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गुजरात राजस्व न्यायाधिकरण ने सुरेन्द्रनगर की 511 एकड़ ज़मीन को निजी संपत्ति किया घोषित, सरकारी दावे को किया खारिज

| Updated: July 25, 2025 11:57

गुजरात राजस्व न्यायाधिकरण ने 511 एकड़ भूमि को निजी संपत्ति घोषित करते हुए 15 गिरासदार दावेदारों को मालिकाना हक दिया, सरकार का दावा खारिज।

अहमदाबाद: गुजरात राजस्व न्यायाधिकरण (Gujarat Revenue Tribunal) ने एक अहम फैसले में सुरेन्द्रनगर जिले के दासादा तालुका स्थित नवियाणी गांव की 511.13 एकड़ भूमि को निजी संपत्ति घोषित कर दिया है। यह ज़मीन अब तक सरकारी ज़मीन मानी जा रही थी।

यह ज़मीन अहमदाबाद जिले के मंडल तालुका के हंसलपुर गांव से सटी हुई है, जहां मारुति सुज़ुकी का गुजरात प्लांट स्थित है और जो मंडल-बेचराजी विशेष निवेश क्षेत्र (SIR) का हिस्सा है।

न्यायाधिकरण के सदस्य बी.ए. दवे और पी.एस. काला की पीठ ने 15 आवेदकों के पक्ष में निर्णय दिया है, जिन्होंने इस भूमि को पूर्ववर्ती वानोद रियासत की ‘गिरासदार’ संपत्ति बताया था। गिरासदार वे ज़मींदार होते थे, जिन्हें रियासतों द्वारा वंशानुगत रूप से ज़मीन दी जाती थी।

विवाद और कानूनी पृष्ठभूमि

मुख्य आवेदक मैयोद्दीन उर्फ मय्युद्दीन तालेबअलीखानसाहिब और उनके सह-वारिसों ने पहले पाटडी मामलतदार के समक्ष अपना दावा प्रस्तुत किया था, लेकिन जून 2023 में यह याचिका खारिज हो गई। इसके बाद उन्होंने गुजरात राजस्व न्यायाधिकरण में अपील की।

केस के विवरण के अनुसार, उनके पूर्वज अमीर साहेब खानसाहिब नवियाणी गांव में 511 एकड़ गिरासदार भूमि के मालिक थे। यह दावा उन्होंने वानोद रियासत के हिस्सेदार होने के आधार पर किया। उनके गिरास अधिकार 1882 से पहले के हैं। 19 जून 1887 को यह ज़मीन ₹5,000 के बदले गिरवी रखी गई थी, जिसे 21 जनवरी 1992 को दो पंजीकृत दस्तावेजों के माध्यम से मुक्त कर दिया गया। उन्होंने इस ज़मीन को निजी संपत्ति सिद्ध करने के लिए कई ऐतिहासिक व कानूनी दस्तावेज पेश किए।

हालांकि स्वतंत्रता के बाद 1952 में बंबई इनामी उन्मूलन अधिनियम (Inam Abolition Act) लागू होने के बाद अधिकांश गिरास ज़मीनें सरकार में समाहित हो गई थीं, लेकिन इस विवादित ज़मीन के सरकारी स्वामित्व में आने के स्पष्ट दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं।

न्यायाधिकरण और निर्णय

न्यायाधिकरण ने अपने आदेश में कहा:

“कानूनी प्रावधानों और अभिलेखों की जांच के बाद यह स्पष्ट है कि यह ज़मीन इनामी उन्मूलन अधिनियम से पहले सरकारी संपत्ति नहीं थी। इसके लिए सरकार द्वारा कोई मुआवज़ा भी नहीं दिया गया। यदि सरकार ने यह ज़मीन अधिग्रहीत की होती, तो उसके समर्थन में कोई प्रमाण आवश्यक था — जो कि प्रस्तुत नहीं किया गया।”

अदालत ने आगे कहा:

“आवेदकों के पूर्वज वैध रूप से गिरासदार थे, और प्रविष्टि संख्या 142 में दर्ज ज़मीन निजी संपत्ति के रूप में दर्ज है। इस प्रविष्टि को कभी चुनौती नहीं दी गई है, और सरकार आवेदकों के प्रमाणों का खंडन नहीं कर सकी है।”

सर्वे नंबर 403 कुल 1,798.06 एकड़ क्षेत्र में फैला है, जिसे खराबा भूमि यानी गैर-कृषियोग्य ज़मीन के रूप में दर्ज किया गया है। आवेदकों ने इसमें से 511.13 एकड़ क्षेत्र को निजी संपत्ति के रूप में मान्यता देने की मांग की थी, जिसे अब मंज़ूरी मिल गई है।

फैसले के संभावित प्रभाव

यह निर्णय मंडल-बेचराजी SIR जैसे रणनीतिक औद्योगिक क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण और निवेश योजनाओं पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है। इसके अलावा, यह फैसला गुजरात में अन्य गिरासदार दावों के लिए एक कानूनी मिसाल बन सकता है।

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