वडोदरा — गुजरात हाईकोर्ट ने वडोदरा शहर की पुलिस को निर्देश दिया है कि वह एक व्यक्ति की शिकायत की जांच करे, जिसमें उसने एक प्रमुख फर्टिलिटी सेंटर (IVF क्लिनिक) पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया है। याचिकाकर्ता का कहना है कि IVF के जरिए जन्मे बच्चे के पितृत्व की जांच में सामने आया कि वह उसका जैविक पिता नहीं है।
बुधवार को न्यायमूर्ति एच.डी. सुथार ने मौखिक आदेश देते हुए पुलिस को चार हफ्तों के भीतर जांच कर नतीजा बताने को कहा। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि उसने मामले के तथ्यों पर कोई राय नहीं दी है और अगर पुलिस की कार्रवाई याचिकाकर्ता के खिलाफ जाती है तो उसे उचित फोरम में जाने की स्वतंत्रता होगी।
यह मामला तब हाईकोर्ट पहुंचा जब वडोदरा पुलिस ने कथित तौर पर शिकायत दर्ज करने से इनकार कर दिया। याचिका के अनुसार, दंपति ने वडोदरा के एक नामी IVF सेंटर से संपर्क किया था और उन्हें भरोसा दिलाया गया था कि प्रक्रिया पूरी तरह कानूनी और नैतिक होगी।
याचिकाकर्ता के वकील एम.बी. गोहिल ने कहा, “शुरुआती जांच में पति को उर्वर पाया गया और फिर कुछ और इलाज के बाद IVF के लिए 5.5 लाख रुपये जमा करने को कहा गया।”
गोहिल के मुताबिक, पहले पत्नी का IUI (इंट्रायूटेरिन इंसेमिनेशन) किया गया और फिर IVF प्रक्रिया की गई। “मार्च 2024 में पति के सीमेन को क्रायो-प्रिजर्व (फ्रीज) किया गया। अप्रैल में पत्नी से अंडाणु लिए गए। पांच भ्रूण संरक्षित किए गए और जून में पहला IVF चक्र किया गया। सितंबर 2024 में गर्भावस्था की पुष्टि हुई,” उन्होंने बताया।
समस्या तब शुरू हुई जब अप्रैल 2025 में जन्म के बाद बच्ची गंभीर रूप से बीमार होकर अस्पताल में भर्ती हुई। जांच में सामने आया कि बच्ची का ब्लड ग्रुप माता-पिता से मेल नहीं खाता। गोहिल ने आरोप लगाया, “दोनों माता-पिता O पॉजिटिव हैं, जबकि बच्ची B पॉजिटिव निकली। इस पर शक हुआ। पितृत्व जांच में डीएनए मेल नहीं हुआ। इससे साबित हो गया कि पति जैविक पिता नहीं है और सेंटर ने दूसरे व्यक्ति का सीमेन इस्तेमाल कर पत्नी के अंडों को निषेचित किया।”
याचिका में कहा गया है कि शिकायत दर्ज कराने की कोशिश में याचिकाकर्ता को एक पुलिस स्टेशन से दूसरे में भेजा गया, घंटों इंतजार कराया गया और आखिर में कोई शिकायत दर्ज नहीं हुई। इससे परेशान होकर उसने 10 जून को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
गोहिल ने कहा, “21 जून को, याचिका की जानकारी मिलने के बाद वडोदरा पुलिस ने पहली बार याचिकाकर्ता को बयान दर्ज करने के लिए बुलाया, लेकिन उसके बाद भी कोई प्रगति नहीं हुई।”
याचिका में यह भी कहा गया कि IVF सेंटर की एक प्रतिनिधि, जो पहले पुलिस में खुद को सिर्फ ‘कर्मचारी’ बता रही थी, हाईकोर्ट में सेंटर की ओर से पक्षकार बनने के लिए हलफनामा दाखिल कर आई। गोहिल ने दलील दी कि यह मामला पुलिस के खिलाफ निर्देश की याचिका था और IVF सेंटर का प्रतिनिधि इसमें पक्षकार नहीं हो सकता। अदालत ने यह दलील स्वीकार कर ली।
अंत में हाईकोर्ट ने वडोदरा पुलिस को आदेश दिया कि वह चार हफ्तों में जांच पूरी कर अदालत को जानकारी दे। अदालत ने यह भी कहा कि अगर पुलिस कोई प्रतिकूल फैसला लेती है या समयसीमा में रिपोर्ट नहीं देती, तो याचिकाकर्ता को नई याचिका दायर करने की छूट रहेगी।











