गांधीनगर: गुजरात में अब छोटे-मोटे अपराधों के लिए जेल की सजा नहीं होगी। ‘ईज ऑफ लिविंग’ और ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ को बढ़ावा देने और अदालतों पर से बोझ कम करने के उद्देश्य से, गुजरात विधानसभा ने मंगलवार को ‘गुजरात जन विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) विधेयक, 2025’ को बहुमत से पारित कर दिया।
इस विधेयक के तहत, राज्य सरकार के छह विभागों से जुड़े 11 कानूनों में मामूली अपराधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है और उनकी जगह मौद्रिक दंड का प्रावधान किया गया है। हालांकि, विपक्षी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (AAP) ने इस विधेयक का कड़ा विरोध किया।
क्यों लाया गया यह विधेयक?
उद्योग मंत्री बलवंतसिंह राजपूत ने विधानसभा में विधेयक पेश करते हुए इसके उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “लोकतांत्रिक शासन की नींव सरकार द्वारा अपने लोगों और संस्थानों पर विश्वास करने में निहित है। पुराने नियमों और विनियमों का जाल भरोसे में कमी पैदा करता है। इसलिए, ‘ईज ऑफ लिविंग’ और ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ सुधारों के तहत कानूनों के नियामक परिदृश्य को फिर से परिभाषित करना आवश्यक है।”
उन्होंने आगे कहा कि छोटे-मोटे अपराधों के लिए कारावास का डर व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र के विकास और व्यक्तिगत आत्मविश्वास में एक बड़ी बाधा है। सरकार इन मामूली अपराधों को मौद्रिक दंड से बदलकर जीवन और व्यवसाय को आसान बनाने और अदालतों पर बोझ कम करने का प्रयास कर रही है।
मंत्री ने बताया कि यह विधेयक केंद्र सरकार के ‘जन विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) अधिनियम, 2023’ और हाल ही में पेश किए गए ‘जन विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) विधेयक, 2025’ का अध्ययन करने के बाद लाया गया है।
क्या हैं प्रमुख बदलाव?
मंत्री राजपूत ने बताया कि इस विधेयक के जरिए 6 सरकारी विभागों के 11 कानूनों में कुल 516 प्रावधानों को अपराध की श्रेणी से बाहर किया जा रहा है।
- 1 प्रावधान से जेल की सजा पूरी तरह हटा दी गई है।
- 17 प्रावधानों में ‘जेल या जुर्माना’ की जगह सिर्फ ‘दंड’ का प्रावधान किया गया है।
- 498 प्रावधानों में ‘जुर्माने’ को ‘दंड’ से बदल दिया गया है।
उन्होंने स्पष्ट किया, “हालांकि, अधिकतम प्रावधानों में दंड की राशि बढ़ाई गई है। यह नियमों में कोई बड़ा बदलाव नहीं है, बल्कि लोगों और सरकार के बीच विश्वास को मजबूत करने का एक प्रयास है।”
विपक्ष ने बताया ‘अपराधियों को बढ़ावा देने वाला’ विधेयक
जहां सत्ताधारी भाजपा के सदस्यों ने विधेयक का समर्थन किया, वहीं विपक्ष ने इसे लेकर गंभीर चिंताएं जताईं। कांग्रेस विधायक किरीट पटेल ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा, “एक तरफ सरकार कानून को सख्त बनाने की बात करती है, तो दूसरी तरफ ऐसे नियम लाकर उन्हें ढीला कर रही है। इससे लोगों में कानून का डर खत्म हो जाएगा और वे नियमों का उल्लंघन करने के लिए प्रोत्साहित होंगे।”
आम आदमी पार्टी (AAP) ने भी विधेयक का पुरजोर विरोध किया। ‘आप’ विधायक हेमंत अहीर ने आशंका जताई कि यह विधेयक घोटालेबाजों को फायदा पहुंचा सकता है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा, “गुजरात सहकारी अधिनियम में एक संशोधन के अनुसार, यदि सहकारी समिति का कोई जिम्मेदार व्यक्ति रजिस्टर खो देता है, तो उस पर केवल 25,000 रुपये का जुर्माना लगेगा। अगर आप इसे एक छोटी सी गलती कहकर जाने देते हैं, तो यह हजारों किसानों को बहुत बड़ा नुकसान पहुंचा सकता है।”
एक अन्य ‘आप’ विधायक गोपाल इटालिया ने कहा, “यह पूरा विधेयक अपराधियों को सुविधा देने के लिए है। जानबूझकर गलती करने वाले व्यक्ति को सिर्फ जुर्माना लगाकर नहीं छोड़ा जाना चाहिए, उसे सजा मिलनी ही चाहिए।”
उन्होंने यह भी कहा कि विधेयक में अपील का कोई प्रावधान नहीं है और यह सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी को व्यापक अधिकार देता है। उन्होंने विधेयक को पारित करने से पहले समीक्षा के लिए एक चयन समिति को भेजने का सुझाव दिया।
सरकार का आश्वासन
विपक्ष की चिंताओं का जवाब देते हुए मंत्री बलवंतसिंह राजपूत ने सदन को आश्वासन दिया कि किसी भी गंभीर प्रकृति की गलती के लिए किसी को बख्शा नहीं जाएगा। उन्होंने कहा, “मैं आप सभी को विश्वास दिलाता हूं कि यह गुजरात सरकार, प्रधानमंत्री नरेंद्रभाई मोदी द्वारा दिखाए गए रास्ते पर चलते हुए, किसी भी भ्रष्ट व्यक्ति को बचने नहीं देगी। यह निश्चित है कि उसे कठोर से कठोर सजा दी जाएगी।”
विपक्ष के विरोध के बावजूद, विधेयक को सदन में बहुमत से पारित कर दिया गया। इस विधेयक के तहत जिन प्रमुख कानूनों में संशोधन प्रस्तावित है, उनमें गुजरात सहकारी समिति अधिनियम, 1961; गुजरात कृषि उपज और विपणन अधिनियम, 1963; गुजरात नगर नियोजन और शहरी विकास अधिनियम, 1976; और गुजरात दुकान और प्रतिष्ठान अधिनियम, 2019 जैसे महत्वपूर्ण कानून शामिल हैं।
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