अहमदाबाद: गुजरात विधानसभा के मानसून सत्र की शुरुआत सोमवार को हंगामे के साथ हुई। पहले ही दिन कांग्रेस विधायक जिग्नेश मेवाणी ने राज्य में हुए निवेश घोटालों को लेकर सरकार को घेरा, जिसके बाद चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।
विधायक जिग्नेश मेवाणी ने ‘गुजरात प्रोटेक्शन ऑफ इंटरेस्ट ऑफ डिपॉजिट्स एक्ट-2003’ के तहत दर्ज शिकायतों पर गृह विभाग से तीखे सवाल पूछे। उन्होंने यह जानना चाहा कि पिछले दो वर्षों में धोखाधड़ी करने वाली पोंजी स्कीमों और कंपनियों के खिलाफ कितनी शिकायतें दर्ज की गईं, इन घोटालों में आम जनता का कितना पैसा फंसा है, और सरकार अब तक कितनी रकम वसूल कर पाई है।
सरकार की ओर से दिए गए जवाब ने पूरे सदन को हैरान कर दिया। गृह विभाग ने बताया कि पिछले दो सालों में इस कानून के तहत कुल 81 शिकायतें दर्ज हुई हैं, जिनमें निवेशकों की ₹402.21 करोड़ की भारी-भरकम राशि फंसी हुई है।
इस विशाल राशि के मुकाबले, वसूली की कार्रवाई बेहद धीमी रही है। सरकार ने अब तक केवल दो कंपनियों की संपत्तियों को जब्त कर उनकी नीलामी की है, जिससे ठगी के शिकार हुए निवेशकों को मात्र ₹7.53 करोड़ ही वापस लौटाए जा सके हैं। यह आंकड़ा स्पष्ट रूप से दिखाता है कि डूबी हुई रकम और वसूली के बीच एक बहुत बड़ी खाई है जिसे पाटना अभी बाकी है।
यह खुलासा उन दो बड़े घोटालों की पृष्ठभूमि में और भी गंभीर हो जाता है, जिन्होंने पिछले दो वर्षों में गुजरात को हिलाकर रख दिया था।
पहला मामला 2024 का है, जब बीजेड ग्रुप के सीईओ भूपेंद्रसिंह जाला पर ₹6,000 करोड़ की पोंजी स्कीम चलाने का आरोप लगा। इस स्कीम में 14,000 से अधिक निवेशकों को तीन साल में पैसा दोगुना करने और हर महीने आकर्षक मुनाफे का लालच दिया गया था।
गांधीनगर सीआईडी क्राइम की टीमों ने साबरकांठा, वडोदरा, गांधीनगर और राजस्थान में कई ठिकानों पर छापेमारी की, जिसमें समूह से जुड़े ₹175 करोड़ के लेनदेन का खुलासा हुआ। जांच में यह भी पता चला कि घोटाले की मुख्य कंपनी, बीजेड फाइनेंशियल सर्विसेज, पूरी तरह से गैर-अधिकृत थी।
जब बीजेड घोटाले का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि 2025 में राजकोट से एक और क्रिप्टो-करेंसी से जुड़ा घोटाला सामने आ गया। ‘ब्लॉकओरा’ नाम की एक कंपनी ने 8,000 निवेशकों से ₹300 करोड़ की ठगी की, जिनमें अकेले राजकोट के 40 निवेशक शामिल थे।
इस योजना में ₹4.25 लाख के शुरुआती निवेश पर प्रतिदिन ₹4,000 का रिटर्न देने का वादा किया गया था। निवेशकों को ‘TABC’ नामक एक नकली क्रिप्टोकरेंसी खरीदने के लिए उकसाया गया और फिर एक दिन कंपनी के संस्थापक और भागीदार अचानक गायब हो गए।
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