comScore सोने की कीमतों में लगी आग, सारे रिकॉर्ड टूटे! जानिए क्यों आसमान छू रहा है सोना? - Vibes Of India

Gujarat News, Gujarati News, Latest Gujarati News, Gujarat Breaking News, Gujarat Samachar.

Latest Gujarati News, Breaking News in Gujarati, Gujarat Samachar, ગુજરાતી સમાચાર, Gujarati News Live, Gujarati News Channel, Gujarati News Today, National Gujarati News, International Gujarati News, Sports Gujarati News, Exclusive Gujarati News, Coronavirus Gujarati News, Entertainment Gujarati News, Business Gujarati News, Technology Gujarati News, Automobile Gujarati News, Elections 2022 Gujarati News, Viral Social News in Gujarati, Indian Politics News in Gujarati, Gujarati News Headlines, World News In Gujarati, Cricket News In Gujarati

Vibes Of India
Vibes Of India

सोने की कीमतों में लगी आग, सारे रिकॉर्ड टूटे! जानिए क्यों आसमान छू रहा है सोना?

| Updated: October 14, 2025 13:39

सोने की कीमतों में जो तेजी आई है, वो थमने का नाम ही नहीं ले रही है। सोमवार (13 अक्टूबर) को भारतीय बाजारों में मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (MCX) पर सोने का वायदा भाव 1.62% उछलकर ₹1,23,313 प्रति 10 ग्राम के अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया। वहीं, अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी सोने ने $4,100 प्रति औंस के अविश्वसनीय आंकड़े को पार कर लिया।

इस असाधारण उछाल ने एक बार फिर लोगों का ध्यान इस पीली धातु की ओर खींचा है और निवेशक से लेकर जौहरी और अर्थशास्त्री तक, हर कोई यही सवाल पूछ रहा है: आखिर इस तूफानी तेजी की वजह क्या है और यह कब तक जारी रहेगी?

सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि सोने की कीमत में हालिया $1,000 की बढ़ोतरी महज 207 दिनों के अंदर हुई है। आपको जानकर हैरानी होगी कि सोने को $1,000 से $2,000 तक पहुंचने में लगभग 15 साल लग गए थे।

इसके बाद अगली छलांग बहुत तेज थी, और अगले $1,000 की बढ़त के साथ कीमत केवल 14 महीनों में (मार्च 2025 के मध्य तक) $3,000 पर पहुंच गई। और मार्च से अब तक, इसमें $1,000 का और इजाफा हो चुका है।

यह कोई पहली बार नहीं है जब सोने में ऐसी चमक देखी गई हो। इतिहास में ऐसे और भी मौके आए हैं, जब सोने ने निवेशकों को मालामाल किया है। मौजूदा तेजी की सीधी तुलना 1979-80 के दौर से की जा सकती है, जबकि 1930 के दशक की महामंदी के दौरान भी कुछ ऐसा ही उछाल देखने को मिला था। इन दोनों ही अवधियों में सोने के भाव में भारी वृद्धि दर्ज की गई थी।

आखिर क्यों रॉकेट बना हुआ है सोना?

सोने की मौजूदा तेजी के पीछे वैश्विक अनिश्चितताओं, मौद्रिक नीतियों की उम्मीदों और घरेलू मुद्रा की कमजोरी सहित कई कारक जिम्मेदार माने जा रहे हैं।

वैश्विक अस्थिरता और सुरक्षित निवेश की चाह

2022 के बाद से, रूस-यूक्रेन युद्ध से लेकर बढ़ते चीन-ताइवान और अमेरिका-चीन तनाव के साथ-साथ लंबे समय से चल रहे इज़राइल-हमास संघर्ष ने दुनिया भर में वित्तीय स्थिरता को हिलाकर रख दिया है। इस उथल-पुथल के बीच, सोना एक बार फिर निवेशकों के लिए सबसे पसंदीदा ‘सेफ हेवन’ यानी सुरक्षित पनाहगाह बनकर उभरा है।

केंद्रीय बैंकों की रिकॉर्ड खरीदारी

दुनिया भर के केंद्रीय बैंक इस तेजी का नेतृत्व कर रहे हैं और हाल के वर्षों में उन्होंने अपने सोने के भंडार में भारी इजाफा किया है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के आंकड़ों के अनुसार, केंद्रीय बैंकों ने 2022 में 1,082 टन, 2023 में 1,037 टन और 2024 में रिकॉर्ड 1,180 टन सोना खरीदा। यह खरीदारी पहले के लगभग 500 टन के वार्षिक औसत से दोगुनी से भी ज्यादा है।

कई देशों ने अपनी वित्तीय संप्रभुता को मजबूत करने के लिए बैंक ऑफ इंग्लैंड के वॉल्ट्स से अपने सोने के भंडार को घरेलू सुविधाओं में स्थानांतरित करना भी शुरू कर दिया है। उदाहरण के लिए, अकेले भारत ने 2022 और 2024 के बीच लगभग 214 मीट्रिक टन सोना वापस मंगाया।

कमजोर होता अमेरिकी डॉलर

सोने की तेजी का एक बड़ा कारण अमेरिकी डॉलर की कमजोरी भी है। डॉलर इंडेक्स, जो छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूती को मापता है, 2025 में लगभग 10% गिर गया है, जिससे निवेशक डॉलर-आधारित संपत्तियों से दूर जा रहे हैं। इस गिरावट की वजह ट्रंप की टैरिफ नीतियां हैं, जिन्होंने वैश्विक व्यापार पर दबाव डाला है, और अमेरिका का बढ़ता कर्ज का बोझ है।

उनके प्रस्तावित “वन बिग, ब्यूटीफुल बिल” से अमेरिकी कर्ज में $3.9 ट्रिलियन से अधिक का इजाफा हो सकता है। बढ़ते राजकोषीय घाटे को देखते हुए, मूडीज पहले ही अमेरिकी क्रेडिट रेटिंग को डाउनग्रेड कर चुका है, जिससे एक सुरक्षित और दीर्घकालिक संपत्ति के रूप में सोने की अपील और बढ़ गई है।

इतिहास में कब-कब आई थी सोने में ऐसी तेजी?

