ऑस्ट्रेलिया में 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर प्रतिबंध (Ban) अब एक हकीकत बन चुका है। एक तरफ जहाँ सरकार और कई माता-पिता इसे बच्चों की सुरक्षा के लिए जरूरी मान रहे हैं, वहीं किशोरों (Teens) का कहना है कि यह उनकी समझदारी पर सवाल उठाने जैसा है। सुदूर इलाकों में रहने वाले बच्चों से लेकर शहरों में रहने वाले छात्रों तक, इस फैसले का व्यापक असर देखने को मिल रहा है।
ब्रिसबेन से 1600 किमी दूर: सन्नाटे में गूंजती नाराजगी
गर्मियों की छुट्टियां शुरू हो चुकी हैं, लेकिन 15 साल की ब्रीआना ईस्टन के लिए यह आराम का समय नहीं है। वह अपने परिवार के मवेशी स्टेशन (Cattle Station) पर कड़ी मेहनत कर रही हैं। ब्रिसबेन से लगभग 1,600 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित ऑस्ट्रेलिया के इस सुनसान इलाके में, ब्रीआना को अपनी आजादी और खुलापन पसंद है।
पशुपालन का यह काम उनके खून में है, और यहाँ का विशाल बीहड़ ही उनका बैकयार्ड है। लेकिन, अधिकांश किशोरों की तरह, वह भी अपने स्मार्टफोन से जुड़ी हुई हैं। मवेशियों को चराने के लिए वह जिस ‘ऑल-टेरेन बग्गी’ का उपयोग करती हैं, उसमें इंटरनेट एक्सटेंडर लगा है। इससे वह काम करते हुए भी स्नैपचैट पर दोस्तों को मैसेज कर पाती थीं और कभी-कभी भाई-बहनों के साथ टिकटॉक वीडियो भी बनाती थीं।
ब्रीआना के लिए यह सिर्फ मनोरंजन नहीं था। उनके लगभग सभी दोस्त कम से कम 100 किलोमीटर दूर रहते हैं, ऐसे में सोशल मीडिया ही उनके लिए एक ‘लाइफलाइन’ थी। लेकिन अब, ऑस्ट्रेलिया में बच्चों के लिए सोशल मीडिया बैन लागू होने के बाद, यह संपर्क टूट गया है।
ब्रीआना कहती हैं, “हमारा सोशल मीडिया छीनना, एक तरह से हमसे यह छीनना है कि हम एक-दूसरे से बात कैसे करें।” हालाँकि वह अभी भी टेक्स्ट मैसेज कर सकती हैं, लेकिन उनका कहना है कि यह स्नैपचैट या फोटो पर ‘लाइक’ करने जैसा नहीं है, जो उन्हें दूर रहते हुए भी दोस्तों की जिंदगी का हिस्सा बनाए रखता था।
क्या यह सरकार की दखलअंदाजी है?
ब्रीआना की माँ, मेगन ईस्टन के लिए यह प्रतिबंध मिली-जुली भावनाओं वाला है। वह मानती हैं कि बच्चों को सुरक्षा की जरूरत है, लेकिन उन्हें अपना बचपन भी याद है जो काफी अकेलापन भरा था। मेगन कहती हैं, “हम भौगोलिक रूप से बहुत अलग-थलग हो सकते हैं, लेकिन हम डिजिटल रूप से अनपढ़ नहीं हैं। मुझे लगता है कि यह सरकार द्वारा अपनी सीमा से थोड़ा आगे बढ़ना (Overstepping) है।”
मेगन की चिंता यह है कि 16 साल की उम्र तक सोशल मीडिया रोकने से माता-पिता की अपने बच्चों को शिक्षित करने की शक्ति कम हो जाती है। उनका मानना है कि 12 साल की उम्र के आसपास ही बच्चे अपने माता-पिता से ज्यादा दोस्तों से प्रभावित होने लगते हैं, और यही वह समय है जब माता-पिता को उन्हें सही-गलत समझाना चाहिए।
शहरी बच्चों का दर्द: ‘हमें कमकअकल समझा जा रहा है’
सिर्फ दूरदराज के इलाकों में ही नहीं, सिडनी जैसे शहरों में रहने वाले टीनेजर्स भी परेशान हैं। रोजबैंक कॉलेज की 14 वर्षीय छात्रा जेसिंटा हिकी कहती हैं, “यह थोड़ा अपमानजनक है कि वे सोचते हैं कि हम इसे संभाल नहीं सकते। मैं सही और गलत में फर्क करने के लिए काफी समझदार हूं।”
हालाँकि, जेसिंटा की प्रिंसिपल, आइरिस नास्तासी इस फैसले से बेहद खुश हैं। उनका कहना है, “जब तक संभव हो, हमें बचपन की मासूमियत को बचाकर रखना चाहिए।”
प्रिंसिपल नास्तासी बताती हैं कि अक्सर रात के दो बजे सोशल मीडिया पर कुछ ऐसा होता है, जिसका असर अगले दिन स्कूल में रिश्तों पर पड़ता है और उन्हें इसे सुलझाना पड़ता है।
‘दिमाग के लिए जंक फूड’
