बिहार के चुनावी मैदान में इस बार ‘बदलाव’ की गूंज साफ सुनाई दे रही थी। भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी, अफसरशाही, शराबबंदी की खामियां और सबसे बढ़ाकर पलायन (माइग्रेशन) जैसे मुद्दों पर जनता का गुस्सा स्पष्ट था। लेकिन हैरानी की बात यह है कि मतदाताओं ने इन समस्याओं के समाधान की उम्मीद अपने 9 बार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से ही की, न कि उनके विरोधियों से। 20 साल से सत्ता में होने के बावजूद, जनता ने उन्हीं पर भरोसा जताया।
इस चुनाव परिणाम की गहराई को समझने के लिए, सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि यह जीत किन वजहों से नहीं मिली है।
सिर्फ 10,000 रुपये की योजना से नहीं मिली जीत
कई राजनीतिक पंडितों का मानना है कि चुनाव से ठीक पहले ‘महिला रोजगार योजना’ के तहत महिलाओं को 10,000 रुपये की पहली किस्त ट्रांसफर करना NDA की जीत का बड़ा कारण बना। हालांकि, मतदान से ठीक पहले नकदी हस्तांतरण की नैतिकता पर सवाल उठना लाजिमी है, लेकिन इसे ही जीत का एकमात्र कारण मान लेना जल्दबाजी होगी।
ऐसा सोचना महिला मतदाताओं की समझदारी का अपमान है। बिहार की महिलाएं अब पहले से कहीं अधिक संख्या में वोट कर रही हैं और वे काफी जागरूक हैं। नीतीश सरकार की यह योजना कोई अकेला कदम नहीं थी। 2006 में स्कूली छात्राओं के लिए साइकिल योजना से लेकर पंचायतों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण, और ‘जीविका’ समूह के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने तक—नीतीश कुमार का एक लंबा ट्रैक रिकॉर्ड रहा है। शराबबंदी (भले ही उसमें खामियां हों) भी महिलाओं के बीच उनकी पैठ का एक बड़ा कारण है।
‘विकास पुरुष’ की वापसी
जेडीयू-बीजेपी (JD(U)-BJP) की इस बड़ी जीत को केवल महिला वोटरों के भरोसे नहीं समझा जा सकता। पटना के सियासी गलियारों में भले ही यह चर्चा थी कि नीतीश कुमार अब पहले जैसे प्रभावी नेता नहीं रहे और सलाहकारों से घिरे रहते हैं, लेकिन आम जनता के बीच उनकी छवि अभी भी ‘विकास पुरुष’ की है। 2010 के बाद से, कानून-व्यवस्था, सड़क, बिजली और पुलों के निर्माण में उनके द्वारा किए गए कामों को लोग भूले नहीं हैं।
प्रशांत किशोर और तेजस्वी के वादों पर जनता का सवाल: “संभव है क्या?”
नीतीश की इस जोरदार वापसी का एक कारण नए सियासी खिलाड़ी प्रशांत किशोर (PK) भी हो सकते हैं। प्रशांत किशोर भले ही चुनावी उड़ान न भर सके हों, लेकिन उन्होंने अनजाने में नीतीश कुमार की अहमियत को बढ़ा दिया। जहां एक तरफ प्रशांत किशोर और तेजस्वी यादव ने लुभावने वादे किए, वहीं जनता ने नीतीश को उन नेता के रूप में देखा जिसने काम करके दिखाया है, भले ही वह काम कभी-कभी अधूरा या धीमा क्यों न रहा हो।
तेजस्वी यादव का “एक परिवार, एक सरकारी नौकरी” का वादा हो या प्रशांत किशोर का “सभी प्रवासियों को तुरंत घर लाने” का दावा—मतदाताओं ने अक्सर पूछा, “संभव है क्या?”
प्रशांत किशोर ने सोशल मीडिया पर तो खूब जगह बनाई, लेकिन जमीनी हकीकत से उनकी पकड़ कमजोर दिखी। बिहार का मतदाता अपने इतिहास (गांधी, जेपी आंदोलन, कर्पूरी ठाकुर और मंडल राजनीति) को लेकर बहुत सजग है। ऐसे में प्रशांत किशोर का यह कहना कि वे ‘क्लीन स्लेट’ पर नई शुरुआत करेंगे, लोगों को अव्यावहारिक लगा। हालांकि, उन्होंने ‘पलायन’ के मुद्दे को मुख्य धारा में लाकर भविष्य के लिए अपनी जगह जरूर बनाई है।
‘शाम 5 बजे के बाद…’ का डर और RJD की विफलता
इस चुनाव का सबसे निर्णायक पहलू वह डर था, जो मतदाताओं की जुबान पर बार-बार आया— “शाम 5 बजे के बाद…”। यह इशारा लालू प्रसाद और राबड़ी देवी के शासनकाल की कानून-व्यवस्था की तरफ था। 20 साल बाद भी तेजस्वी यादव अपने पिता की विरासत को ‘जंगलराज’ के ठप्पे से मुक्त नहीं करा पाए हैं।
तेजस्वी यह समझाने में विफल रहे कि उनकी RJD अब बदल चुकी है। न तो उन्होंने गैर-यादव जातियों के बीच अपनी पहुंच बनाई और न ही अपनी कोर टीम में सामाजिक विविधता दिखाई। जब भी RJD सत्ता के करीब दिखी, लोगों को वही पुराना डर सताने लगा कि कहीं फिर से एक विशेष जाति समूह का वर्चस्व न हो जाए।
दूसरी तरफ, महागठबंधन में कांग्रेस की कमजोरी भी साफ दिखी। राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ और एक दलित नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का प्रतीकात्मक कदम भी वोटों में तब्दील नहीं हो सका। RJD और कांग्रेस के बीच चला लंबा झगड़ा भी उनके लिए आत्मघाती साबित हुआ।
भविष्य की राह
अंत में, यह जीत नीतीश कुमार के ‘काम’ और उनके सहयोगी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी की ‘ताकत’ का परिणाम है। कल्याणकारी योजनाओं और एक व्यापक सामाजिक गठबंधन ने इस जीत को सुनिश्चित किया। हिंदुत्व की एक अंतर्निहित धारा भी मौजूद थी, जिसने बिहार को पड़ोसी राज्य यूपी की राह पर जाने से रोके रखा।
जनता का फैसला स्पष्ट है: तेजस्वी यादव अभी भी ‘जाति और परिवार’ के प्रतीक हैं, प्रशांत किशोर ‘भाषण’ के, और ‘काम’ का मतलब सिर्फ नीतीश कुमार है। अब अपनी नई पारी में नीतीश कुमार को शहरीकरण, औद्योगिक निवेश और पर्यटन जैसे उपेक्षित मुद्दों पर ध्यान देना होगा।
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