मतदाता सूची में संशोधन के दौरान नाम हटना एक सामान्य प्रक्रिया है और अक्सर हजारों की संख्या में हटाए जाते हैं। आम तौर पर इसके तीन मुख्य कारण होते हैं – मतदाता की मृत्यु जिसकी सूचना नहीं दी गई, मतदाता का स्थायी रूप से पता बदलना, या एक मतदाता का दूसरी विधानसभा में नाम जुड़वाना लेकिन पहले वाले क्षेत्र से नाम नहीं हटवाना।
वास्तव में, 2019 में संसद में दिए जवाब में चुनाव आयोग (ECI) ने बताया था कि पिछले कुछ वर्षों में मतदाता सूचियों में विदेशी नागरिकों के नाम जुड़ने के मामले लगभग न के बराबर रहे हैं। 2018 में ऐसे सिर्फ तीन मामले दर्ज हुए थे – तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और गुजरात से एक-एक मामला।
लेकिन बिहार के संदर्भ में तस्वीर बदलती दिख रही है।
नागरिकता के सवाल पर असाधारण चेतावनी
सूत्रों के मुताबिक, चुनाव आयोग ने बिहार में “बड़ी संख्या” में विदेशी नागरिकों के नाम मतदाता सूची में होने की आशंका जताई है – जो एक असामान्य स्थिति मानी जा रही है। इससे पहले केवल असम ऐसा राज्य रहा है जहां विदेशी नागरिकों के अवैध प्रवेश के मुद्दे पर अदालत की निगरानी में विशेष प्रक्रिया चली और ‘संदिग्ध मतदाता’ की सूची भी बनी।
संदर्भ के लिए, 10 जुलाई 2019 को संसद में दिए एक प्रश्न के जवाब में चुनाव आयोग ने बताया था कि 2016, 2017 और 2019 में विदेशी नागरिकों के नाम जुड़ने के कोई मामले सामने नहीं आए थे। केवल 2018 में ऐसे तीन मामले दर्ज हुए थे।
जब भी इस तरह की शिकायतें मिलती हैं, तो संबंधित राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (ERO) इसकी जांच करते हैं और ऐसे व्यक्तियों के EPIC कार्ड भी जब्त कर लिए जाते हैं।
एक पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा, “मतदाता सूची के विभिन्न संशोधनों में नागरिकता से जुड़ी शिकायतें बहुत कम आती हैं और वो भी 1-2 व्यक्तियों तक सीमित होती हैं। कभी बड़ी संख्या में विदेशी नागरिकों के नाम सूची में होने की शिकायत नहीं आई। ज्यादातर दावे और आपत्तियां मौत या पते के बदलाव से जुड़ी होती हैं।”
सीमांचल पर विशेष ध्यान
फिलहाल बिहार के सीमांचल क्षेत्र के चार जिले – किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार – विशेष निगरानी में हैं। ये जिले नेपाल और बांग्लादेश की सीमा से सटे हुए हैं और यहां मतदाता सूची के संशोधन में अधिक सतर्कता बरती जा रही है।
हालांकि, किशनगंज जिले की हालिया स्पेशल समरी रिवीजन 2025 की सूची को देखने पर पता चलता है कि सैकड़ों नाम मुख्य रूप से तीन वजहों से हटाए गए – मृत्यु, स्थायी पता परिवर्तन, या मतदाता के अनुपस्थित पाए जाने पर।
पूर्णिया और सुपौल जिलों की संशोधित सूचियों में भी यही पैटर्न देखने को मिलता है। इनमें भी नाम हटाने के कारण अधिकतर मौत, पता बदलना या अन्यत्र पहले से नाम जुड़ा होना ही है। नागरिकता या दस्तावेजों की कमी के आधार पर नाम हटाने का कोई उल्लेख इन आधिकारिक सूचियों में फिलहाल नहीं है।
बिहार में विदेशी नागरिकों की मौजूदगी पर चुनाव आयोग की चेतावनी निश्चित रूप से असामान्य और अहम मानी जा रही है, खासकर राज्य की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को देखते हुए। हालांकि अब तक जारी संशोधन सूचियों में नाम हटने के कारण वही पुराने और सामान्य नजर आ रहे हैं, लेकिन चुनावी तैयारियों के बीच सीमावर्ती जिलों में नागरिकता की जांच को लेकर सतर्कता बढ़ा दी गई है।
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