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संजीव भट्ट को गुजरात HC से झटका, पालमपुर जेल से ट्रांसफर रोकने की याचिका खारिज, कोर्ट ने कहा- ‘कैदी को जेल चुनने का अधिकार नहीं’

| Updated: October 27, 2025 13:56

पत्नी ने की थी ट्रांसफर रोकने की मांग, HC ने याचिका की खारिज

अहमदाबाद: गुजरात हाई कोर्ट ने पूर्व IPS अधिकारी संजीव भट्ट की पत्नी द्वारा दायर एक याचिका को खारिज कर दिया है। इस याचिका में मांग की गई थी कि भट्ट को पालमपुर जेल से किसी अन्य जेल में स्थानांतरित न किया जाए। अदालत ने यह टिप्पणी करते हुए याचिका खारिज कर दी कि भट्ट को जेल ट्रांसफर की मांग करने का कोई “पूर्ण अधिकार” (absolute right) नहीं है।

गौरतलब है कि संजीव भट्ट को 20.06.2019 को जामनगर सेशंस कोर्ट ने एक हिरासत में मौत (custodial death) के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इस सजा के बाद उन्हें जामनगर जेल में रखा गया था।

इस बीच, एक अन्य NDPS मामले में, बनासकांठा सेशंस कोर्ट ने भी 27.03.2024 को पूर्व IPS अधिकारी को दोषी ठहराया।

इसी NDPS मामले की सुनवाई के दौरान भट्ट को पालमपुर जेल में हिरासत में रखा गया था। सुनवाई पूरी होने के बाद, उनकी पत्नी को आशंका हुई कि प्रतिवादी अधिकारी (respondent authority) उनके पति को पालमपुर जेल से किसी दूसरी जेल में ट्रांसफर करने की कोशिश कर रहे हैं। इसी आशंका के चलते भट्ट की पत्नी ने हाई कोर्ट का रुख किया था।

राज्य सरकार ने दिया नीति का हवाला

मामले में राज्य सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि गृह विभाग द्वारा जारी सरकारी अधिसूचना (Government Notification) जेलों और कैदियों के वर्गीकरण (classification) को अनिवार्य करती है। इस नीति के तहत, जामनगर सेशंस कोर्ट द्वारा दी गई आजीवन कारावास की सजा को काटने के लिए भट्ट को राजकोट सेंट्रल जेल में रखा जाना आवश्यक है।

राज्य ने तर्क दिया कि भट्ट को राजकोट सेंट्रल जेल में रखना सरकारी नीति के अनुरूप है और इसलिए याचिकाकर्ता (भट्ट की पत्नी) को अपने पति के जेल ट्रांसफर की मांग करने का कोई अधिकार नहीं है। राज्य ने यह भी कहा कि गृह विभाग के सर्कुलर के अनुसार, जामनगर जिले के कैदियों को राजकोट सेंट्रल जेल में ही रखा जाता है।

अदालत की अहम टिप्पणियां

जस्टिस हसमुख डी सुथार ने अपने आदेश में कहा, “इस अदालत का सुविचारित मत है कि याचिकाकर्ता के पति (संजीव भट्ट) को जेल ट्रांसफर की मांग करने का कोई पूर्ण अधिकार नहीं है।”

उन्होंने स्पष्ट किया कि हिरासत का स्थान (place of detention) तय करना प्रशासनिक प्राधिकरण का विशेषाधिकार है। सजा सुनाए जाने के बाद, यह राज्य का कर्तव्य है और राज्य को यह तय करना होता है कि दोषियों को कहां हिरासत में रखा जाना है।

न्यायाधीश ने आगे कहा, “रिकॉर्ड पर पेश की गई नीति के अनुसार, चूंकि याचिकाकर्ता के पति को जामनगर की जिला एवं सत्र अदालत द्वारा दोषी ठहराया गया है, इसलिए उन्हें राजकोट सेंट्रल जेल में हिरासत में रखा जाना आवश्यक है, और उन्हें राजकोट जेल में ही रखा गया है।”

पालमपुर जेल क्यों ट्रांसफर किया गया था?

अदालत ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि भट्ट को दो अपराधों में दोषी ठहराया गया है – एक IPC की धारा 302 (हत्या) और दूसरा NDPS अपराध। कोर्ट ने कहा कि जब उन्हें हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था, तब वह NDPS मामले में एक विचाराधीन कैदी (under-trial prisoner) भी थे, और इसीलिए उन्हें (सुनवाई के लिए) पालमपुर जेल में स्थानांतरित किया गया था।

अदालत ने पाया कि NDPS मामले में उनका ट्रायल समाप्त होने के बाद, भट्ट को वापस राजकोट जेल में स्थानांतरित कर दिया गया ताकि वह हत्या के दोषसिद्धि के लिए अपनी आजीवन कारावास की सजा काट सकें।

‘राज्य के आदेश में कोई मनमानी नहीं’

जस्टिस सुथार ने कहा, “इसलिए, उपरोक्त तथ्यों पर विचार करते हुए, राज्य के आदेश में कोई मनमानी या दुर्भावना (arbitrariness or malafide) नहीं दिखती है।” कोर्ट ने फिर दोहराया कि हिरासत का स्थान राज्य का एक प्रशासनिक विकल्प है और दोषी के मौलिक अधिकारों का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है।

अदालत ने कहा, “दोषी/कैदी को यह मांगने का कोई पूर्ण अधिकार नहीं है कि उसे किसी विशेष स्थान या जेल में रखा जाए। जेलों का प्रबंधन और प्रशासन राज्य के दायरे में आता है और वे जेल अधिनियम, 1894 और संबंधित राज्य सरकारों द्वारा समय-समय पर बनाए गए नियमों से शासित होते हैं।”

अंत में, अदालत ने कहा कि भट्ट को पालमपुर जिला जेल से किसी अन्य जेल में स्थानांतरित नहीं करने की प्रार्थना को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। इन टिप्पणियों और राज्य सरकार के नीतिगत फैसलों के आधार पर, अदालत ने याचिकाकर्ता की मांग के अनुसार कोई भी निर्देश पारित करने का कोई आधार नहीं पाया और याचिका खारिज कर दी।

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