महिसागर: गुजरात के महिसागर जिले में एक बड़े भ्रष्टाचार का पर्दाफाश हुआ है, जहाँ पीने के पानी के लिए बनाई गई ‘नल से जल’ योजना में 123.22 करोड़ रुपये की भारी हेराफेरी सामने आई है। यह घोटाला साल 2019 से 2023 के बीच हुआ, जिसमें सरकारी खजाने को करोड़ों का चूना लगाया गया।
CID क्राइम (वडोदरा ज़ोन) की गहन जांच के बाद इस पूरे घोटाले में शामिल 12 सरकारी अधिकारियों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज की गई है। इन अधिकारियों पर जनता के पैसे का गबन करने का गंभीर आरोप है।
राज्य के जल संसाधन मंत्री कुंवरजी बावलिया ने मंगलवार को विधानसभा में बताया कि प्रदेश के 91 लाख परिवारों को पाइप के जरिए पानी का कनेक्शन मुहैया करा दिया गया है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि सरकार हर घर तक नल से साफ पानी पहुंचाने के अपने संकल्प पर पूरी तरह कायम है।
महिसागर जिले में गड़बड़ी पर बड़ी कार्रवाई
विधानसभा में प्रश्नकाल के दौरान एक सवाल का जवाब देते हुए मंत्री ने एक अहम जानकारी साझा की। उन्होंने बताया कि महिसागर जिले में इस योजना को लागू करने में गंभीर अनियमितताएं पाई गईं। इन गड़बड़ियों के चलते सरकार ने सख्त कदम उठाते हुए 122 एजेंसियों और 41 जल समितियों से 297 करोड़ रुपये की वसूली की है।
कैसे काम करती है योजना?
कुंवरजी बावलिया ने योजना की कार्यप्रणाली पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में नल कनेक्शन के लिए कुल लागत का 10% हिस्सा लोगों के सामुदायिक योगदान से इकट्ठा किया जाता है। हालांकि, आदिवासी इलाकों की मुश्किल भौगोलिक परिस्थितियों और वहां की पंचायतों या जल समितियों की कमजोर आर्थिक स्थिति को देखते हुए, 10% सामुदायिक योगदान की राशि भी राज्य सरकार ही वहन करती है।
शिकायतों पर सरकार का एक्शन मोड
‘जल जीवन मिशन’ कार्यक्रम के तहत महिसागर जिले से मिली शिकायतों पर की गई कार्रवाई का ब्योरा देते हुए मंत्री ने कहा, “जिले के कुल 714 गांवों में से 680 गांवों में घरेलू नल कनेक्शन देने का काम चल रहा है। हमें 620 गांवों में शिकायतों की जांच के दौरान अनियमितताएं मिलीं।”
620 गाँवों के हक़ का पैसा हड़पा
यह घोटाला महिसागर के सभी तालुकों के 620 से ज़्यादा गाँवों से जुड़ा है, जहाँ पीने के पानी की पाइपलाइन बिछाने, कुएँ खोदने और ट्यूबवेल लगाने के लिए सरकारी फंड जारी किया गया था। लेकिन इन भ्रष्ट अधिकारियों ने एक आपराधिक साजिश रचकर जन कल्याण के इस काम को करने के बजाय सारा पैसा अपनी जेब में डाल लिया। उनका मकसद सरकारी योजनाओं की आड़ में निजी फायदा कमाना था।
कागज़ों पर काम दिखाकर किया भ्रष्टाचार
जांच में यह बात सामने आई है कि अधिकारियों ने अपने साथियों की मदद से फ़र्ज़ी दस्तावेज़ तैयार किए। इन नकली कागज़ों के ज़रिए यह दिखाया गया कि पाइपलाइन बिछाने, घरों में पानी के कनेक्शन देने और दूसरे संबंधित काम पूरे हो चुके हैं। हकीकत में, ज़्यादातर स्वीकृत काम या तो अधूरे पड़े थे या कभी शुरू ही नहीं हुए।
अधिकारियों ने ठेके देने की प्रक्रिया को भी ताक पर रख दिया। उन्होंने प्रमाणित एजेंसियों को काम देने के बजाय अपने ही सहयोगियों, एजेंटों और कंपनियों को ठेके दे दिए। इसके बाद, फंड निकालने के लिए नकली बिल और रसीदें बनाई गईं और उन्हें असली बताकर सरकारी खजाने से पैसा निकाल लिया गया।
सरकार को 123.22 करोड़ का नुकसान
इन अधिकारियों ने लोक सेवक के तौर पर अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ किया और जनता के हितों के साथ खिलवाड़ किया। उनके इस धोखाधड़ी भरे कारनामे से राज्य सरकार को 123.22 करोड़ रुपये का सीधा नुकसान हुआ है।
CID क्राइम की जांच के आधार पर पुलिस ने सभी 12 अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी, जालसाजी और विश्वासघात का मामला दर्ज कर लिया है। अब आगे की जांच की जा रही है ताकि इस घोटाले में शामिल अन्य लोगों की भी पहचान की जा सके।
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