यह पहली बार नहीं है जब सोने ने इतनी शानदार दौड़ लगाई है। इतिहास में दो दौर खास तौर पर याद किए जाते हैं:

1979-80 का सुनहरा दौर

1978 और 1980 की शुरुआत के बीच, वैश्विक स्तर पर सोने की कीमतें $200 से बढ़कर $850 प्रति औंस से अधिक हो गईं, यानी कीमतों में चार गुना का इजाफा हुआ। इसके पीछे दोहरे अंकों वाली महंगाई, तेल संकट और ईरानी क्रांति तथा अफगानिस्तान पर सोवियत आक्रमण जैसे भू-राजनीतिक संकटों का मिला-जुला असर था।

भारत में, हालांकि गोल्ड कंट्रोल एक्ट के तहत आयात पर सख्त नियंत्रण था, फिर भी घरेलू कीमतों ने अंतरराष्ट्रीय रुझान को ही दर्शाया। ऐतिहासिक आंकड़ों से पता चलता है कि 24 कैरेट सोने की कीमत 1979 में ₹937 प्रति 10 ग्राम से बढ़कर 1980 में ₹1,330 हो गई, जो लगभग 45% की वृद्धि थी।

लेकिन जैसे ही अमेरिकी फेडरल रिजर्व के चेयरमैन पॉल वोल्कर ने महंगाई को काबू करने के लिए ब्याज दरों में भारी बढ़ोतरी की (जिसे “वोल्कर शॉक” के नाम से जाना जाता है), सोने की चमक फीकी पड़ गई। 1982 तक, कीमतें अपने चरम से 50% से अधिक गिर चुकी थीं। लगभग दो दशकों तक, सोना एक बियर मार्केट में फंसा रहा और 2000 के दशक की शुरुआत तक सपाट कारोबार करता रहा।

1930 के दशक की महामंदी

महामंदी के दौरान, दुनिया बैंकिंग पतन और अपस्फीति (deflation) का सामना कर रही थी। 1933 में, अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट ने निजी तौर पर सोना रखने पर प्रतिबंध लगा दिया और 1934 में गोल्ड रिजर्व एक्ट के तहत सोने का मूल्यांकन $20.67 से बढ़ाकर $35 प्रति औंस कर दिया। इस नीतिगत बदलाव ने सोने की आधिकारिक कीमत में रातों-रात लगभग 70% की वृद्धि कर दी, जो इतिहास की सबसे बड़ी छलांगों में से एक थी।

हालांकि यह वृद्धि बाजार-चालित न होकर प्रशासनिक थी, लेकिन इसने दिखाया कि कैसे मौद्रिक नीति और मुद्रा के अवमूल्यन का डर सोने की किस्मत को रातों-रात बदल सकता है।

क्या इतिहास खुद को दोहराएगा?

इतिहास बताता है कि सोने की सबसे बड़ी रैलियां अक्सर डर, महंगाई और अनिश्चितता के दौर में होती हैं और जब स्थिरता लौटती है और ब्याज दरें बढ़ती हैं तो ये रैलियां ठंडी पड़ जाती हैं।

1930 के दशक की तेजी नीति-चालित थी, जबकि 1980 का उछाल मुख्य रूप से महंगाई-चालित था। आज की रैली में नीतिगत अनिश्चितता और वैश्विक भय दोनों के तत्व शामिल हैं। लेकिन अतीत के विपरीत, अब केंद्रीय बैंक खुद सोने के सबसे बड़े खरीदारों में से हैं। उदाहरण के लिए, भारतीय रिजर्व बैंक ने डॉलर की संपत्ति से हटकर अपने सोने के भंडार को लगातार बढ़ाकर 850 टन से अधिक कर लिया है।

यह स्थिर संस्थागत मांग कीमतों के लिए एक स्तंभ के रूप में काम कर सकती है, भले ही सट्टा भावना ठंडी हो जाए। फिर भी, विश्लेषक चेतावनी देते हैं कि अगर महंगाई तेजी से गिरती है और वास्तविक ब्याज दरें बढ़ती हैं, तो सोने को 1980 की तरह ही एक बड़े करेक्शन का सामना करना पड़ सकता है।

यह भी पढ़ें-

अडानी और गूगल की ऐतिहासिक साझेदारी, विशाखापत्तनम में बनेगा भारत का सबसे बड़ा AI डेटा सेंटर

गुजरात पुलिस भी रह गई दंग: मरीज़ की जगह एम्बुलेंस में भरी थी लाखों की शराब, तस्करों का नया पैंतरा हुआ फेल

Your email address will not be published. Required fields are marked *