नई दिल्ली: हम सभी जानते हैं कि शरीर को स्वस्थ रखने के लिए पाचन तंत्र का दुरुस्त होना कितना ज़रूरी है। इसके लिए हमारी आंतों में अच्छे बैक्टीरिया का होना आवश्यक है, जो भोजन से पोषक तत्वों को सोखने और संक्रमण से बचाने में हमारी मदद करते हैं। इन अच्छे बैक्टीरिया को भी पोषण की ज़रूरत होती है, जो उन्हें प्रीबायोटिक्स से मिलता है। प्रीबायोटिक्स एक तरह का फाइबर है जो फलों और सब्ज़ियों में पाया जाता है।
लेकिन, उन लोगों का क्या जो अपने आहार में पर्याप्त मात्रा में फाइबर नहीं ले पाते? इसी समस्या का समाधान गुजरात बायोटेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी (GBU) के शोधकर्ताओं ने ढूंढ निकाला है। उन्होंने फलों, खासकर संतरे के छिलकों से एक ऐसा प्रीबायोटिक सप्लीमेंट तैयार किया है, जो हमारे पेट के अच्छे दोस्तों यानी बैक्टीरिया को पोषण देगा। उम्मीद है कि यह प्रोडक्ट जल्द ही भारतीय बाज़ार में उपलब्ध होगा।
चार साल की मेहनत का नतीजा
GBU के वैज्ञानिकों ने चार साल की लंबी रिसर्च के बाद 11 पेक्टिक ओलिगोसेकेराइड्स (एक तरह का जटिल कार्बोहाइड्रेट) का एक अनूठा मिश्रण तैयार किया है। इसके लिए उन्होंने किन्नू (एक प्रकार का संतरा) के छिलकों का इस्तेमाल किया, जिसमें पेक्टिन नाम का प्राकृतिक घुलनशील फाइबर भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इस महत्वपूर्ण शोध को अगस्त में प्रतिष्ठित ‘एल्सवियर जर्नल’ में प्रकाशित किया गया था।
शोधकर्ताओं ने इस खोज के लिए एक प्रोविजनल पेटेंट भी फाइल कर दिया है। उन्होंने बताया कि इस सप्लीमेंट को एक एंजाइम की मदद से और बेहतर बनाकर पाउडर का रूप दिया गया है। सिर्फ 21 दिनों तक रोजाना चार ग्राम इस पाउडर का सेवन करने से आंत में अच्छे बैक्टीरिया की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।
आखिर किन्नू के छिलके ही क्यों?
इस शोधपत्र के लेखक डॉ. रविंद्र पाल सिंह ने बताया कि उन्होंने किन्नू का चुनाव इसलिए किया क्योंकि यह पंजाब में उनके रिसर्च साइट के पास बड़ी मात्रा में उपलब्ध था।
उन्होंने कहा, “हमने इस उत्पाद को विकसित करने के लिए पंजाब के मोहाली में स्थित मौली बैदवान गांव के एक स्थानीय फल विक्रेता से खरीदे गए लगभग 50 किलोग्राम किन्नू के छिलकों का उपयोग किया।”
उन्होंने यह भी बताया कि अगर वे महाराष्ट्र में यह शोध कर रहे होते, तो शायद नागपुर के संतरे का इस्तेमाल करते।
रिसर्च की प्रक्रिया के बारे में बताते हुए डॉ. सिंह ने कहा, “हमने पहले छिलकों से पेक्टिन निकाला और फिर विभिन्न रासायनिक और एंजाइमेटिक तरीकों का उपयोग करके इसे एक खास पेक्टिक-ओलिगोसेकेराइड (POS) में बदल दिया। इसके बाद, हमने एक 30 वर्षीय स्वस्थ व्यक्ति के मल के नमूने पर इसका परीक्षण किया, जिसे पिछले छह महीनों में कोई बीमारी नहीं थी और न ही उसने कोई एंटीबायोटिक ली थी। हमने नमूने में यह सप्लीमेंट मिलाया और क्वांटिटेटिव रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन (RTQ-PCR) तकनीक से जांच की, जिसमें पाया गया कि अच्छे बैक्टीरिया की संख्या वाकई बढ़ गई थी।”
किसे मिलेगा इस सप्लीमेंट से फायदा?
यह सप्लीमेंट उन लोगों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद हो सकता है जो लंबे समय से एंटीबायोटिक्स का सेवन कर रहे हैं और अपनी आंत के स्वास्थ्य को फिर से पटरी पर लाना चाहते हैं। डॉ. सिंह का कहना है, “जब मरीज़ अपने भोजन में फाइबर की पर्याप्त मात्रा नहीं ले पाते, तो हमारे डॉक्टर और डाइटिशियन उन्हें इस तरह के उत्पाद की सलाह दे सकते हैं।”
एक और खास बात यह है कि यह सप्लीमेंट पूरी तरह से शुगर-फ्री है। शोधकर्ताओं ने एक एंजाइमेटिक प्रक्रिया के जरिए इसमें से ग्लूकोज मोनोसेकेराइड को हटा दिया है। डॉ. सिंह ने साफ किया, “इस सप्लीमेंट में बिल्कुल भी ग्लूकोज नहीं है, ताकि डायबिटीज या मोटापे से पीड़ित लोग भी इसका सुरक्षित रूप से सेवन कर सकें।”
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