नई दिल्ली/मुंबई: जेफरीज (Jefferies) के इक्विटी स्ट्रैटेजी के ग्लोबल हेड, क्रिस वुड ने भारतीय शेयर बाजारों को लेकर एक बड़ी टिप्पणी की है। निवेशकों के लिए लिखे गए अपने चर्चित साप्ताहिक नोट ‘GREED & fear’ में वुड ने कहा कि भारतीय शेयर बाजार इस साल ‘रिलेटिव-रिटर्न डिजास्टर’ (तुलनात्मक रूप से बेहद खराब रिटर्न देने वाला) साबित हुआ है।
हालाँकि, उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था के कुछ मजबूत पहलुओं और भविष्य की संभावनाओं पर भी प्रकाश डाला है। आइए जानते हैं उनकी रिपोर्ट की मुख्य बातें:
घरेलू निवेशकों ने बाजार को बचाया
क्रिस वुड ने अपने नोट में बताया कि इस साल अब तक (Year-to-Date) भारतीय बाजार ने ‘MSCI इमर्जिंग मार्केट्स इंडेक्स’ की तुलना में 27 प्रतिशत कम (अंडरपरफॉर्म) रिटर्न दिया है। इसे उन्होंने एक ‘सापेक्ष आपदा’ (relative disaster) कहा है।
हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह ‘पूर्ण आपदा’ (absolute disaster) नहीं है। इसका पूरा श्रेय घरेलू निवेशकों को जाता है। भारतीय निवेशकों द्वारा लगातार किए जा रहे निवेश (Domestic Inflows) ने बाजार को पूरी तरह से टूटने से बचाए रखा है और गजब का लचीलापन दिखाया है।
रुपये और अर्थव्यवस्था पर बड़ा अपडेट
मैक्रोइकोनॉमिक मोर्चे पर वुड का मानना है कि अब भारतीय रुपये में गिरावट का दौर थम सकता है। इस साल प्रमुख उभरते बाजारों की मुद्राओं में रुपया सबसे खराब प्रदर्शन करने वालों में से एक रहा है, लेकिन अब इसके ‘बॉटम आउट’ होने (निचले स्तर से संभलने) की संभावना बढ़ गई है।
आंकड़ों की बात करें तो:
- चालू खाता घाटा (CAD): वित्तीय वर्ष 2025-26 (FY26) में भारत का करंट अकाउंट डेफिसिट जीडीपी का मात्र 0.5% रहने का अनुमान है, जो पिछले 20 वर्षों का सबसे निचला स्तर होगा।
- विदेशी मुद्रा भंडार: भारत का फॉरेक्स रिजर्व 690 बिलियन डॉलर के आरामदायक स्तर पर है, जो 11 महीने के आयात के लिए पर्याप्त है।
राज्यों की ‘मुफ्त राजनीति’ सबसे बड़ा जोखिम
क्रिस वुड ने चेतावनी दी है कि रुपये की स्थिरता के लिए सबसे बड़ा खतरा राज्यों के चुनावों में बांटी जाने वाली ‘रेवड़ियां’ या लोक-लुभावन वादे हैं, जो पिछले दो सालों से एक ट्रेंड बन गया है। उन्होंने कहा कि राज्य स्तर पर बढ़ता लोकलुभावनवाद वित्तीय स्थिति को प्रभावित कर रहा है, जबकि केंद्र सरकार (Centre) की वित्तीय स्थिति राज्यों के मुकाबले कहीं अधिक स्वस्थ दिखाई देती है।
बाजार की नजर: विकास दर और जीएसटी
शेयर बाजार के लिहाज से अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या इस साल की क्रेडिट और मौद्रिक ढील, साथ ही 22 सितंबर से प्रभावी हुई जीएसटी दरों में कटौती से विकास दर में तेजी आएगी? वुड का मानना है कि इससे आने वाली तिमाहियों में नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ में उछाल आना चाहिए।
उन्होंने आगाह किया कि अगर अपेक्षित आर्थिक सुधार (Cyclical Pickup) नहीं होता है, तो भारतीय शेयरों का मौजूदा महंगा वैल्युएशन खतरे में पड़ सकता है।
किस सेक्टर में पैसा लगाएं और कहाँ है खतरा?
क्रिस वुड की रिपोर्ट में सेक्टर-वार विश्लेषण भी दिया गया है:
- प्रॉपर्टी सेक्टर (Real Estate): वुड के अनुसार, भारतीय प्रॉपर्टी सेक्टर का वैल्युएशन अभी भी ‘सकारात्मक रूप से आकर्षक’ (Positively Attractive) बना हुआ है।
- आईटी सेक्टर (IT Services): भारत के आईटी सर्विस सेक्टर पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का खतरा मंडरा रहा है। सितंबर 2025 की तिमाही (Q2-FY26) में सूचीबद्ध आईटी कंपनियों की रेवेन्यू ग्रोथ गिरकर सालाना आधार पर (YoY) महज 1.6% रह गई है, जिससे इस सेक्टर की रेटिंग में गिरावट आ रही है।
इसके विपरीत, वुड का मानना है कि भारत स्थित ‘ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स’ (GCCs) सर्विस सेक्टर के विस्तार में तेजी से योगदान दे रहे हैं।
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