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डिमेंशिया का खतरा क्यों बढ़ाती है खराब नींद और दिल की बीमारी? वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क के ‘क्लीयरेंस सिस्टम’ से लिंक खोजा

| Updated: October 25, 2025 17:47

कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के नए अध्ययन में 40,000 लोगों के ब्रेन स्कैन से खुलासा, मस्तिष्क का 'ग्लिम्फैटिक सिस्टम' है अहम कड़ी।

नई दिल्ली: खराब नींद और हृदय संबंधी समस्याएं डिमेंशिया (मनोभ्रंश) का खतरा क्यों बढ़ा सकती हैं, इसे लेकर एक नए अध्ययन में महत्वपूर्ण जानकारी सामने आई है। एक अध्ययन के अनुसार, इसका संबंध मस्तिष्क के ‘सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड’ (मस्तिष्कमेरु द्रव) के बहाव में आने वाली बाधा से हो सकता है, जो मस्तिष्क से अपशिष्ट (कचरा) हटाने में मदद करता है।

यह रंगहीन द्रव ‘ग्लिम्फैटिक सिस्टम’ का हिस्सा है, जिसके अन्य कार्यों में केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को झटकों से बचाना और उसे पोषक तत्व प्रदान करना शामिल है।

अध्ययन में क्या सामने आया?

ब्रिटेन की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने कहा कि ग्लिम्फैटिक सिस्टम को डिमेंशिया के विभिन्न सामान्य रूपों से बचाने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इसमें अल्जाइमर रोग भी शामिल है, जिसमें ‘अमाइलॉइड’ नामक प्रोटीन गुच्छे बनाकर जहरीले ‘प्लैक्स’ (plaques) का निर्माण करते हैं, जो मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं।

डिमेंशिया एक न्यूरोडीजेनेरेटिव विकार है, जिसमें उम्र के साथ व्यक्ति की याददाश्त, बोलने की क्षमता और सोचने-समझने की प्रक्रिया लगातार प्रभावित होती है। यह स्थिति अंततः दैनिक गतिविधियों को बाधित कर सकती है।

यह अध्ययन ‘अल्जाइमर्स एंड डिमेंशिया: द जर्नल ऑफ द अल्जाइमर एसोसिएशन’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं ने इस बात की जांच की कि क्या मस्तिष्क की छोटी रक्त वाहिकाओं का विकार (जो रक्त प्रवाह को प्रभावित करता है और वैस्कुलर डिमेंशिया पैदा कर सकता है) और उच्च रक्तचाप जैसे हृदय संबंधी जोखिम कारक, ग्लिम्फैटिक सिस्टम को नुकसान पहुंचाकर डिमेंशिया का खतरा बढ़ा सकते हैं।

40,000 लोगों के ब्रेन स्कैन का विश्लेषण

शोधकर्ताओं की टीम ने यूके बायोबैंक में शामिल 40,000 वयस्कों के एमआरआई ब्रेन स्कैन का विश्लेषण किया। इस विश्लेषण के आधार पर, उन्होंने तीन ऐसे बायोमार्कर (जैविक संकेतक) खोजे जो 10 साल की अवधि में किसी व्यक्ति के डिमेंशिया के जोखिम की भविष्यवाणी करने में मदद कर सकते हैं।

इन बायोमार्कर्स में यह जाँचना शामिल है कि रक्त वाहिकाओं के आसपास की छोटी नलिकाओं (जिन्हें पेरिवास्कुलर स्पेस कहा जाता है) में पानी कैसे फैलता है और मस्तिष्क में बहते समय सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड का वेग (velocity) कितना है।

विशेषज्ञों की राय

कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के क्लिनिकल न्यूरोसाइंसेज विभाग की लेखिका युतोंग चेन (Yutong Chen) ने कहा, “हालांकि हमें अप्रत्यक्ष मार्करों के बारे में सतर्क रहना होगा, लेकिन हमारा काम इतने बड़े समूह में पुख्ता सबूत प्रदान करता है कि ग्लिम्फैटिक सिस्टम में व्यवधान डिमेंशिया में भूमिका निभाता है। यह रोमांचक है क्योंकि यह हमें यह पूछने की अनुमति देता है कि: हम इसमें सुधार कैसे कर सकते हैं?”

लेखकों ने अपने अध्ययन में लिखा, “(सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड) की गतिशीलता में गड़बड़ी डिमेंशिया का कारण बन सकती है और यह आंशिक रूप से हृदय संबंधी जोखिम और डिमेंशिया के बीच संबंधों की मध्यस्थता कर सकती है।” उन्होंने यह भी कहा कि हालांकि यह माना जाता है कि हृदय संबंधी जोखिम कारक सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड के प्रभावित प्रवाह के माध्यम से डिमेंशिया में योगदान करते हैं, लेकिन मनुष्यों से प्राप्त सबूत अब तक कम थे।

शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसे हृदय संबंधी जोखिम कारकों ने ग्लिम्फैटिक सिस्टम के कामकाज को प्रभावित किया, जिससे डिमेंशिया का खतरा बढ़ गया। ऐसा आंशिक रूप से ‘सेरेब्रल स्मॉल वेसल डिजीज’ (मस्तिष्क की छोटी रक्त वाहिकाओं की बीमारी) के कारण हुआ।

क्या है अल्जाइमर से इसका कनेक्शन?

चीन में झेजियांग यूनिवर्सिटी के दूसरे संबद्ध अस्पताल के रेडियोलॉजिस्ट और अध्ययन के मुख्य लेखक हुई होंग (Hui Hong) ने कहा, “हमारे पास पहले से ही सबूत हैं कि मस्तिष्क में छोटी रक्त वाहिकाओं की बीमारी अल्जाइमर जैसी बीमारियों को तेज करती है, और अब हमारे पास इसका संभावित स्पष्टीकरण है कि ऐसा क्यों होता है।”

उन्होंने आगे कहा, “ग्लिम्फैटिक सिस्टम में रुकावट आने से मस्तिष्क से अमाइलॉइड और टाऊ (जो अल्जाइमर रोग का कारण बनते हैं) को साफ करने की हमारी क्षमता बाधित होने की संभावना है।”

टीम ने सुझाव दिया कि अच्छी नींद (जो ग्लिम्फैटिक सिस्टम के कामकाज के लिए महत्वपूर्ण है) डिमेंशिया के जोखिम को कम करने की एक रणनीति हो सकती है। उन्होंने यह भी संभावना जताई कि ग्लिम्फैटिक फ़ंक्शन को बेहतर बनाने के लिए मौजूदा दवाओं का पुन: उपयोग किया जा सकता है, या इस काम के लिए नई दवाएं विकसित की जा सकती हैं।

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