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गुजरात का ‘The Ghost’: आनंद से म्यांमार तक फैला था साइबर गुलामी का जाल, 500 लोगों को बनाया शिकार

| Updated: December 8, 2025 12:40

5 एफआईआर, 3 राज्य और 500 पीड़ित: कैसे आनंद का एक साधारण लड़का बन गया अंतरराष्ट्रीय साइबर अपराध का मास्टरमाइंड 'The Ghost'? जानिए पूरी इनसाइड स्टोरी।

गुजरात के आनंद शहर का रहने वाला एक 29 वर्षीय युवक, जो कभी अपने माता-पिता के कैटरिंग बिजनेस से जुड़ा था, आज एक अंतरराष्ट्रीय साइबर क्राइम सिंडिकेट का मास्टरमाइंड माना जा रहा है। पुलिस फाइलों में ‘नील’ और ‘द घोस्ट’ (The Ghost) के नाम से मशहूर नीलेश पुरोहित पर आरोप है कि उसने पिछले दो साल से भी कम समय में भारत से लेकर पाकिस्तान और चीन तक फैले एक नेटवर्क के जरिए 500 से अधिक लोगों को ‘साइबर गुलामी’ के दलदल में धकेला है।

गुजरात पुलिस ने करीब 20 दिन पहले नीलेश को गिरफ्तार किया था और अब उसकी काली दुनिया की परतें खुलनी शुरू हो गई हैं। उस पर पांच एफआईआर दर्ज हैं और जांच का दायरा तीन राज्यों तक फैला हुआ है।

अहमदाबाद एयरपोर्ट से फिल्मी स्टाइल में गिरफ्तारी

‘द घोस्ट’ की गिरफ्तारी किसी थ्रिलर फिल्म के सीन से कम नहीं थी। 16 नवंबर को गुजरात पुलिस की एक टीम उसे दबोचने के लिए गांधीनगर से 100 किलोमीटर दूर आनंद जा रही थी। तभी उन्हें एक खुफिया सूचना मिली कि नीलेश आनंद में नहीं, बल्कि अहमदाबाद के सरदार वल्लभभाई पटेल इंटरनेशनल एयरपोर्ट के पास है।

सूचना मिलते ही पुलिस और सुरक्षा एजेंसियां अलर्ट हो गईं। एयरपोर्ट पुलिस को निर्देश दिया गया कि नीलेश को किसी भी फ्लाइट में चढ़ने न दिया जाए। पुलिस टीम तेजी से एयरपोर्ट पहुंची और नीलेश को इंटरनल टर्मिनल की ओर जाते वक्त गिरफ्तार कर लिया। वह मलेशिया भागने की फिराक में था। पुलिस का कहना है कि अगर वे कुछ मिनट भी लेट होते, तो ‘द घोस्ट’ फिर गायब हो जाता।

अगले दिन डिप्टी सीएम हर्ष संघवी ने उसकी गिरफ्तारी की घोषणा की। फिलहाल वह साबरमती सेंट्रल जेल में न्यायिक हिरासत में है।

दुबई से शुरू हुआ जुर्म का सफर

पुरोहित परिवार मूल रूप से राजस्थान का है, लेकिन दशकों से आनंद में बसा हुआ है। 12वीं के बाद पढ़ाई छोड़ने वाले नीलेश ने पहले फाइनेंस का काम शुरू किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। 2024 की शुरुआत में वह बेहतर मौकों की तलाश में दुबई गया। वहां दुबई इन्वेस्टमेंट पार्क की एक फर्म में उसे नौकरी मिली, जो कथित तौर पर साइबर अपराधों में शामिल थी।

जांच अधिकारियों के मुताबिक, दुबई में नीलेश की मुलाकात पाकिस्तानी और चीनी एजेंटों से हुई। उन्होंने उसे ग्लोबल साइबर स्लेवरी (Cyber slavery) के काले कारोबार से परिचित कराया। इस सिस्टम को समझने के लिए नीलेश ने थाईलैंड और म्यांमार की यात्रा की और अवैध रूप से वहां के साइबर फ्रॉड सेंटरों का दौरा किया।

कुख्यात ‘के के पार्क’ में ली ट्रेनिंग

नीलेश ने म्यांमार के कुख्यात ‘के के पार्क’ (K K Park) का भी दौरा किया, जिसे चीनी गिरोह द्वारा चलाया जाने वाला साइबर अपराध का गढ़ माना जाता है। पुलिस सूत्रों के अनुसार, नीलेश वहां करीब एक महीने तक रहा और उसने काम करने के तरीके सीखे। वह खुद पीड़ित बनकर नहीं, बल्कि अपनी मर्जी से इस धंधे में शामिल हुआ था।

वापस आकर उसने अपना नेटवर्क खड़ा किया। पुलिस का मानना है कि उसने अक्टूबर 2024 में गुजरात से पहले व्यक्ति को थाईलैंड के रास्ते म्यांमार भेजा था।

कैसे काम करता था नेटवर्क?

