जगदीप धनखड़ के कार्यकाल के साढ़े दो साल बाद, जिन्हें विपक्ष अक्सर राज्यसभा की निष्पक्षता खत्म करने वाला मानता था, बीजेपी ने अब उनके उत्तराधिकारी के तौर पर एक बिल्कुल अलग शख्सियत को चुना है।
सीपी राधाकृष्णन, लंबे समय से जनसंघ और आरएसएस से जुड़े नेता, पार्टी के लिए रणनीतिक और ‘पैन-साउथ इंडियन’ चेहरा माने जा रहे हैं। स्वभाव से वे शांत और समावेशी समझे जाते हैं, जो outspoken और टकराव पसंद धनखड़ से बिल्कुल अलग छवि पेश करते हैं।
धनखड़ का कार्यकाल और संदेश
धनखड़ को 2022 में जाट आंदोलन की पृष्ठभूमि में चुना गया था। इसे जाट किसानों के प्रति संदेश के रूप में देखा गया कि वे राष्ट्रीय सत्ता संरचना का अहम हिस्सा हैं।
बंगाल के राज्यपाल रहते हुए ममता बनर्जी सरकार के साथ उनके लगातार टकराव ने उन्हें ‘आक्रामक वकील’ और ‘सख्त नेता’ की छवि दी। राज्यसभा सभापति बनने के बाद भी उनकी यही शैली जारी रही, जिससे विपक्ष ने उन्हें पक्षपाती बताया। उनकी तीखी कानूनी दलीलें और टकरावपूर्ण रवैया सहमति बनाने में बाधा बने।
राधाकृष्णन की नियुक्ति क्यों?
सीपी राधाकृष्णन की नियुक्ति बीजेपी की ओबीसी सामाजिक इंजीनियरिंग और दक्षिण भारत में विस्तार की रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है। कर्नाटक को छोड़कर दक्षिण में बीजेपी को अभी तक मजबूत जमीन नहीं मिल पाई है।
धनखड़ जहां आरएसएस से जुड़े नहीं थे और राजनीतिक-वैधानिक पृष्ठभूमि से आए थे, वहीं राधाकृष्णन का जनसंघ और आरएसएस से जुड़ाव 17 साल की उम्र से ही रहा है। यही मजबूत वैचारिक पृष्ठभूमि उन्हें बीजेपी और संगठन के लिए ‘बेहतर फिट’ बनाती है।
संयमित राजनीतिक शैली
तमिलनाडु के राज्यपाल के रूप में राधाकृष्णन ने केंद्र का बचाव जरूर किया, लेकिन संयमित अंदाज में। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से राजनीतिक संवाद कायम करना हो या उदयनिधि स्टालिन के सनातन धर्म पर विवादित बयान को “बच्चों जैसी अपरिपक्व टिप्पणी” बताना—उन्होंने तनाव को बढ़ाने के बजाय शांत स्वर अपनाया।
महाराष्ट्र में भी उन्होंने विवादास्पद ‘पब्लिक सिक्योरिटी बिल’ पर अपनी भूमिका निभाई, लेकिन धनखड़ की तरह सीधे टकराव की बजाय संस्थागत अनुभव और वैचारिक जुड़ाव को तरजीह दी।
क्या बन सकते हैं सर्वमान्य चेहरा?
राजनीतिक हलकों में राधाकृष्णन को ऐसा चेहरा माना जा रहा है, जो राज्यसभा में टकराव नहीं, बल्कि संतुलन ला सकता है। उन्हें किसी राजनीतिक बोझ के बिना एक ‘कंसेंसस कैंडिडेट’ माना जा रहा है।
बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, जहां धनखड़ की नियुक्ति को जाति और क्षेत्रीय राजनीति से जोड़कर देखा गया, वहीं राधाकृष्णन को राष्ट्रीय समावेशिता का प्रतीक बनाकर पेश किया जा रहा है।
धनखड़ का अचानक इस्तीफा
संसद सत्र के पहले ही दिन जगदीप धनखड़ ने इस्तीफा दे दिया। उन्होंने विपक्ष के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को सरकार से बिना चर्चा किए मंजूर कर लिया था। धनखड़ ने इस्तीफे का कारण स्वास्थ्य बताया, लेकिन बाद की रिपोर्टों में घटनाक्रम की एक पूरी श्रृंखला सामने आई, जिसने उनके अचानक कदम की पृष्ठभूमि तैयार की।
बीजेपी ने राधाकृष्णन की नियुक्ति के जरिए साफ संदेश दिया है कि राज्यसभा को अब टकराव नहीं, बल्कि संतुलन और संस्थागत स्थिरता की जरूरत है।
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