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गुजरात: गोहत्या मामले में ‘ऐतिहासिक’ फैसला, एक ही परिवार के तीन सदस्यों को उम्रकैद और 18 लाख का जुर्माना

| Updated: November 22, 2025 13:29

अमरेली कोर्ट का बड़ा फैसला: बछड़े की हत्या के जुर्म में चाचा-भतीजों को ताउम्र जेल, 18 लाख रुपये का जुर्माना भरने का आदेश

अमरेली: गुजरात के अमरेली शहर का ‘मोटा खाकीवाड़’ इलाका इन दिनों एक अदालती फैसले के कारण सुर्खियों में है। 11 नवंबर की तारीख यहाँ के इतिहास के पन्नों में एक ऐसे फैसले के साथ दर्ज हो गई, जिसने पूरे राज्य का ध्यान अपनी ओर खींचा है। यहाँ की एक अदालत ने गोहत्या के जुर्म में एक ही परिवार के तीन सदस्यों को न केवल उम्रकैद की सजा सुनाई, बल्कि उन पर सामूहिक रूप से 18 लाख रुपये से अधिक का भारी-भरकम जुर्माना भी लगाया।

पिछले तीन वर्षों के आंकड़ों पर नजर डालें तो अमरेली जिले में ‘गुजरात पशु संरक्षण अधिनियम’ के तहत दर्ज कम से कम 14 मामलों में अब तक 24 लोगों को दोषी ठहराया जा चुका है। लेकिन, सोलंकी परिवार का यह मामला सजा की गंभीरता और एक ही घर के तीन लोगों के शामिल होने के कारण सबसे अलग है। दोषियों में दो सगे भाई—कासिम (20 वर्ष) और अकरम (30 वर्ष)—तथा उनके चाचा सत्तार (52 वर्ष) शामिल हैं।

मोहल्ले में सन्नाटा और परिवार पर संकट

मोटा खाकीवाड़ एक मिश्रित आबादी वाला क्षेत्र है, जहाँ हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग रहते हैं। सोलंकी परिवार की तरह यहाँ कई लोग पारंपरिक रूप से कसाई का काम करते हैं। फैसले के बाद से इलाके में एक अजीब सी खामोशी है। पड़ोसी “हमें कुछ नहीं पता” कहकर बात टाल रहे हैं, वहीं परिवार के सदस्य भी परिणामों के डर से कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं।

परिवार के एक परिचित ने बताया कि चाचा और दोनों भतीजे एक साथ रहते थे। कासिम अभी अविवाहित है, जबकि अकरम शादीशुदा है और उसके चार बच्चे हैं। उन्होंने कहा, “पूरा परिवार सदमे में है। आमतौर पर किसी इंसान की हत्या करने पर उम्रकैद या मौत की सजा होती है, लेकिन यहाँ बछड़े की हत्या के लिए तीन लोगों को ताउम्र जेल में रहने की सजा मिली है।”

सबसे बड़ी चिंता यह है कि घर के तीनों कमाने वाले अब जेल की सलाखों के पीछे हैं। ऐसे में 18 लाख रुपये का जुर्माना भरना या सजा के खिलाफ अपील के लिए संसाधन जुटाना परिवार के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है।

क्या था पूरा मामला?

अकरम, जिसे इस मामले में सजा मिली है, वह पहले से ही गोहत्या के एक पुराने मामले में जमानत पर बाहर था। उस पुराने मामले में उसे तीन साल की सश्रम कारावास और 5,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई थी।

ताजा मामले के मुताबिक, 6 नवंबर 2023 को पुलिस को गोहत्या और बीफ बेचे जाने की गुप्त सूचना मिली थी। इस आधार पर पुलिस ने सोलंकी परिवार के घर पर छापा मारा। आरोप है कि वहां से बीफ, काटे गए बछड़े के अवशेष और जानवर काटने वाले उपकरण बरामद हुए। बाद में, एक पशु चिकित्सक और फॉरेंसिक जांच ने पुष्टि की कि बरामद मांस गाय का ही था।

अदालत की सख्त टिप्पणी और सजा

अमरेली सत्र न्यायालय ने न केवल ‘गुजरात पशु संरक्षण अधिनियम’ के तहत सजा सुनाई, बल्कि दोषियों को धार्मिक भावनाओं को आहत करने और मवेशियों को मारने या अपंग करने जैसे अपराधों का भी दोषी पाया। अदालत ने प्रत्येक दोषी पर 6.08 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है और स्पष्ट किया है कि जुर्माना न भरने की स्थिति में उन्हें अतिरिक्त सजा काटनी होगी।

गौरतलब है कि साल 2017 में भाजपा सरकार ने इस अधिनियम में संशोधन कर गोहत्या के लिए अधिकतम सजा को सात साल से बढ़ाकर उम्रकैद कर दिया था। राज्य सरकार ने इस फैसले को “ऐतिहासिक” बताते हुए इसे गो-संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का प्रतीक बताया है।

सरकारी वकील और न्यायाधीश की भूमिका

अमरेली जिले में गोहत्या मामलों के विशेष लोक अभियोजक चंद्रेश मेहता, जो विश्व हिंदू परिषद (विहिप) से जुड़े हैं, ने इस फैसले को एक नजीर बताया। उनका कहना है कि समय पर मिली सूचना, सफल पुलिस रेड, मजबूत वैज्ञानिक और दस्तावेजी सबूतों के कारण यह सजा संभव हो पाई। उन्होंने कहा कि इससे भविष्य में ऐसे अपराध करने वालों में डर पैदा होगा।

दिलचस्प बात यह है कि हालिया 14 दोषसिद्धियों में से करीब 11 मामले मेहता ने ही संभाले हैं। इनमें से 9 फैसले सत्र न्यायाधीश रिजवाना बुखारी की अदालत से आए हैं, जिसमें सोलंकी परिवार का मामला भी शामिल है। मेहता का दावा है कि इन सख्त फैसलों के कारण अमरेली में गोहत्या के मामलों में भारी कमी आई है और पिछले दो सालों में केवल एक-दो मामले ही सामने आए हैं।

स्थानीय प्रतिक्रिया और आवारा पशुओं का मुद्दा

इस फैसले पर स्थानीय लोगों और जनप्रतिनिधियों की मिली-जुली प्रतिक्रिया है। वार्ड नंबर 9 के पार्षद इकबाल बिलाकिया ने कहा कि अगर सोलंकी परिवार ने अपराध किया है, तो सजा सही है। हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि कई मामलों में बिना ठोस सबूतों के भी सजाएं हो रही हैं और प्रशासन पर विहिप जैसे समूहों का दबाव रहता है।

वहीं, स्थानीय निवासी नितिन कार्या ने गाय को पवित्र मानते हुए अदालती कार्रवाई का स्वागत किया, लेकिन एक अहम मुद्दे की ओर भी ध्यान दिलाया। उन्होंने और पार्षद बिलाकिया ने एक सुर में कहा कि अगर सरकार गायों की इतनी ही चिंता करती है, तो उसे सड़कों पर घूमने वाली आवारा गायों की समस्या का भी समाधान निकालना चाहिए।

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