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GCAS विवाद: भारी विरोध के बीच गुजरात सरकार ने सलाहकार पैनल का विस्तार किया, सिस्टम को खत्म करने की मांग हुई तेज

| Updated: December 11, 2025 19:41

GCAS को लेकर रस्साकशी: 32 राउंड के बाद भी खाली रहीं सीटें, अब नई कमेटी से सुधरेगी व्यवस्था या वापस पुरानी राह पर लौटेंगे विश्वविद्यालय?

गांधीनगर/अहमदाबाद: गुजरात कॉमन एडमिशन सिस्टम (GCAS) को लेकर हो रही चौतरफा आलोचना और बढ़ते विवाद के बाद, राज्य के शिक्षा विभाग ने एक बड़ा कदम उठाया है। विभाग ने इस केंद्रीकृत प्रवेश प्रक्रिया के प्रबंधन की समीक्षा करने के लिए एक विस्तारित सलाहकार समिति का गठन किया है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब छात्र, शिक्षक, कॉलेज प्रशासक और कई विश्वविद्यालयों के कुलपति (VC) इस सिस्टम को पूरी तरह से बंद करने की मांग कर रहे हैं।

कौन-कौन शामिल है नई समिति में?

इस पुनर्गठित पैनल में सात नियुक्त सदस्यों और पांच आमंत्रित सदस्यों को शामिल किया गया है, जिसका उद्देश्य वरिष्ठ शिक्षाविदों और अधिकारियों के अनुभव का लाभ उठाना है। समिति में शामिल प्रमुख नामों में सौराष्ट्र विश्वविद्यालय के कुलपति उत्पल जोशी, वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय (VNSGU) के कुलपति किशोर चावडा, आर.आर. ललन कॉलेज के विभागाध्यक्ष मनोज छाया और आर.के. पारीख आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज के प्रिंसिपल विमल जोशी शामिल हैं।

छात्र प्रतिनिधित्व पर उठे सवाल

विभाग ने एक बार फिर छात्र प्रतिनिधि के तौर पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के ध्रुमिल अखानी को आमंत्रित किया है। हालांकि, सबसे गौर करने वाली बात यह है कि किसी अन्य छात्र संगठन को इस चर्चा में शामिल नहीं किया गया है। इस एकतरफा फैसले की वजह से विभिन्न हलकों में सरकार की आलोचना हो रही है।

समिति का क्या होगा काम?

इस समिति को GCAS ढांचे में मौजूद खामियों की पहचान करने और आगामी शैक्षणिक सत्र के लिए प्रवेश प्रक्रिया को छात्रों के लिए अधिक सरल और सुविधाजनक बनाने के उपाय सुझाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। अधिकारियों के अनुसार, यह बॉडी उन शिकायतों की जांच करेगी जो बार-बार सामने आ रही हैं। साथ ही, उन तकनीकी और प्रक्रियात्मक गड़बड़ियों को दूर करने के तरीके तलाशेगी, जिन्होंने लॉन्च होने के बाद से ही इस प्लेटफॉर्म की साख पर सवाल खड़े किए हैं।

पिछले साल का कड़वा अनुभव

GCAS को राज्य भर के विश्वविद्यालयों से संबद्ध अनुदान प्राप्त (grant-in-aid) आर्ट्स, कॉमर्स और साइंस कॉलेजों में अंडरग्रेजुएट एडमिशन को सुव्यवस्थित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। लेकिन पिछले साल इसका परिणाम भारी असंतोष के रूप में सामने आया।

हैरानी की बात यह रही कि प्रवेश प्रक्रिया 32 से भी अधिक राउंड तक खिंच गई, फिर भी पिछले वर्षों की तुलना में कॉलेजों में नामांकन (enrolment) में भारी गिरावट दर्ज की गई। छात्रों का कहना था कि उन्हें बिना किसी स्पष्टता के एक राउंड से दूसरे राउंड में धकेला गया, जबकि अच्छे अंक लाने वाले कई आवेदक बिना किसी ठोस कारण के प्रवेश पाने से वंचित रह गए।

पुरानी व्यवस्था की बहाली की मांग

शिक्षक संघों, विश्वविद्यालय के अधिकारियों और छात्र समूहों ने लगातार चेताया है कि इस सिस्टम ने संस्थानों और आवेदकों दोनों पर अनावश्यक बोझ डाला है। कई कुलपतियों ने तो सार्वजनिक रूप से यह तर्क दिया है कि प्रवेश प्रक्रिया को वापस विश्वविद्यालयों को सौंप दिया जाना चाहिए। उनका मानना है कि विश्वविद्यालय पहले इस प्रक्रिया को स्वतंत्र रूप से और काफी कम व्यवधानों के साथ प्रबंधित करते थे।

तमाम विरोध और मांगों के बावजूद, राज्य सरकार ने GCAS को बरकरार रखने और सलाहकार समिति के जरिए इसमें ‘कोर्स करेक्शन’ (सुधार) करने का विकल्प चुना है। क्या यह नया पैनल उस सिस्टम में दोबारा भरोसा जगा पाएगा जो अपनी शुरुआत से ही लड़खड़ा रहा है? यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन फिलहाल शिक्षा जगत की निगाहें शुरू होने वाली इस समीक्षा प्रक्रिया पर टिकी हैं।

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