नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव के लिए विपक्षी महागठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर बातचीत जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे यह और भी जटिल होती जा रही है। पिछले हफ्ते कांग्रेस की एक नई मांग ने इस बातचीत में एक नया मोड़ ला दिया है, जिससे सहयोगियों के बीच सहमति बनाना और भी मुश्किल हो गया है।
कांग्रेस ने मांग की है कि सीटों का बंटवारा करते समय ‘अच्छी’ और ‘बुरी’ सीटों के बीच संतुलन बनाया जाना चाहिए।
दिल्ली में पार्टी मुख्यालय में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु ने कहा, “हर राज्य में कुछ ‘अच्छी’ और कुछ ‘बुरी’ सीटें होती हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए कि एक पार्टी को सभी अच्छी सीटें मिल जाएं और दूसरी पार्टी के हिस्से में सिर्फ बुरी सीटें आएं। सीटों के बंटवारे में अच्छी और बुरी सीटों का संतुलन होना बेहद ज़रूरी है।”
कांग्रेस के अनुसार, ‘अच्छी’ सीटों का मतलब वे सीटें हैं, जिन पर या तो पार्टी ने 2020 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी या फिर बहुत कम वोटों के अंतर से हारी थी। पार्टी के एक नेता ने बताया, “हम उन सभी 19 सीटों पर अपना दावा करेंगे, जिन पर कांग्रेस 2020 में जीती थी। इसके अलावा, उन सीटों पर भी हमारा दावा रहेगा, जहां हमारे उम्मीदवार लगभग 5,000 वोटों के अंतर से हारे थे।”
उन्होंने आगे कहा कि राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ से पूरे बिहार में इंडिया ब्लॉक के कार्यकर्ताओं में नया जोश है और हमें यकीन है कि सहयोगियों के समर्थन से हम ऐसी सीटें भी जीत सकते हैं।
नेता ने यह भी स्पष्ट किया, “बंटवारा ऐसा नहीं होना चाहिए कि कांग्रेस को केवल वही सीटें दी जाएं, जहां राजद और अन्य सहयोगी पिछले चुनावों में जीत नहीं पाए। साथ ही, ऐसा भी न हो कि जिन सीटों पर सामाजिक समीकरण महागठबंधन के पक्ष में हैं, वे सभी एक ही पार्टी को दे दी जाएं।”
अगर 2020 के चुनावी आंकड़ों पर नज़र डालें तो कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें से उसे केवल 19 पर ही जीत मिली थी। इसकी तुलना में, 2015 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 41 सीटों पर चुनाव लड़कर 27 पर जीत हासिल की थी। इस बार भी, राहुल गांधी की यात्रा से उत्साहित होकर कांग्रेस 70 सीटों की मांग पर अड़ी हुई है।
सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस के ‘अच्छी’ सीटों के पैमाने पर 2020 में लड़ी गई 70 में से 27 सीटें खरी उतरती हैं। इनमें 19 जीती हुई सीटें और 8 वे सीटें शामिल हैं, जहां पार्टी लगभग 5,000 वोटों के अंतर से हारी थी।
अगर इसी पैमाने को महागठबंधन के अन्य सहयोगियों पर लागू किया जाए, तो राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के पास सबसे ज़्यादा 92 ‘अच्छी’ सीटें हैं। 2020 में, राजद ने 144 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें से 75 पर जीत हासिल की थी और 17 सीटों पर 5,000 से कम वोटों के अंतर से दूसरे स्थान पर रही थी।
महागठबंधन के एक और प्रमुख सहयोगी, सीपीआई (एम-एल) (एल), ने 19 सीटों पर चुनाव लड़कर 12 पर जीत हासिल की थी, जबकि केवल दो सीटों पर 5,000 से कम के अंतर से हार का सामना करना पड़ा था। वहीं, सीपीआई (एम) और सीपीआई ने दो-दो सीटें जीती थीं और एक-एक सीट पर 5,000 से कम वोटों से हारी थीं।
2020 के चुनावों में, कांग्रेस को 2015 में लड़ी गई 41 में से 32 सीटें दी गई थीं, जिनमें से वह 11 पर ही जीत सकी। वहीं, उसे जो 38 अतिरिक्त सीटें मिली थीं, उनमें से पार्टी केवल 8 सीटें ही जीत पाई। दिलचस्प बात यह है कि 2015 में कांग्रेस द्वारा जीती गईं चार सीटें 2020 में सहयोगियों – राजद, सीपीआई, सीपीआई (एम) और सीपीआई (एम-एल) (एल) – को दे दी गई थीं।
राजद ने भी 2020 में अपने सहयोगियों के लिए अपनी 10 जीती हुई सीटें छोड़ी थीं। इन 10 सीटों में से, सीपीआई (एम-एल) (एल) ने पांच पर चुनाव लड़ा और तीन जीतीं, सीपीआई ने तीन में से दो जीतीं और कांग्रेस ने दो सीटों पर लड़कर एक पर जीत हासिल की।
इस बार महागठबंधन का कुनबा और भी बड़ा हो गया है। हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली जेएमएम और पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आरएलजेपी) के शामिल होने से अब इसमें कुल आठ दल हो गए हैं, जिनमें मौजूदा सहयोगी राजद, कांग्रेस, वाम दल और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) शामिल हैं।
इस मुद्दे पर कांग्रेस के बिहार सचिव शाहनवाज आलम ने कहा, “हमारा महागठबंधन मजबूत है, जहां अंतिम लक्ष्य एनडीए को हराना है। ऐसे लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कभी-कभी समझौते करने पड़ते हैं। यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है।”
वहीं, राजद के एक वरिष्ठ नेता ने चल रही बातचीत का हवाला देते हुए सीट-बंटवारे पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। हालांकि, पार्टी के एक अन्य नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “2020 में राजद ने अपनी कई जीती हुई सीटें सहयोगियों को दे दी थीं, जिससे उन सीटों पर चुनाव की तैयारी कर रहे राजद नेता नाराज हो गए और उन्होंने गठबंधन के उम्मीदवार के खिलाफ काम किया, जिससे हार हुई। अगर राजद ने अपनी सभी जीती हुई सीटों पर चुनाव लड़ा होता, तो महागठबंधन और भी ज्यादा सीटें जीतता।”
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