नीलेश का तरीका बेहद संगठित था। वह लोगों को अच्छी नौकरी और डेटा एंट्री जॉब का लालच देकर फंसाता था। इसके लिए व्हाट्सएप, टेलीग्राम, फेसबुक और इंस्टाग्राम का सहारा लिया जाता था।

एक बार जब कोई जाल में फंस जाता, तो उसे बैंकॉक (थाईलैंड) बुलाया जाता। वहां से सड़क के रास्ते 450 किलोमीटर दूर ताक सिटी ले जाया जाता। इसके बाद जंगलों के रास्ते 15-20 किलोमीटर पैदल चलकर और मोई या थौंग्यिन नदी पार करके उन्हें म्यांमार के म्यावाडी टाउनशिप स्थित ‘के के पार्क’ पहुंचाया जाता था।

वहां पहुंचने पर पीड़ितों के पासपोर्ट छीन लिए जाते थे और उनसे जबरन दो साल के अनुबंध पर हस्ताक्षर कराए जाते थे। अगर कोई बीच में छोड़ना चाहता, तो उससे 3.5 लाख से 5 लाख रुपये तक की मांग की जाती थी।

कमीशन और काली कमाई

इंस्पेक्टर मनाली रादडिया, जो इस मामले की जांच कर रही हैं, ने बताया कि नीलेश हर एक ‘साइबर स्लेव’ (पीड़ित) की सप्लाई पर डॉलर में कमाई करता था, जो भारतीय रुपयों में 1.76 लाख से 3.96 लाख रुपये तक होती थी। इस पैसे को संभालने के लिए वह मूल अकाउंट्स (mule accounts) और पांच से ज्यादा बाइनेंस क्रिप्टो वॉलेट का इस्तेमाल करता था।

गांधीनगर जोन पुलिस स्टेशन CID के साइबर सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के अनुसार, नीलेश ने 126 से अधिक सब-एजेंटों का नेटवर्क बना रखा था, जो 30 पाकिस्तानी एजेंटों के संपर्क में थे। इस नेटवर्क के दूसरे छोर पर 100 से अधिक चीनी और विदेशी कंपनियां थीं, जो इन पीड़ितों का इस्तेमाल साइबर अपराधों के लिए करती थीं।

12 देशों के नागरिकों को बनाया शिकार

आरोप है कि नीलेश ने भारत, श्रीलंका, फिलीपींस, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, नाइजीरिया, मिस्र, कैमरून, बेनिन और ट्यूनीशिया जैसे देशों के 500 से अधिक नागरिकों को म्यांमार, कंबोडिया, वियतनाम और थाईलैंड भेजा।

पकड़े जाने से ठीक एक दिन पहले, उसने पंजाब के एक युवक को कंबोडिया भेजा था। गुजरात से कम से कम 22 युवकों को सीधे उसके द्वारा ट्रैफिक किए जाने की पुष्टि हुई है।

पीड़ितों का दर्द

इन कैंपों में फंसे लोगों से जबरन फिशिंग, क्रिप्टो स्कैम, पोंजी स्कीम और डेटिंग ऐप फ्रॉड करवाए जाते थे। विरोध करने पर उन्हें शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना दी जाती थी। कई पीड़ित इतने डरे हुए हैं कि उन्होंने एफआईआर तक दर्ज नहीं कराई, जिसके चलते पुलिस ने खुद राज्य की ओर से शिकायतें दर्ज की हैं।

जांच का दायरा

नीलेश के खिलाफ गांधीनगर CID में दो, सूरत सिटी पुलिस में एक, और महाराष्ट्र व पश्चिम बंगाल की साइबर क्राइम सेल में एक-एक एफआईआर दर्ज है। सीबीआई (CBI) भी अंतरराष्ट्रीय साइबर गुलामी के दो मामलों में उसकी भूमिका की जांच कर रही है।

उसकी गिरफ्तारी से पहले, गुजरात पुलिस ने उसके दो सब-एजेंटों – पोरबंदर के हितेश अर्जुन सोमैया (12 युवकों को भेजने का आरोप) और जूनागढ़ से सोनल फल्दू को गिरफ्तार किया था। इन्हीं लोगों की पूछताछ में ‘द घोस्ट’ यानी नीलेश पुरोहित का नाम सामने आया था।

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