अहमदाबाद/गांधीनगर: गुजरात की राजनीति शतरंज की बिसात की तरह है, जहां हर चाल, हर नियुक्ति और हर इस्तीफे के पीछे एक गहरा अर्थ छिपा होता है। उत्तर प्रदेश की वर्तमान राज्यपाल और गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल का राजनीतिक सफर इसका सटीक उदाहरण है। चाहे मुख्यमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल रहा हो या अपने उत्तराधिकारी को चुनने की जद्दोजहद, आनंदीबेन हमेशा अपने बेबाक अंदाज के लिए जानी जाती रही हैं।
हाल ही में, उन्होंने गुजरात में शराबबंदी (दारूबंदी) को लेकर चल रही चर्चाओं के बीच एक बड़ा बयान दिया है। जहां एक ओर राज्य सरकार कुछ चुनिंदा जगहों पर शराबबंदी में ढील देने की योजना पर विचार कर रही है, वहीं आनंदीबेन पटेल ने इस नीति में किसी भी तरह की ढील का कड़ा विरोध किया है। उन्होंने शराबबंदी को सीधे तौर पर महिलाओं की सुरक्षा से जोड़ते हुए अपनी बात रखी।
‘गुजरात में बेटियां सुरक्षित हैं, यूपी में स्थिति अलग है’
आनंदीबेन पटेल ने अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए उत्तर प्रदेश और गुजरात के माहौल की तुलना की। उन्होंने कहा, “हमारे गुजरात में महिलाएं रात के चार बजे तक गरबा खेल सकती हैं और यह सिर्फ इसलिए संभव है क्योंकि यहां दारूबंदी (शराबबंदी) लागू है। वहीं, उत्तर प्रदेश में आज भी कई जगहों पर ऐसे हालात हैं कि महिलाएं घर से बाहर निकलने में भी सुरक्षित महसूस नहीं करतीं।”
उन्होंने आगे चेतावनी देते हुए कहा, “हमें कोई भी कदम उठाने से पहले बहुत सोच-विचार करना चाहिए कि उसके परिणाम क्या होंगे। जरा सोचिए, यहां (गुजरात) में जो अधिकारी एसीएस (अतिरिक्त मुख्य सचिव) और सीएस (मुख्य सचिव) के पदों पर रहे, वे रिटायरमेंट के बाद कहां बसे? क्या वे अपने गृह राज्य वापस गए या गुजरात में बस गए? वे गुजरात में क्यों बसे? क्योंकि वे अपनी बेटियों और महिलाओं के लिए शांति चाहते हैं। इस शांति को किसी भी कीमत पर भंग नहीं होने दिया जाना चाहिए।”
यह बयान उन्होंने अपनी बायोग्राफी ‘चुनौतियां मुझे पसंद हैं’ (गुजराती संस्करण) के विमोचन समारोह में दिया। इस कार्यक्रम में पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल भी मौजूद थे।
शराबबंदी की हकीकत और विपक्ष के सवाल
गौरतलब है कि गुजरात में 1948 से शराबबंदी कानून लागू है, लेकिन जमीनी हकीकत अक्सर सवालों के घेरे में रहती है। एक अवैध नेटवर्क के जरिए आज भी शराब उपलब्ध हो जाती है और कई बार पुलिस की मिलीभगत की खबरें भी सामने आती हैं। जहरीली शराब (मेथनॉल मिलावटी) के कारण राज्य में लट्ठमार (hooch) त्रासदियां भी हो चुकी हैं, जिनमें कई लोगों की जान गई है।

हाल ही में मीडिया रिपोर्ट्स में सामने आया कि कांग्रेस विधायक जिग्नेश मेवानी ने थराद में एक स्कूल के पास कथित तौर पर शराब और ड्रग्स मिलने के बाद राज्य प्रशासन की कड़ी आलोचना की। उन्होंने चेतावनी दी कि पुलिस अधिकारियों को अपनी नौकरी गंवानी पड़ सकती है। मेवानी ने आरोप लगाया कि राज्य में पूर्ण शराबबंदी होने के बावजूद गृह मंत्री हर्ष संघवी पुलिस को संरक्षण दे रहे हैं।
एक मीडिया संस्थान से बातचीत में मेवानी ने दावा किया कि गुजरात में अवैध शराब का कारोबार 1,500 करोड़ रुपये से अधिक का है। उन्होंने कहा, “स्थानीय नेताओं से लेकर कॉन्स्टेबल और गांधीनगर में सत्ता में बैठे लोगों तक, सभी का इस अवैध धंधे से कोई न कोई संबंध है और वे इसका लाभ उठा रहे हैं। लेकिन जब भी जहरीली शराब से मौतें होती हैं, तो मरने वाला हमेशा गरीब ही होता है।”

अमित शाह को बताया ‘चाणक्य’, खुद को बताया ‘शिक्षक’
कार्यक्रम के दौरान आनंदीबेन पटेल ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की जमकर तारीफ की और उन्हें राजनीति का “चाणक्य” बताया। गुजरात कैबिनेट में साथ काम करने के दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि शाह की राजनीतिक समझ और प्रभाव बहुत गहरा है। उन्होंने कहा कि शाह ही तय करते हैं कि “किसे प्रमोट करना है और किसे नहीं।”
उन्होंने कहा, “अमित भाई तो नरेंद्र भाई (पीएम मोदी) को भी बता देते थे कि क्या किया जाना चाहिए, क्योंकि हम कैबिनेट में साथ बैठते थे। ये सब चीजें उन्हें शोभा देती हैं, मुझे नहीं। मेरे अंदर एक शिक्षक की आत्मा है… मैं पढ़ाने के अलावा और कुछ नहीं कर सकती। बाकी सब उनके (शाह) लिए है।”
अतीत के पन्ने: इस्तीफा और सत्ता का संघर्ष
आनंदीबेन पटेल के इस बयान ने उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल की यादें भी ताजा कर दी हैं। 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनकर दिल्ली गए, तो आनंदीबेन गुजरात की मुख्यमंत्री बनीं। उनका लगभग दो साल का कार्यकाल पाटीदार आंदोलन और दलित अशांति जैसी चुनौतियों से भरा रहा। पाटीदार समुदाय उस समय सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की मांग कर रहा था।
दबाव बढ़ता गया और अंततः उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी। उन्होंने कारण बताया कि वह 75 वर्ष की उम्र के करीब पहुंच रही हैं, जो बीजेपी में नेताओं के लिए एक अनौपचारिक रिटायरमेंट सीमा मानी जाती है। हालांकि, राजनीतिक जानकारों का मानना था कि अमित शाह के साथ उनके कामकाजी रिश्ते हमेशा तनावपूर्ण रहे।
इस्तीफे के बाद सत्ता के लिए ‘गेम ऑफ थ्रोन्स’ शुरू हुआ। आनंदीबेन चाहती थीं कि नितिन पटेल कमान संभालें, लेकिन बाजी विजय रूपाणी के हाथ लगी। यह उस समय पार्टी के भीतर शक्ति संतुलन का स्पष्ट संकेत था।
आज जब शराब नीति में बदलाव की सुगबुगाहट है, आनंदीबेन का यह बयान फिर से साबित करता है कि वे अपने सिद्धांतों और गुजरात के सामाजिक ताने-बाने को लेकर कितनी गंभीर हैं।
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