इस बहस के बीच कुछ ऐसे बच्चे भी हैं जिन्हें इस बैन से कोई फर्क नहीं पड़ता। 12 साल की लोला फारुगिया अभी सोशल मीडिया पर नहीं हैं और अब नए कानून के तहत अगले चार साल तक नहीं हो पाएंगी। वह अपने ‘फ्लिप फोन’ से ही खुश हैं।
लोला कहती हैं, “मेरी माँ ने मुझे समझाया है कि सोशल मीडिया ‘दिमाग के लिए जंक फूड’ है। अगर आपके घर की पैंट्री (रसोई भंडार) खाली है, तो आपको किसी जंक फूड की तलब नहीं होगी।”
एक किताब जिसने बदल दिया कानून
साउथ ऑस्ट्रेलिया के प्रीमियर पीटर मैलिनास्कस को ‘पैंट्री साफ करने’ यानी इस कड़े फैसले को लागू करने का श्रेय (या दोष) दिया जाता है। यह सब तब शुरू हुआ जब उनकी पत्नी ने अमेरिकी मनोवैज्ञानिक जोनाथन हाइट की किताब ‘द एंग्जियस जेनरेशन’ (The Anxious Generation) पढ़ी। यह किताब मार्च 2024 में प्रकाशित हुई थी और इसमें बताया गया है कि स्मार्टफोन कैसे बचपन को बदल रहा है।
मैलिनास्कस ने बताया कि उनकी पत्नी ने किताब पढ़ने के बाद कहा, “आपको वास्तव में इसके बारे में कुछ करना होगा।” इसके बाद नवंबर के अंत तक, 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने वाला संघीय कानून पारित हो गया।
हालांकि, इस कानून के सामने अभी भी चुनौतियां हैं, जिसमें दो किशोरों द्वारा हाई कोर्ट में दी गई चुनौती और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की अमेरिकी कंपनियों को लेकर चेतावनी शामिल है।
अल्पसंख्यक समुदाय की चिंताएं
इस कानून की सबसे बड़ी आलोचना यह है कि यह ‘ब्लैंकेट बैन’ (पूर्ण प्रतिबंध) अल्पसंख्यक समूहों को नुकसान पहुंचा सकता है। LGBTQ+ समुदाय का समर्थन करने वाले समूह ‘माइनस18’ द्वारा किए गए लगभग 1,000 युवाओं के सर्वेक्षण के अनुसार, 96% ने कहा कि सोशल मीडिया दोस्तों और समर्थन तक पहुंचने के लिए महत्वपूर्ण है।
ब्रिसबेन की स्कूली छात्रा सैडी एंगस, जो अभी कुछ ही हफ्ते पहले 13 साल की हुई हैं, इस बैन से निराश हैं। उनके लिए इंस्टाग्राम खोलना बड़े होने की निशानी थी। सैडी कहती हैं, “मैं असल जिंदगी की तुलना में वहां (सोशल मीडिया पर) ज्यादा खुलकर बात कर सकती हूं। यह एक ‘सेफ स्पेस’ है जहाँ कोई मुझे नहीं जानता, इसलिए मैं अपने मन की बात कह सकती हूँ।”
वहीं, ‘रिफ्रेमिंग ऑटिज्म’ की सीईओ शेरोन फ्रेजर का कहना है कि ऑटिस्टिक युवा अलग तरह से बातचीत करते हैं और ऑनलाइन दुनिया उनके लिए जुड़ने का एक बेहतरीन जरिया है, जो वास्तविक जीवन में शायद उनके लिए सुलभ नहीं है।
एक माँ का दर्द और बदलाव की उम्मीद
इन तमाम विरोधों के बीच, प्रचारक एम्मा मेसन का मानना है कि इस फैसले से नुकसान कम और फायदे ज्यादा होंगे। चार साल पहले, उनकी 15 वर्षीय बेटी टिली ने आत्महत्या कर ली थी।
एम्मा अपनी बेटी की मौत के लिए सोशल मीडिया के उदय को जिम्मेदार मानती हैं। टिली को पहले आमने-सामने बुली किया गया, फिर यह सिलसिला स्नैपचैट और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म पर चला गया। हद तब हो गई जब टिली की एक फेक इमेज स्कूल में फैला दी गई।
एम्मा उस पल को याद करते हुए बताती हैं, “वह पूरी तरह टूट गई थी। उसे लगा कि वह अब और नहीं लड़ सकती।” एम्मा नहीं चाहतीं कि ऐसा किसी और बच्चे के साथ हो, इसीलिए वह प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीस के साथ खड़ी होकर इस कानून का समर्थन कर रही हैं।
एम्मा स्वीकार करती हैं कि जो बच्चे पहले से ही टीनेजर्स हैं, शायद उन्हें पूरी तरह नहीं बचाया जा सकता। लेकिन वह कहती हैं, “वे बच्चे जो अभी 13 साल या उससे कम के हैं, उन्हें अब ऐसी दुनिया में बड़ा नहीं होना पड़ेगा जहाँ सोशल मीडिया पर कुछ भी कहना और करना स्वीकार्य हो।”
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