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गुजरात कैबिनेट विस्तार: हर्ष संघवी का बड़ा कद, कांग्रेस से आए नेताओं को झटका; RSS का दबाव या रणनीति?

| Updated: October 21, 2025 14:25

इस बड़े फेरबदल में हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर जैसे चेहरों को क्यों किया गया नजरअंदाज? क्या RSS के दबाव में मूल भाजपाइयों को मिली तरजीह?

नई दिल्ली: पिछले हफ्ते गुजरात में मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने जब अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया, तो सबसे बड़ा आश्चर्य 40 वर्षीय हर्ष संघवी को मिला प्रमोशन था। सूरत से आने वाले संघवी को गृह राज्य मंत्री के पद से सीधे उप मुख्यमंत्री बना दिया गया।

जहाँ एक तरफ संघवी को यह बड़ी तरक्की मिली, वहीं इस विस्तार के बाद से ही राजनीतिक गलियारों में एक नई बहस छिड़ गई है। चर्चा इस बात की है कि कैसे कांग्रेस छोड़कर भगवा पार्टी में शामिल हुए मूल कांग्रेसियों को इस बार किनारे कर दिया गया है।

सिर्फ दो चेहरों को मिली जगह

मुख्यमंत्री को छोड़कर, कैबिनेट का आकार 16 से बढ़कर 25 मंत्रियों का हो गया है, लेकिन इस जंबो कैबिनेट में कांग्रेस की पृष्ठभूमि से आए केवल दो विधायकों को ही जगह मिल पाई है – अर्जुन मोढवाडिया और कुंवरजी बावलिया।

पोरबंदर से विधायक और गुजरात कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रहे मोढवाडिया मेर समुदाय से आते हैं और उनका एक बड़ा जनाधार है। वहीं, बावलिया को कैबिनेट में बनाए रखना भाजपा की एक तरह की मजबूरी मानी जा रही है। वह कोली समुदाय के एक कद्दावर नेता हैं और अपनी सीट अपने दम पर जीतते आ रहे हैं।

क्या RSS के दबाव में हुआ फैसला?

राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के दबाव का नतीजा है। माना जा रहा है कि संघ चाहता था कि कांग्रेस से आए नेताओं के बजाय पार्टी के मूल कार्यकर्ताओं और नेताओं को अधिक तवज्जो दी जाए।

इस फेरबदल से एक संदेश स्पष्ट रूप से दिया गया है – भाजपा में समय बिताएं, पार्टी के लिए काम करें और उसके बाद ही किसी पद की उम्मीद रखें।

अतीत में, इसका एक बड़ा उदाहरण पूर्व उप मुख्यमंत्री नरहरि अमीन का रहा है। उन्हें भी भाजपा में शामिल होने के बाद राज्यसभा के लिए चुने जाने से पहले कुछ वर्षों तक इंतजार करना पड़ा था।

भाजपा के भीतर भी थी असहमति

यह एक खुला रहस्य है कि भाजपा के भीतर भी कांग्रेसियों को पार्टी में शामिल करने और उन्हें अहमियत देने को लेकर हमेशा से एक तरह का असंतोष और असहमति रही है। कई मौकों पर यह देखा गया कि पार्टी के मूल कार्यकर्ताओं की जगह बाहर से आए नेताओं को तरजीह दी गई।

इस कैबिनेट विस्तार में, राघवजी पटेल और बलवंतसिंह राजपूत को अपने मंत्री पद गंवाने पड़े।

इन चेहरों पर थीं सबकी निगाहें

विस्तार से पहले ऐसी जोरदार चर्चा थी कि हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और सी. जे. चावड़ा को नए मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है। ये तीनों ही नेता कांग्रेस से भाजपा में आए थे।

जहाँ चावड़ा कांग्रेस के पुराने नेता रहे हैं, वहीं हार्दिक पटेल (जो पहले कांग्रेस में थे) एक दशक पहले पाटीदार आरक्षण आंदोलन के दौरान सुर्खियों में आए थे। गांधीनगर दक्षिण से विधायक अल्पेश ठाकोर भी अपने समुदाय में एक बड़ा जनाधार रखने वाले नेता हैं।

कांग्रेस ने साधा निशाना

इस पूरे घटनाक्रम पर गुजरात कांग्रेस के प्रवक्ता डॉ. हिरेन बैंकर ने ‘वाइब्स ऑफ इंडिया’ से बात करते हुए कहा कि RSS का दबाव है या नहीं, यह भाजपा का आंतरिक मामला है। हालाँकि, उन्होंने आरोप लगाया कि पूरे मंत्रिमंडल को बदलना ही सरकार की विफलता को दर्शाता है।

उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा कांग्रेसी नेताओं को उनका करियर खत्म करने के लिए अपनी पार्टी में लेती है। मोढवाडिया और बावलिया के संबंध में डॉ. बैंकर ने कहा कि भाजपा को उन्हें शामिल करना पड़ा क्योंकि उनके पास बड़ा जनाधार है, लेकिन इसके बावजूद, दोनों को कोई बड़ा (प्रमुख) विभाग नहीं दिया गया है।

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