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गुजरात: 67 लाख वोटर्स को बिना सही जांच के लिस्ट में जोड़ा गया? कांग्रेस ने SIR प्रक्रिया पर उठाए गंभीर सवाल

| Updated: November 27, 2025 14:03

अमित चावड़ा ने चुनाव आयोग से की समय सीमा फरवरी 2026 तक बढ़ाने की मांग, आदिवासी वोटर्स के पलायन और BLO पर दबाव का दिया हवाला।

गांधीनगर/अहमदाबाद: गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी (GPCC) ने राज्य में चल रही मतदाता सूची विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। कांग्रेस ने चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर आपत्ति जताते हुए आरोप लगाया है कि बिना उचित सत्यापन (Verification) के लाखों नाम मतदाता सूची में शामिल किए गए हैं।

बिना सबूत 67 लाख नए नाम जोड़ने का आरोप

GPCC अध्यक्ष अमित चावड़ा ने बुधवार को राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) हरीत शुक्ला को एक पत्र लिखकर अपनी चिंताएं व्यक्त कीं। चावड़ा ने आरोप लगाया कि वर्ष 2002 की मतदाता सूची में जो लोग शामिल नहीं थे, ऐसे लगभग 67 लाख मतदाताओं को अब बिना पर्याप्त जांच-पड़ताल के सूची में जोड़ दिया गया है।

चावड़ा ने अपने पत्र में कहा, “मतदाता सूची तैयार करने में हालिया घटनाक्रम बेहद चिंताजनक है। जानकारी के मुताबिक, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of Peoples Act) और उसके नियमों का कड़ाई से पालन नहीं किया जा रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि कानून की उचित प्रक्रिया के बिना ही ये नाम जोड़े गए हैं।”

कांग्रेस ने मांग की है कि इन सभी 67 लाख नामों को फिलहाल ठंडे बस्ते (Abeyance) में रखा जाए और दस्तावेजी सबूतों के साथ दोबारा सत्यापन करने के बाद ही उन्हें अंतिम सूची में शामिल किया जाए।

बीएलओ पर दबाव और समय सीमा बढ़ाने की मांग

जमीनी स्तर पर आ रही दिक्कतों का जिक्र करते हुए अमित चावड़ा ने कहा कि बीएलओ (BLO) को काम पूरा करने के लिए बहुत कम समय दिया गया है, जिससे अफरा-तफरी का माहौल है। उन्होंने कहा, “जल्दबाजी के कारण कई जगहों पर बीएलओ ने मतदाताओं के मूल हस्ताक्षर लिए बिना ही एन्यूमरेशन फॉर्म (Enumeration Form) अपलोड कर दिए हैं।”

कांग्रेस ने मांग की है कि मतदाता सूची तैयार करने की समय सीमा को बढ़ाकर फरवरी 2026 के अंत तक किया जाना चाहिए। पार्टी का तर्क है कि इससे मौजूदा बीएलओ पर दबाव कम होगा, मतदाता सूची की गुणवत्ता सुधरेगी और यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के हित में होगा।

आदिवासी क्षेत्रों में पलायन और वोटिंग अधिकार का खतरा

एक तरफ चुनाव अधिकारी कार्यालय ने जानकारी दी कि डांग जिले में सबसे अधिक 85.53 प्रतिशत डिजिटलीकरण दर्ज किया गया है, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने आदिवासी बहुल इलाकों की जमीनी हकीकत कुछ और बताई है।

अमित चावड़ा ने तर्क दिया कि आदिवासी क्षेत्रों के निवासी आजीविका की तलाश में अपने घरों से दूर हैं। उन्होंने कहा, “व्यारा, कपराडा, डांग, छोटा उदेपुर, साबरकांठा के पोशिना, खेड़ब्रह्मा और विजयनगर जैसे इलाकों से बड़ी संख्या में लोगों ने रोजगार के लिए पलायन किया है। गरीबी और अशिक्षा के कारण ये लोग अपने मताधिकार से वंचित न रह जाएं, इसके लिए समय सीमा बढ़ाना बेहद जरूरी है।”

प्रक्रियात्मक खामियों की शिकायतें

कांग्रेस ने यह भी आरोप लगाया कि अधिकारियों द्वारा बीएलओ को स्पष्ट निर्देश नहीं दिए गए हैं, जिसके चलते वे अपनी सुविधानुसार काम कर रहे हैं। पार्टी को गुजरात के अलग-अलग हिस्सों से कई शिकायतें मिली हैं कि बीएलओ द्वारा लोगों को ‘एन्यूमरेशन फॉर्म’ की दूसरी कॉपी (Second Copy) नहीं दी जा रही है, जो कि प्रक्रिया का उल्लंघन है।

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