्मीय झलक साझा की। अहमदाबाद में आयोजित ‘सहकार संवाद’ कार्यक्रम के दौरान शाह ने कहा कि वह राजनीति से संन्यास लेने के बाद वेदों, उपनिषदों और प्राकृतिक खेती में जीवन समर्पित करना चाहते हैं।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रमुख रणनीतिकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे भरोसेमंद सहयोगियों में गिने जाने वाले शाह का यह बयान राजनीति की व्यस्तता से अलग, एक शांत जीवन की ओर झुकाव दिखाता है। 60 वर्षीय शाह ने कहा:

“मैंने तय किया है कि रिटायरमेंट के बाद अपने जीवन का शेष समय वेद, उपनिषद और प्राकृतिक खेती को समर्पित करूंगा।”

हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि वे धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किस रूप में करेंगे, लेकिन प्राकृतिक खेती को लेकर उन्होंने विस्तार से अपने विचार साझा किए।

शाह ने रासायनिक खादों से उपजाए गए अनाज को स्वास्थ्य समस्याओं का प्रमुख कारण बताया।

उन्होंने कहा, “रासायनिक खादों से उगाए गए गेहूं से कैंसर, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और थायरॉइड जैसी बीमारियां होती हैं। पहले हमें इसका इतना ज्ञान नहीं था। लेकिन अब यह समझ में आ गया है कि अगर हम बिना रसायन वाले अनाज का सेवन करें तो दवाइयों की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।”

शाह ने यह भी बताया कि वे स्वयं अपने खेत में प्राकृतिक खेती कर रहे हैं, और उसका उत्पादन रासायनिक खेती से कहीं बेहतर है।

उन्होंने दावा किया, “मैंने अपने खेत में प्राकृतिक खेती की है, और उसमें पैदावार करीब 1.5 गुना ज्यादा हुई है।”

उन्होंने पर्यावरण के प्रति प्राकृतिक खेती के फायदों को भी रेखांकित किया।

शाह ने बताया, “जब तेज़ बारिश होती है, तो सामान्य खेती में पानी बहकर चला जाता है। लेकिन जैविक खेती में एक भी बूंद नहीं बहती – वह ज़मीन में समा जाती है। यह इसलिए होता है क्योंकि प्राकृतिक खेती में पानी को रोकने वाले कैचमेंट एरिया बनते हैं, जिन्हें रासायनिक खादों ने नष्ट कर दिया है।”

शाह ने मिट्टी में रहने वाले केंचुओं के मरने पर चिंता जताते हुए कहा:

उन्होंने कहा, “केंचुए प्राकृतिक खाद के कारखाने होते हैं। लेकिन रासायनिक खादों ने इन्हें समाप्त कर दिया है। ये जीव खुद ही यूरिया, डीएपी और एमपीके जैसे पोषक तत्व बनाते हैं।”

कार्यक्रम के दौरान उन्होंने अपनी मंत्री पद की भूमिका को लेकर भी बात की और सहकारिता मंत्रालय को किसानों, गरीबों, गांवों और पशुधन के लिए विशेष महत्व का बताया।

उन्होंने कहा, “जब मुझे देश का गृह मंत्री बनाया गया, तो लोगों ने कहा कि मुझे एक बहुत महत्वपूर्ण मंत्रालय मिला है। लेकिन जिस दिन मुझे सहकारिता मंत्री नियुक्त किया गया, मुझे लगा कि मुझे इससे भी बड़ी ज़िम्मेदारी मिली है – जो देश के किसानों, गरीबों, गांवों और पशुओं की सेवा करती है।”

‘सहकार संवाद’ कार्यक्रम में राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश से आईं महिला सहकारी कार्यकर्ताओं ने भी अपने अनुभव साझा किए, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि सरकार सहकारी मॉडल के ज़रिए ग्रामीण भारत और महिलाओं को सशक्त बनाने पर ज़ोर दे रही है।

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