गांधीनगर/अहमदाबाद: गुजरात सरकार भले ही ‘वाइब्रेंट गुजरात’ समिट के जरिए औद्योगिकीकरण की बड़ी-बड़ी बातें करे और करोड़ों के निवेश का दावा करे, लेकिन जमीनी हकीकत इन सरकारी दावों से बिल्कुल अलग और चिंताजनक है। एक तरफ जहां सरकार शिक्षित युवाओं के लिए रोजगार के बढ़ते अवसरों का ढोल पीट रही है, वहीं केंद्र सरकार की एक ताजा रिपोर्ट ने गुजरात के ‘विकास मॉडल’ की एक अलग ही तस्वीर पेश की है।
रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले पांच वर्षों में गुजरात में लगभग 11,000 लघु और सूक्ष्म उद्योग (Small and Micro Industries) हमेशा के लिए बंद हो गए हैं। यह आंकड़ा न सिर्फ चौंकाने वाला है, बल्कि राज्य की औद्योगिक नीति पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है।
बड़ों के लिए ‘रेड कार्पेट’, छोटों के लिए सिर्फ वादे
आंकड़े बताते हैं कि छोटे उद्यमों के बंद होने की रफ्तार लगातार तेज हो रही है। इसकी मुख्य वजह सरकार की ओर से पर्याप्त प्रोत्साहन (Incentives) न मिलना है। जहां एक तरफ 2024-25 में शुरू होने वाले बड़े उद्योगों के लिए सरकार ने रेड कार्पेट बिछा रखा है, उन्हें प्रीमियम जमीनें और करोड़ों रुपये की सब्सिडी दी जा रही है, वहीं छोटी इकाइयां अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रही हैं।
छोटे और सूक्ष्म उद्यमों का कहना है कि उन्हें सरकार से न के बराबर मदद मिलती है, जिससे बाजार में बड़े खिलाड़ियों के सामने टिकना उनके लिए नामुमकिन होता जा रहा है। नतीजा यह है कि बेरोजगारी बढ़ रही है।
सरकारी आंकड़ों में छिपा कड़वा सच
केंद्र सरकार के अपने आंकड़े इस संकट की गवाही देते हैं:
- 2020-21: इस साल 67 छोटे उद्योग बंद हुए थे।
- 2024-25: यह आंकड़ा कई गुना बढ़कर 3,534 तक पहुंच गया है।
- कुल नुकसान: पिछले 5 सालों में कुल 10,948 छोटी इकाइयां बंद हो चुकी हैं।
- रोजगार पर असर: इन उद्योगों के बंद होने से सीधे तौर पर 54,901 लोगों की नौकरी चली गई है।
उद्यम पोर्टल पर भी दिखा भारी गिरावट का असर
संकट की गहराई का अंदाजा ‘उद्यम पोर्टल’ (Udyam Portal) पर हुए रजिस्ट्रेशन से भी लगाया जा सकता है। साल 2023-24 में जहां 13 लाख से ज्यादा छोटे उद्योगों ने रजिस्ट्रेशन कराया था, वहीं 2025-26 तक यह संख्या गिरकर महज 5,30,160 रह गई है। रजिस्ट्रेशन में आई यह भारी गिरावट इस बात का सबूत है कि छोटे उद्योग किस खतरनाक रफ्तार से दम तोड़ रहे हैं।
राज्य सरकार ने भले ही ‘वाइब्रेंट गुजरात’ की सफलता के लिए वाहवाही बटोरी हो, लेकिन जिला स्तर पर “डिस्ट्रिक्ट वाइब्रेंट” जैसी पहलों को दोहराने की कोशिशें नाकाम साबित हो रही हैं। जानकारों का मानना है कि सरकार का पूरा फोकस सिर्फ बड़ी इंडस्ट्रीज पर है, जिससे छोटे खिलाड़ी हाशिए पर चले गए हैं।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?
राजनीति और अर्थशास्त्र के विश्लेषक हेमंत शाह ने वाइब्स ऑफ़ इंडिया से बातचीत में कहा, “वाइब्रेंट गुजरात समिट के दौरान सारा ध्यान केवल बड़े उद्योगों पर केंद्रित होता है। हालांकि, दिखावा यह किया जाता है कि छोटे, मध्यम और सूक्ष्म उद्योगों (MSME) का भी ख्याल रखा जा रहा है, लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ नहीं होता।”
शाह ने यह भी बताया कि मध्यम उद्योगों के लिए टर्नओवर के मानक (Benchmarks) बार-बार बदलते रहते हैं, जिसका सीधा नुकसान छोटे उद्योगों को उठाना पड़ता है और वे पिछड़ जाते हैं।
विपक्ष का सरकार पर हमला: ‘नीतियों ने तोड़ी कमर’
गुजरात कांग्रेस के प्रवक्ता पार्थिवसिंह काठवाडिया ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरते हुए वाइब्स ऑफ़ इंडिया से कहा कि छोटे उद्योग गलत नीतिगत फैसलों की वजह से बर्बाद हो रहे हैं। उन्होंने एक महत्वपूर्ण मुद्दे की ओर इशारा करते हुए कहा, “जब विदेशों से उत्पाद आयात (Import) किए जाते हैं, तो उन पर से इंपोर्ट ड्यूटी हटा दी जाती है, लेकिन यहां स्थानीय स्तर पर बनने वाले उत्पादों पर जीएसटी (GST) लगा दिया जाता है। इससे छोटे और मध्यम उद्योग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।”
काठवाडिया ने तुलना करते हुए कहा कि कांग्रेस के शासनकाल में छोटे और मध्यम उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए बड़ी संख्या में GIDC (गुजरात औद्योगिक विकास निगम) की स्थापना की गई थी। इसकी तुलना में बीजेपी के कार्यकाल में स्थापित GIDC की संख्या को देखा जाना चाहिए।
उन्होंने अंत में यह भी जोर दिया कि सरकार को यह पता लगाना चाहिए कि छोटे उद्योगों में वे कौन से विशिष्ट सेक्टर्स हैं, जिन्हें सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है और जो बंद होने की कगार पर हैं।
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