जैसे-जैसे बिहार में विधानसभा चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे राज्य में अपराधों की बढ़ती घटनाएं राजनीतिक तूफान खड़ा कर रही हैं। ताज़ा मामला गुरुवार का है, जब पटना के एक निजी अस्पताल में पांच बंदूकधारियों ने पैरोल पर बाहर आए एक कुख्यात अपराधी की गोली मारकर हत्या कर दी। इस वारदात ने राज्य की कानून-व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।
तेजस्वी और चिराग दोनों हमलावर
राजद नेता तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला बोलते हुए कहा कि “बिहार अराजकता की गिरफ्त में है और राज्य एक बेहोश मुख्यमंत्री के भरोसे चल रहा है।” चौंकाने वाली बात यह रही कि एनडीए के ही घटक और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान ने भी कानून व्यवस्था की नाकामी को स्वीकारते हुए कहा, “बिहार में हालिया हत्याएं यह साबित करती हैं कि कानून-व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है।”
80% बढ़ा अपराध, जबकि देश में सिर्फ 23.7%
हालांकि नीतीश कुमार को एक समय “जंगल राज” के अंत का श्रेय मिला था, लेकिन अब आंकड़े कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं। राज्य अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (SCRB) के अनुसार, 2015 से 2024 के बीच बिहार में कुल अपराधों में 80.2% की बढ़ोतरी हुई है, जबकि पूरे देश में यह वृद्धि 23.7% रही।
2022 में राज्य में 3.5 लाख अपराध दर्ज हुए थे, जो पिछले साल की तुलना में 23.3% अधिक थे। वहीं, राष्ट्रीय स्तर पर अपराधों में गिरावट दर्ज हुई — 2022 में 4.5% और 2021 में 7.7%। 2023 में यह आंकड़ा बढ़कर 3.54 लाख पहुंचा और 2024 में मामूली गिरकर 3.52 लाख रहा। 2025 के पहले छह महीनों में ही 1.91 लाख अपराध दर्ज हो चुके हैं।
संख्या अधिक, लेकिन प्रति लाख आबादी पर अपराध दर कम
भले ही कुल अपराधों की संख्या अधिक हो, परंतु प्रति लाख जनसंख्या के हिसाब से बिहार की अपराध दर राष्ट्रीय औसत से कम रही है। 2022 में बिहार में अपराध दर 277 रही, जबकि राष्ट्रीय औसत 422 था।
हिंसक अपराधों में बिहार की स्थिति चिंताजनक
हालांकि कुल अपराध दर कम है, लेकिन बिहार में हिंसक अपराधों की दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। 2022 में प्रति लाख जनसंख्या पर हत्या की दर 2.3 और हत्या के प्रयास की दर 6.9 रही, जबकि राष्ट्रीय औसत क्रमशः 2.1 और 4.1 था।
बिहार 2015 से 2022 तक हर साल हत्या के मामलों में उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर रहा है। हत्या के प्रयास के मामलों में भी यह लगातार दूसरे स्थान पर है।
हत्या के पीछे कारण: व्यक्तिगत रंजिश और संपत्ति विवाद
2015 से 2022 के बीच हत्या का सबसे प्रमुख कारण संपत्ति विवाद रहा है। 2017 में कुल हत्याओं में से 36.7% संपत्ति विवाद से संबंधित थीं। हालांकि 2022 और 2025 (जून तक) में व्यक्तिगत रंजिश ने संपत्ति विवाद को पीछे छोड़ दिया है।
2025 के शुरुआती छह महीनों में 1,379 हत्याएं हुई हैं, जिनमें 513 मामलों (37.8%) में व्यक्तिगत रंजिश और 139 मामलों (10.2%) में संपत्ति विवाद प्रमुख कारण रहा।
अवैध हथियार: हिंसा की जड़ में
बिहार पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार, अवैध हथियार, नकली लाइसेंस और गोला-बारूद की अवैध बिक्री हिंसक अपराधों के पीछे मुख्य वजह हैं। 2015 से 2022 के बीच आर्म्स एक्ट के उल्लंघन के मामले 92.3% बढ़े हैं। हालांकि प्रति लाख जनसंख्या पर दर 2.8 रही, जो राष्ट्रीय औसत 5.8 से कम है।
अपहरण, लूट और गंभीर मारपीट के मामले बढ़े
2015 से 2022 के बीच अपहरण में 65.9%, लूट में 39.2%, खतरनाक हथियार से मारपीट में 61.3% और गंभीर रूप से घायल करने के मामलों में 17.7% की वृद्धि दर्ज की गई है। 2022 में इन मामलों में बिहार टॉप-5 राज्यों में रहा।
पुलिस बल की भारी कमी
जनवरी 2023 के आंकड़ों के अनुसार, बिहार देश का सबसे कम पुलिसकर्मियों वाला राज्य है। प्रति लाख जनसंख्या पर केवल 114.57 पुलिसकर्मी कार्यरत हैं। राज्य में कुल 1.44 लाख की स्वीकृत संख्या में से 42,000 पद खाली हैं। यह देश में तीसरा सबसे बड़ा पुलिस स्टाफ घाटा है।
यह स्थिति तब है जब बिहार ने 2022-23 में महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों से अधिक बजट पुलिस पर खर्च किया है, और पुलिस स्टेशनों की संख्या के हिसाब से सातवें स्थान पर है।
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