अहमदाबाद – गुजरात में पेड़ों की हरियाली (ट्री कवर) बीते छह वर्षों में 17% की भारी गिरावट के साथ 8,034 वर्ग किलोमीटर (2015-16) से घटकर 6,632 वर्ग किलोमीटर (2021-22) पर आ गई है। यह जानकारी सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MOSPI) की एक रिपोर्ट में सामने आई है। यह गिरावट उन अन्य औद्योगिक राज्यों के उलट है, जहां इसी अवधि में हरियाली में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई।
महाराष्ट्र ने इस दौरान 47.7% की वृद्धि दर्ज की – 9,831 वर्ग किमी से बढ़कर 14,525 वर्ग किमी। आंध्र प्रदेश में 42.3%, कर्नाटक में 36.1%, तेलंगाना, हरियाणा, और तमिलनाडु में क्रमशः 31.8%, 19.6%, और 15% की वृक्ष आवरण वृद्धि हुई – ये सभी राज्य भी अत्यधिक औद्योगीकृत हैं।
गुजरात वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि राज्य में लंबे समय से पेड़ों की हरियाली में गिरावट देखी जा रही है। 2013 में 8,358 वर्ग किमी से घटकर 2021-22 में 6,632.29 वर्ग किमी रह गई है – यानी 7 वर्षों में 20.65% की गिरावट, जो वन सर्वेक्षण भारत (FSI) 2023 की रिपोर्ट में दर्ज है।
अधिकारी ने बताया, “2019 से 2021 के बीच गिरावट सबसे ज्यादा रही, जब हरियाली 6,912 वर्ग किमी से घटकर 5,489 वर्ग किमी हो गई। इसका बड़ा कारण था आरक्षित वनों और खुली जमीन का औद्योगिक परियोजनाओं, विशेषकर सोलर प्लांट्स के लिए डायवर्जन।”
हालांकि 2021 के बाद स्थिति में कुछ सुधार हुआ है। एफएसआई 2023 रिपोर्ट के अनुसार गुजरात ने पिछली रिपोर्ट की तुलना में सबसे अधिक वृक्ष आवरण वृद्धि दर्ज की। मुख्य प्रधान वन संरक्षक ए.पी. सिंह ने बताया, “गुजरात का वर्तमान ट्री कवर राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का 3.38% है, जो पहले 2.8% था।”
इसके बावजूद, अहमदाबाद शहर राज्य के प्रमुख शहरों में सबसे अधिक हरियाली खोने वाला क्षेत्र बना हुआ है। पर्यावरण विशेषज्ञ इसके पीछे तेजी से हो रहे शहरीकरण और औद्योगिकीकरण को जिम्मेदार मानते हैं।
पर्यावरण इंजीनियर और पर्यावरण मित्र संगठन के निदेशक महेश पंड्या ने कहा:
“गुजरात में पिछले कुछ वर्षों में औद्योगिकीकरण की रफ्तार बेहद तेज रही है। इसके चलते जंगलों की जमीन को उद्योगों के लिए हस्तांतरित कर दिया गया, लेकिन पुनरोपण और हरियाली बढ़ाने के प्रयास उस अनुपात में नहीं हो सके।”
उन्होंने यह भी कहा कि 2021 से 2023 के बीच कुछ सुधार जरूर हुआ, लेकिन पहले हुई क्षति ने गहरा असर डाला। “अब जरूरत है सरकारी दीर्घकालिक योजना की, जिसमें स्थानीय समुदायों की भागीदारी भी सुनिश्चित की जाए।”
पंड्या ने तटीय क्षेत्रों में पारिस्थितिकीय खतरे की भी चेतावनी दी:
“हमारे मैंग्रोव बेल्ट घने नहीं हैं, जो समुद्री तूफानों के समय प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान कर सकें। पहले की उपेक्षा ने तटीय इलाकों को ज्यादा संवेदनशील बना दिया है। चक्रवात की स्थिति में जमीन की ओर प्रभाव गंभीर हो सकता है, जिसमें लवणता प्रवेश (salinity ingress) का खतरा भी बढ़ गया है।”
पर्यावरणविदों का मानना है कि गुजरात सरकार को विकेंद्रीकृत और सतत हरियाली योजना को तुरंत लागू करना चाहिए ताकि जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिकीय संकट से निपटा जा सके।
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