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अंबाजी मंदिर विवाद पर गुजरात हाईकोर्ट का फैसला, दांता राजपरिवार के विशेषाधिकार खत्म, नहीं होगी ‘प्राइवेट पूजा’

| Updated: December 25, 2025 13:30

दांता राजपरिवार की याचिका खारिज, अष्टमी पर 'प्राइवेट पूजा' का अधिकार खत्म, हाईकोर्ट ने मंदिर को बताया सार्वजनिक संपत्ति

अहमदाबाद: गुजरात हाईकोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए प्रसिद्ध आरासुरी अंबाजी माता देवस्थान को ‘सार्वजनिक ट्रस्ट’ (Public Trust) के रूप में पंजीकृत करने के निर्णय को बरकरार रखा है। अदालत ने पूर्व दांता रियासत के राजपरिवार द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने मंदिर पर अपने वंशानुगत अधिकारों का दावा किया था।

इस फैसले के साथ ही कोर्ट ने नवरात्रि के आठवें दिन राजपरिवार को मिलने वाले उस विशेषाधिकार को भी समाप्त कर दिया है, जिसके तहत वे निजी पूजा करते थे और उस दौरान आम भक्तों के प्रवेश पर रोक लगा दी जाती थी।

क्या था पूरा मामला?

यह अपील पूर्व दांता स्टेट के वारिस महाराणा महिपेन्द्रसिंहजी परमार द्वारा दायर की गई थी। उन्होंने अंबाजी मंदिर के सार्वजनिक धार्मिक ट्रस्ट के रूप में पंजीकरण को चुनौती दी थी और शाही परिवार के वंशानुगत अधिकारों की मांग की थी। आरासुरी अंबाजी मंदिर के स्वामित्व और प्रबंधन अधिकारों से जुड़ा यह मामला साल 2009 से अदालत में चल रहा था।

यह मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है और यहाँ हर साल भारी भीड़ उमड़ती है।

राजपरिवार की मांगें और विवाद का इतिहास

अपीलकर्ता का दावा था कि उन्हें नवरात्रि के आठवें दिन विशेष पूजा करने, मंदिर परिसर में हवन करने और देवी माँ के समक्ष चंवर (Chamar) डुलाने का पुश्तैनी हक है। उनकी मांग थी कि जब वे देवी की सेवा या अनुष्ठान कर रहे हों, तो उस समय अन्य तीर्थयात्रियों को मंदिर परिसर से बाहर रखा जाए या प्रवेश न दिया जाए।

गौरतलब है कि अधिकारियों द्वारा पहले इस अधिकार को स्वीकार किया गया था। इस मुद्दे को लेकर सरकार के साथ 1960 से ही विवाद चल रहा है और इस दौरान कई कानूनी लड़ाइयां लड़ी गईं।

हाईकोर्ट का तर्क: ‘मंदिर एक सार्वजनिक संस्था है’

रियासत के इतिहास, राजशाही के अधिकारों और स्वतंत्रता के बाद हुए विलय समझौते (merger agreement) का अध्ययन करने के बाद, जस्टिस एच.एम. प्रच्छक ने अपना निर्णय सुनाया। उन्होंने कहा, “मेरी राय में आरासुरी अंबाजी मंदिर एक सार्वजनिक धार्मिक संस्था है, और यहाँ विराजमान देवी एक विधिक व्यक्तित्व (juristic person) हैं, जो स्वयं संपत्ति की मालिक हैं।”

लाखों भक्तों की आस्था सर्वोपरि

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पद्मनाभस्वामी मंदिर मामले में दिए गए निर्णय का हवाला दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अपीलकर्ता उस संपत्ति पर किसी भी तरह के स्वामित्व या अधिकार का दावा नहीं कर सकता जो वास्तव में देवता की है।

जस्टिस प्रच्छक ने कहा कि राजपरिवार संशोधन के आधार पर भी किसी विशेष दिन पूजा का ऐसा विशेषाधिकार नहीं मांग सकता, जिससे आम तीर्थयात्रियों के पूजा और प्रार्थना करने के अधिकार में कटौती हो।

कोर्ट ने टिप्पणी की कि ‘आसो मास’ की नवरात्रि के दौरान लाखों लोग दर्शन के लिए आते हैं। विशेषकर नवरात्रि के आठवें दिन (अष्टमी) मंदिर में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। ऐसी भारी भीड़ के बीच, अपीलकर्ता के पक्ष में कोई भी ऐसा विशेषाधिकार नहीं दिया जा सकता जिससे आम जनता को रोका जाए।

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