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गुजरात के किसानों पर दोहरी मार: कुदरत का कहर और कर्ज का बोझ, राहत पैकेज का अब भी इंतजार

| Updated: November 7, 2025 19:06

50 लाख से ज्यादा किसानों पर 1.46 लाख करोड़ रुपये का भारी कर्ज, बेमौसम बारिश के बाद अब भी है सरकारी राहत पैकेज का इंतजार

गांधीनगर: गुजरात के किसान इस समय गहरे संकट के दौर से गुजर रहे हैं। एक तरफ बेमौसम बारिश ने उनकी तैयार खड़ी फसलों को बर्बाद कर दिया है, तो दूसरी तरफ वे भारी कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं। इस मुश्किल घड़ी में जब अन्नदाता सरकार से मदद की आस लगाए बैठा है, राज्य सरकार ने अब तक किसी भी तरह के राहत पैकेज की घोषणा नहीं की है। विपक्ष ने किसानों की इस दुर्दशा के लिए सीधे तौर पर सरकारी नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है।

बेमौसम बारिश ने तोड़ी कमर

हाल ही में हुई बेमौसम बारिश ने किसानों पर उस वक्त कहर बरपाया, जब उनकी फसलें कटकर बाजार जाने के लिए बिल्कुल तैयार थीं। इस प्राकृतिक आपदा ने उनकी मेहनत पर पानी फेर दिया है। यह अतिरिक्त नुकसान ऐसे समय में हुआ है जब किसान पहले से ही आर्थिक दबाव में हैं।

लाखों करोड़ का कर्ज और बढ़ती मांग

किसानों की माली हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा लोकसभा में दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2025 तक गुजरात के 50 लाख से अधिक किसानों ने बैंकों से कुल 1,46,463 करोड़ रुपये का ऋण लिया हुआ है। गौर करने वाली बात यह है कि गुजरात में किसान ग्रामीण सहकारी बैंकों की तुलना में वाणिज्यिक बैंकों (commercial banks) से ज्यादा कर्ज लेते हैं। कर्ज के इस विशाल पहाड़ को देखते हुए अब यह मांग जोर पकड़ने लगी है कि बैंक ऋण माफ किए जाने चाहिए।

आय दोगुनी नहीं, मुसीबत दोगुनी हुई

किसानों की आय दोगुनी करने के सरकारी वादे कहीं नजर नहीं आ रहे, बल्कि वे ‘दोहरी मुसीबत’ में फंस गए हैं। गुजरात में प्रति किसान औसत कर्ज 56,000 रुपये है। यह आंकड़ा असम, बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों के किसानों पर औसतन कर्ज से कहीं ज्यादा है। चिंताजनक बात यह है कि इसके मुकाबले किसानों की औसत मासिक आय 12,000 रुपये से थोड़ी ही ज्यादा है।

महंगी खेती और बीमा का अभाव

खेती की लागत लगातार बढ़ती जा रही है। बीज, कीटनाशक और खाद खरीदना महंगा हो गया है। आर्थिक तंगी के कारण किसान अपनी फसलों का बीमा तक नहीं करवा पा रहे हैं। कांग्रेस नेताओं का आरोप है कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में शुरू की गई फसल बीमा योजना को मौजूदा भाजपा सरकार ने बंद कर दिया है, जिससे किसानों का सुरक्षा चक्र टूट गया है।

विपक्ष का सरकार पर तीखा हमला

गुजरात कांग्रेस के प्रवक्ता डॉ. मनीष दोषी ने मौजूदा हालात के लिए सरकारी नीतियों को कटघरे में खड़ा किया है। उन्होंने बताया कि पिछले 10 वर्षों में इनपुट लागत (लागत खर्च) में भारी इजाफा हुआ है, यहाँ तक कि खाद और कीटनाशकों पर भी जीएसटी लगा दिया गया है। डॉ. दोषी ने रेखांकित किया कि राज्य के लगभग 54 लाख पंजीकृत किसानों में से 70 प्रतिशत छोटे किसान हैं, जिन पर इस महंगाई की सबसे ज्यादा मार पड़ रही है।

वहीं, आम आदमी पार्टी (AAP) की गुजरात इकाई के प्रवक्ता डॉ. करन बारोट ने भी सरकार को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि किसान सरकार से उम्मीद खो चुके हैं और इसी निराशा में आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि हालांकि कृषि मंत्री ने बेमौसम बारिश से भारी नुकसान की बात स्वीकार की है, लेकिन अभी जो सर्वे चल रहा है वह महज एक ‘नाटक’ है। डॉ. बारोट ने दावा किया कि किसानों में इतना गुस्सा है कि वे इस बार भाजपा सरकार को सत्ता से उखाड़ फेंकेंगे।

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