अहमदाबाद: गुजरात के कपड़ा उद्योग (टेक्सटाइल इंडस्ट्री) के लिए बीता महीना हाल के समय का सबसे चुनौतीपूर्ण दौर साबित हुआ है। ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि अमेरिका द्वारा लगाए गए नए आयात शुल्क (टैरिफ) के कारण निर्यात में भारी गिरावट आई है। इस झटके ने राज्य की टेक्सटाइल वैल्यू चेन को बुरी तरह प्रभावित किया है।
निर्यात के आंकड़ों में चिंताजनक गिरावट
कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री (CITI) द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर 2025 में भारत के टेक्सटाइल निर्यात में साल-दर-साल (Year-on-Year) 12.9% की गिरावट दर्ज की गई है। इसी तरह, गारमेंट या परिधान निर्यात भी 12.88% तक लुढ़क गया। अगर कुल मिलाकर देखें, तो टेक्सटाइल और परिधान क्षेत्र में 12.91% की बड़ी गिरावट आई है।
हालांकि, अप्रैल से अक्टूबर तक के कुल आंकड़ों पर नजर डालें तो गिरावट थोड़ी कम यानी 1.6% है, लेकिन अक्टूबर वह महीना बन गया है जहां टैरिफ के झटके का सबसे ज्यादा असर गुजरात के निर्यातकों पर दिखाई दिया है।
टैरिफ में बढ़ोतरी और उसका असर
अमेरिका ने 1 अगस्त को भारतीय मूल के सभी सामानों पर 25% का टैरिफ लगाया था, जिसे 27 अगस्त से बढ़ाकर सीधा 50% कर दिया गया। हालांकि, दोनों देश फिलहाल एक द्विपक्षीय व्यापार समझौते (Bilateral Trade Agreement) पर बातचीत कर रहे हैं, लेकिन बढ़ी हुई दरों ने उद्योग की कमर तोड़ दी है। गौरतलब है कि भारत के कुल टेक्सटाइल शिपमेंट का लगभग 30% हिस्सा अमेरिका को ही जाता है।
बड़ी कंपनियों पर वित्तीय दबाव
दिग्गज टेक्सटाइल कंपनी अरविंद लिमिटेड ने अपने दूसरी तिमाही के नतीजों में इस प्रभाव को स्पष्ट किया है। कंपनी के अनुसार, अमेरिकी बाजार से उनका प्रत्यक्ष राजस्व (Direct Revenue Exposure) लगभग 500 करोड़ रुपये है, जो उनकी कुल कमाई का 21% हिस्सा है।
कंपनी ने अपनी इन्वेस्टर प्रेजेंटेशन में बताया, “दूसरी तिमाही में टैरिफ का असर लगभग 23 करोड़ रुपये आंका गया, हालांकि अधिक वॉल्यूम के कारण कुछ हद तक राहत मिली।” कंपनी का अनुमान है कि अमेरिका से जुड़े व्यापार के कुछ हिस्सों पर टैरिफ का असर तिमाही EBITDA पर 25-30 करोड़ रुपये तक पड़ सकता है। (EBITDA का अर्थ है ब्याज, कर, मूल्यह्रास और परिशोधन से पहले की कमाई)।
पुराने ऑर्डर तक थी राहत, अब हालात बिगड़े
गुजरात चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (GCCI) की टेक्सटाइल कमेटी के सह-अध्यक्ष राहुल शाह ने स्थिति की गंभीरता को समझाते हुए कहा, “सितंबर तक जो शिपमेंट जा रहे थे, उनमें से लगभग आधे सुरक्षित थे क्योंकि वे पुराने टैरिफ स्लैब के तहत निकल गए थे। लेकिन अक्टूबर की खेप (consignments) पर बढ़ी हुई दरों की असली मार पड़ी है, जिससे वॉल्यूम में साफ गिरावट देखने को मिल रही है।”
शाह ने कहा कि इस मंदी का असर पूरे इकोसिस्टम पर है—चाहे वह होम टेक्सटाइल हो, टेक्निकल टेक्सटाइल, गारमेंट्स, यार्न या फिर फैब्रिक। ये सभी वो क्षेत्र हैं जिनमें गुजरात का पारंपरिक रूप से दबदबा रहा है।
ऑर्डर कैंसल और मार्जिन पर दबाव
उद्योग जगत के जानकारों के मुताबिक, यार्न और ग्रे फैब्रिक के कई ऑर्डर रद्द कर दिए गए हैं। वहीं, होम टेक्सटाइल सेगमेंट में कई खरीदारों ने अनुबंधों (contracts) को कम कीमतों पर दोबारा निगोशिएट करना शुरू कर दिया है।
राहुल शाह ने चिंता जताते हुए कहा, “मार्जिन पहले से ही काफी कम थे, ऐसे में टैरिफ के कारण लागत बढ़ने से कई निर्यातक प्रतिस्पर्धा से बाहर हो गए हैं।” आम तौर पर कच्चे माल की सस्ती कीमतें निर्यातकों के लिए मददगार होती हैं, लेकिन इस बार अमेरिका जैसे सबसे बड़े बाजार में टैरिफ बढ़ने के कारण यह फायदा भी बेअसर हो गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि जिन सेगमेंट्स में वॉल्यूम बहुत ज्यादा नहीं गिरा है, वहां भी मुनाफे को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है।
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