अहमदाबाद: गुजरात का हीरा उद्योग, जो कभी लाखों लोगों को रोज़गार देकर उनके घरों में चमक बिखेरता था, आज खुद मंदी के अँधेरे से गुज़र रहा है। इस संकट की गहराई का अंदाज़ा सरकारी आंकड़ों से लगाया जा सकता है, जिसके अनुसार राज्य भर से हज़ारों बेरोज़गार हीरा कारीगरों ने सरकारी सहायता के लिए हाथ फैलाया है।
सूरत, जिसे दुनिया की डायमंड कैपिटल भी कहा जाता है, इस संकट से सबसे ज़्यादा प्रभावित है, जहाँ से 70,000 से ज़्यादा कारीगरों ने मदद के लिए आवेदन किया है।
विधानसभा में गूंजा कारीगरों का दर्द
गुजरात विधानसभा के मानसून सत्र के दूसरे दिन, यह मुद्दा विपक्ष द्वारा ज़ोर-शोर से उठाया गया। विपक्ष के नेता और कांग्रेस विधायक डॉ. तुषार चौधरी ने सरकार से सवाल किया कि विशेष सहायता पैकेज के तहत कितने बेरोज़गार हीरा कारीगरों ने आवेदन किया है, कितने आवेदनों को मंजूरी मिली, और कितनी राशि अब तक बांटी गई है।
इसी तरह के सवाल वडगाम से विधायक जिग्नेश मेवाणी और गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अमित चावड़ा ने भी उठाए।
इन सवालों के जवाब में, गुजरात के उद्योग मंत्री बलवंतसिंह राजपूत ने सदन को विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि:
- सूरत से रिकॉर्ड 70,254 आवेदन प्राप्त हुए हैं।
- अहमदाबाद से 3,926 आवेदन आए हैं।
- अमरेली से 2,306 कारीगरों ने आवेदन किया है।
- बोटाद से यह आंकड़ा 13,462 है।
मंत्री ने यह भी स्वीकार किया कि अब तक केवल अहमदाबाद में 170 आवेदनों को मंजूरी दी गई है और लाभार्थियों को ₹24.03 लाख की राशि वितरित की गई है। सूरत, अमरेली और बोटाद के हज़ारों आवेदन अभी भी सत्यापन की प्रक्रिया से गुज़र रहे हैं।
क्या है सरकार की विशेष सहायता योजना?
इस साल 22 मई को गृह राज्य मंत्री हर्ष संघवी ने हीरा उद्योग के लिए एक विशेष राहत पैकेज की घोषणा की थी। यह पैकेज उन कारीगरों के लिए है जो पिछले एक साल से बेरोज़गार हैं और जिन्हें कम से कम तीन साल काम करने का अनुभव है। इस योजना की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार ऐसे कारीगरों के बच्चों की स्कूल फीस का भुगतान करेगी, जिसकी अधिकतम सीमा प्रति छात्र ₹13,500 प्रति वर्ष है।
सत्यापन की धीमी रफ़्तार बनी बाधा
लाखों की मदद की घोषणा तो हो गई, लेकिन हज़ारों आवेदनों का सत्यापन एक बड़ी चुनौती बन गया है। सूरत के ज़िला कलेक्टर डॉ. सौरभ पारधी ने बताया कि राज्य सरकार से अनुदान प्राप्त हो चुका है, लेकिन आवेदनों का सत्यापन अभी जारी है। सूरत में यह ज़िम्मेदारी सूरत डायमंड एसोसिएशन (SDA) को सौंपी गई है।
मामले में तेज़ी लाने के लिए बुधवार को कलेक्टर ने SDA के अध्यक्ष जगदीश खुंट और उद्योग विभाग के अधिकारियों के साथ एक बैठक भी की।
हालांकि, SDA के अध्यक्ष जगदीश खुंट ने अपनी समस्या बताते हुए कहा, “हमारे पास सीमित कर्मचारी हैं। इतने सारे आवेदनों का सत्यापन कैसे संभव है? पूरी ज़िम्मेदारी हमारे कंधों पर डाल दी गई है।” इस समस्या से निपटने के लिए, उन्होंने एक रास्ता निकाला है।
खुंट ने बताया, “हमने इस काम को आउटसोर्स करने का फैसला किया है। हम गुरुवार से लगभग 50 लोगों को काम पर रखेंगे, जिन्हें दैनिक आधार पर भुगतान किया जाएगा।”
विपक्ष ने साधा सरकार पर निशाना
इस पूरी प्रक्रिया पर विपक्ष ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं। विपक्ष के नेता डॉ. तुषार चौधरी ने कहा, “सूरत से सबसे ज़्यादा आवेदन आना यह बताता है कि वहां स्थिति सबसे ज़्यादा खराब है। लेकिन दुख की बात है कि सूरत, अमरेली और बोटाद में अब तक एक पैसा भी नहीं बांटा गया है।”
उन्होंने आगे कहा, “हीरा कारीगरों का जीवन दयनीय हो गया है और वे अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। दिवाली का त्योहार नज़दीक है, जब कई कारखाने बंद हो जाएंगे। सरकार को इस मामले में सक्रिय रुचि लेकर काम में तेज़ी लानी चाहिए।”
क्यों फीकी पड़ी हीरे की चमक?
भारत दुनिया में तराशे हुए हीरों का सबसे बड़ा केंद्र है। दुनिया के लगभग 90% हीरों को भारत में, खासकर गुजरात के सूरत शहर में तराशा और पॉलिश किया जाता है। यह उद्योग लाखों कुशल कारीगरों को रोज़गार देता है।
लेकिन पिछले कुछ समय से यह चमकदार उद्योग कई चुनौतियों का सामना कर रहा है:
- वैश्विक मांग में कमी: अमेरिका और चीन जैसे बड़े बाज़ारों में आर्थिक मंदी के कारण हीरों की मांग में भारी गिरावट आई है।
- रूस-यूक्रेन युद्ध: युद्ध के कारण रूस की खदानों से कच्चे हीरों की आपूर्ति प्रभावित हुई है।
- लैब में बने हीरे: प्राकृतिक हीरों की तुलना में सस्ते, लैब में तैयार किए गए हीरों (Lab-Grown Diamonds) की लोकप्रियता बढ़ रही है, जिससे पारंपरिक बाज़ार पर असर पड़ा है।
इन सभी कारणों ने मिलकर गुजरात के हीरा उद्योग को मंदी की गहरी खाई में धकेल दिया है, जिसका सीधा असर उन लाखों कारीगरों पर पड़ रहा है जिनकी रोजी-रोटी इसी चमकते पत्थर पर निर्भर है। सरकार की सहायता योजना इन कारीगरों के लिए एक उम्मीद की किरण तो है, लेकिन इसका लाभ उन तक कब पहुंचेगा, यह देखना अभी बाकी है।
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