अहमदाबाद: गुजरात का कच्छ इलाका बार-बार भूकंप के झटकों से क्यों दहलता रहता है? आखिर इस क्षेत्र की ज़मीन के नीचे ऐसा क्या है जो इसे इतना संवेदनशील बनाता है? इस सवाल का जवाब अब ज़मीन की गहराइयों से निकलकर सामने आया है। इंस्टीट्यूट ऑफ सीस्मोलॉजिकल रिसर्च (ISR), गांधीनगर और हिमाचल प्रदेश की महाराज अग्रसेन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की एक हालिया स्टडी में चौंकाने वाले तथ्य मिले हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार, राज्य के नीचे कई ‘फॉल्ट लाइन्स’ (भूगर्भीय दरारें) और धरती की परतों में हो रहे बदलाव (Deformations) एक-दूसरे से टकरा रहे हैं, जो यहाँ लगातार आ रहे भूकंपों और झटकों का मुख्य कारण हैं।
यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है, जब अगले महीने गुजरात 2001 के विनाशकारी भूकंप के 25 साल पूरे करने जा रहा है। इस महत्वपूर्ण अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 2008 से 2024 के बीच रिकॉर्ड किए गए 1,300 से अधिक भूकंपीय झटकों (Tremors) का बारीकी से विश्लेषण किया।
इसके लिए 56 स्थायी और 20 अस्थायी भूकंपीय स्टेशनों की मदद ली गई, ताकि गुजरात के नीचे की ज़मीन को ‘स्कैन’ किया जा सके और उन इलाकों की पहचान हो सके जहाँ टेक्टोनिक गतिविधियाँ सबसे तेज़ हैं।
क्या कहती है नई रिपोर्ट?
यह विशेष अध्ययन ‘एल्सेवियर’ (Elsevier) के जर्नल टेक्टोनोफिजिक्स (Tectonophysics) के नवीनतम अंक में प्रकाशित हुआ है। इसका शीर्षक है— ‘Complex nature of the crustal anisotropy in the western margin of the Indian subcontinent and its geodynamic implications’। इस शोध को सौरव सैकिया, राकेश प्रजापत, सुमेर चोपड़ा, संतोष कुमार, विनय कुमार द्विवेदी (ISR) और विकास कुमार (ISR और महाराज अग्रसेन यूनिवर्सिटी) ने अंजाम दिया है।
शोधकर्ता सौरव सैकिया ने बताया कि उनकी टीम के लिए सबसे हैरान करने वाला नतीजा कच्छ क्षेत्र की प्रकृति को लेकर था। भूगर्भिक रूप से ‘कच्छ रिफ्ट बेसिन’ के नाम से जाने वाले इस इलाके में गुजरात के बाकी हिस्सों की तुलना में क्रस्टल डिफॉर्मेशन (भू-पर्पटी में विरूपण या बदलाव) का स्तर काफी ज्यादा पाया गया।
उन्होंने बताया, “सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह बदलाव या डिफॉर्मेशन उन प्रमुख सक्रिय फॉल्ट्स के बिल्कुल सीध में है, जो अतीत में बड़े भूकंपों के लिए जिम्मेदार रहे हैं। इनमें कच्छ मेनलैंड फॉल्ट, साउथ वागड़ फॉल्ट, अल्लाह बंड फॉल्ट और गेड़ी फॉल्ट शामिल हैं।”
इतिहास गवाह है: बड़ी तबाही का केंद्र रहा है यह क्षेत्र
स्टडी के मुताबिक, इस क्षेत्र ने रिक्टर पैमाने पर 6 या उससे अधिक तीव्रता वाले कम से कम चार बड़े भूकंप देखे हैं। इसमें 1819 में अल्लाह बंड में आया 7.8 तीव्रता का भूकंप और 2001 में कच्छ और पूरे गुजरात को हिला देने वाला 7.7 तीव्रता का विनाशकारी भूकंप शामिल है।
सैकिया ने समझाया कि उन्होंने विशेष रूप से ‘अनिसोट्रॉपी’ (Anisotropy) यानी विरूपण का अध्ययन किया ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या यह बड़े फॉल्ट लाइन्स के साथ जुड़ा है या यह केवल स्थानीय संरचनाओं का हिस्सा है।
उत्तर और दक्षिण गुजरात में अलग है पैटर्न
अध्ययन में एक दिलचस्प बात यह सामने आई कि सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात के नर्मदा रिफ्ट बेसिन में, ज़मीन के नीचे के बदलाव स्थानीय फॉल्ट संरचनाओं का अनुसरण करते हैं। वहीं दूसरी ओर, उत्तर गुजरात और खंभात (Cambay) रिफ्ट बेसिन में, विरूपण की दिशा ‘इंडियन प्लेट’ के ‘यूरेशियन प्लेट’ की ओर हो रहे कुल मूवमेंट (संचलन) के साथ मेल खाती है।
भविष्य के लिए क्या हैं संकेत?
शोधकर्ताओं का कहना है कि कम समय के नज़रिए से देखें, तो ये निष्कर्ष बताते हैं कि राज्य के कुछ हिस्सों में भूकंप इतने आम क्यों हैं। वहीं, दीर्घकालिक (Long term) नज़रिए से यह स्पष्ट होता है कि कच्छ जैसे क्षेत्र भविष्य में भी भूकंपीय रूप से सक्रिय रहेंगे।
एक शोधकर्ता ने बताया, “इसका मुख्य कारण एक सीमित क्षेत्र के भीतर कई फॉल्ट्स का आपस में टकराना है, जिससे क्रस्ट (भू-पर्पटी) में जटिल और लगातार तनाव (Stress) जमा हो रहा है।”
क्या इससे सुरक्षा के नियम बदलेंगे?
क्या इस अध्ययन का असर भूकंपीय जोखिम मूल्यांकन (Seismic Vulnerability Assessment) या बिल्डिंग कोड्स पर पड़ेगा? इस पर शोधकर्ताओं का कहना है कि भले ही मौजूदा प्रक्रियाओं को बदलना इस अध्ययन का प्राथमिक उद्देश्य नहीं था, लेकिन यह धरती के नीचे चल रहे तनाव और बदलावों को समझने के लिए एक ठोस वैज्ञानिक ढांचा प्रदान करता है।
शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष में कहा, “सक्रिय विरूपण वाले क्षेत्रों और उन्हें नियंत्रित करने वाले फॉल्ट सिस्टम की पहचान करके, यह अध्ययन भूकंप के खतरे के आकलन के लिए बहुमूल्य जानकारी देता है। भविष्य में बेहतर तैयारियों के लिए इस जानकारी को इंजीनियरिंग, शहरी नियोजन (Urban Planning) और जोखिम अध्ययन के साथ जोड़ा जा सकता है।”
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