बनासकांठा, गुजरात — एक घरेलू कामगार और एक आईपीएस अधिकारी के बीच हुई सामान्य बातचीत ने 11 साल पहले बेघर हुए 29 आदिवासी परिवारों की घर वापसी की राह खोल दी।
पिछले महीने अल्का नाम की एक रसोइया ने अपने नियोक्ता, सहायक पुलिस अधीक्षक (ASP) सुमन नाला को बताया कि किस तरह साल 2014 में उनके विस्तारित कोडरवी समुदाय को रातोंरात अपने पैतृक गांव — दांता तालुका के मोता पिपोदरा — से बाहर कर दिया गया था। कारण था – उनके समुदाय के एक सदस्य पर हत्या का आरोप लगना।
यह निष्कासन किसी कानूनी प्रक्रिया के तहत नहीं हुआ था, बल्कि एक पुरानी आदिवासी परंपरा ‘छड़ोतारू’ के तहत हुआ। इस परंपरा में जब किसी व्यक्ति पर हत्या का आरोप लगता है, तो या तो उसके परिवार को मृतक के परिजनों को मुआवज़ा (जिसे रक्त-धन कहा जाता है) देना होता है या फिर पूरे परिवार को गांव छोड़ना पड़ता है।
कोडरवी समुदाय को अपनी ज़मीन और घर छोड़ने पड़े। कई लोग सूरत जैसे शहरों में प्रवास कर गए, जहां उन्होंने खेतों में मजदूरी या हीरे तराशने का काम शुरू किया। अल्का के पति भी सूरत में ही एक यूनिट में काम करते हैं।
हाल ही में कोडरवी समुदाय के बुजुर्गों ने मोता पिपोदरा गांव में पुनर्वास के लिए पुलिस से मदद मांगी और एक आवेदन सौंपा। जब अल्का ने अपनी कहानी ASP सुमन नाला को सुनाई, तो उन्होंने तुरंत मामले की जानकारी बनासकांठा के पुलिस अधीक्षक (SP) अक्षयराज मकवाना को दी।
इसके बाद हदद थाने के उप-निरीक्षक जेआर देसाई ने पहल करते हुए विस्थापित परिवारों की जानकारी जुटाई, दोनों समुदायों के बीच बैठकें करवाईं और गांव पंचायत से बातचीत शुरू की ताकि शांतिपूर्ण पुनर्वास सुनिश्चित किया जा सके।
जांच के दौरान पुलिस को एक महत्वपूर्ण जानकारी मिली — हत्या का आरोपी व्यक्ति 2017 में कोर्ट से बरी हो गया था और वह वापस गांव लौट आया था, जबकि उसके समुदाय के अन्य सदस्य दर-दर की ठोकरें खा रहे थे।
SI देसाई के अनुसार, “कई दौर की बातचीत और समझाइश के बाद, गांव के नेताओं को इस पुनर्वास प्रक्रिया को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखने के लिए तैयार किया गया। साथ ही, उन्हें यह भी स्पष्ट कर दिया गया कि यदि कानून की अवहेलना की गई तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी।”
इन प्रयासों के परिणामस्वरूप गुरुवार को लगभग 300 लोगों वाले 29 कोडरवी परिवार 11 वर्षों बाद अपने गांव लौटे। इस मौके पर गुजरात राज्य के गृह राज्य मंत्री हर्ष सांघवी भी उपस्थित रहे और इस पुनर्वास कार्यक्रम का हिस्सा बने।
SP मकवाना के अनुसार, इन परिवारों के नाम गांव में करीब 8.5 हेक्टेयर कृषि भूमि दर्ज है, जो वर्षों से खाली और उजाड़ पड़ी थी। बनासकांठा पुलिस और ज़िला भूमि रिकॉर्ड निरीक्षक की मदद से इस ज़मीन को चिह्नित कर खेती के लायक बनाया गया।
पुनर्वास के तहत:
- दो मकानों का निर्माण हो चुका है, जबकि बाकी 27 मकान प्रधानमंत्री आवास योजना, ज़िला प्रशासन और सामाजिक संगठनों की मदद से जल्द तैयार किए जा रहे हैं।
- कोडरवी परिवारों के पुनर्वास के लिए कुल ₹70 लाख जुटाए गए हैं — जिनमें ₹30 लाख एनजीओ और दानदाताओं से, और ₹40 लाख सरकार से मिले अनुदान के रूप में हैं।
- चूंकि मोता पिपोदरा गांव पैदल ही पहुंचा जा सकता है, इसलिए वहां तक सड़क निर्माण के लिए भी बजट स्वीकृत किया गया है।
कई परिवार पहले ही गांव लौटकर अस्थायी टीन की झोपड़ियां बनाकर रह रहे हैं। अन्य परिवारों के भी जल्द ही लौटने की उम्मीद है।
SP मकवाना ने कहा, “यह सिर्फ घर बनाने की नहीं, बल्कि सम्मान, ज़मीन और समुदाय को फिर से बहाल करने की कहानी है। इन परिवारों की वापसी न्याय और पुनर्संरचना की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।”
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