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गुजरात: आर्थिक तरक्की के बीच स्वास्थ्य की चिंताजनक तस्वीर; 65% महिलाएं खून की कमी का शिकार

| Updated: November 26, 2025 14:06

NFHS के आंकड़ों ने चौंकाया: 15 साल में सुधरने के बजाय बिगड़े हालात, राष्ट्रीय औसत से भी पिछड़ा राज्य; अब चिंतन शिविर में स्वास्थ्य संकट पर होगा मंथन।

गांधीनगर: गुजरात, जिसे देश का औद्योगिक और आर्थिक पावरहाउस माना जाता है, वहां स्वास्थ्य के मोर्चे पर एक बेहद चिंताजनक तस्वीर सामने आई है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) के ताजा आंकड़ों ने राज्य में महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर खतरे की घंटी बजा दी है। पिछले 15 वर्षों में राज्य में 15 से 49 वर्ष की महिलाओं के बीच एनीमिया (खून की कमी) के मामलों में भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

आगामी 28 से 30 नवंबर तक आयोजित होने वाले ‘चिंतन शिविर’ में इस गिरते स्वास्थ्य ग्राफ पर गंभीरता से चर्चा की जाएगी।

आंकड़ों में देखें गिरता हुआ स्तर

NFHS-5 (2019-21) के नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि गुजरात में प्रजनन आयु (15-49 वर्ष) की 65% महिलाएं एनीमिया से प्रभावित हैं। यह आंकड़ा NFHS-3 (2005-06) के मुकाबले काफी ज्यादा है, तब यह संख्या 55% थी।

हैरानी की बात यह है कि गुजरात की स्थिति अब राष्ट्रीय औसत (57%) से भी खराब हो गई है। एनीमिया के प्रसार के मामले में राज्य की रैंकिंग पूरे देश में 10वें स्थान से फिसलकर 16वें स्थान पर आ गई है। राज्य के स्वास्थ्य अधिकारियों ने भी स्वीकार किया है कि औद्योगिक विकास के बावजूद, गुजरात स्टंटिंग (ठिगनापन), वेस्टिंग (दुबलापन) और कम वजन जैसी बाल कुपोषण समस्याओं से जूझ रहा है।

बच्चे और गर्भवती महिलाएं सबसे ज्यादा प्रभावित

चिंतन शिविर के लिए तैयार की गई सरकारी रिपोर्ट में एनीमिया के बढ़ते ग्राफ को लेकर विस्तृत जानकारी दी गई है। 2015-16 और 2019-21 के बीच के तुलनात्मक आंकड़े बताते हैं:

  • बच्चे (6 से 59 महीने): एनीमिया 62.6% से बढ़कर 79.7% हो गया है।
  • किशोरियां (15-19 वर्ष): आंकड़ा 56.5% से बढ़कर 69% पर पहुंच गया है।
  • गर्भवती महिलाएं: इनमें खून की कमी के मामले 51.3% से बढ़कर 62.6% हो गए हैं।

रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि ये आंकड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा निर्धारित सीमा से कहीं ज्यादा हैं और यह एक ‘गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या’ बन चुकी है। इसका मुख्य कारण आयरन की खुराक में कमी और खराब खान-पान की आदतें बताई गई हैं।

पोषक तत्वों की भारी कमी: 2024 की स्टडी

राज्य स्वास्थ्य विभाग और एम्स (AIIMS) राजकोट द्वारा 2024 में किए गए एक संयुक्त अध्ययन में पाया गया कि एनीमिया से पीड़ित 58% किशोरियों और 55% गर्भवती महिलाओं में माइक्रोन्यूट्रिएंट्स (सूक्ष्म पोषक तत्वों) की कमी है। विशेषज्ञों ने केवल विशिष्ट खाद्य पदार्थों पर निर्भर रहने के बजाय संतुलित आहार पर जोर देने की सलाह दी है, ताकि ICMR-NIN की सिफारिशों के अनुसार पर्याप्त आयरन मिल सके।

विशेषज्ञों की राय

इस समस्या से निपटने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। IIPH गांधीनगर के प्रोफेसर सोमेन साहा का कहना है, “एनीमिया के लगभग 40% मामले माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी के कारण होते हैं। क्षेत्र-विशिष्ट पोषण के रुझानों को समझने के लिए एक राज्यव्यापी सर्वेक्षण बहुत जरूरी है।”

वहीं, वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. वंदना सिन्हा ने जागरूकता की कमी को एक बड़ा कारण बताया। उन्होंने कहा, “अक्सर गर्भावस्था की जांच के दौरान ही एनीमिया का पता चलता है। महिलाओं में आहार संबंधी आवश्यकताओं को लेकर जागरूकता बहुत कम है, जबकि जीवन भर संतुलित आहार बनाए रखना बेहद महत्वपूर्ण है।”

चिंतन शिविर में होने वाली चर्चाओं का उद्देश्य इन्हीं चुनौतियों का समाधान खोजना और गुजरात की आबादी के पोषण स्तर को सुधारने के लिए ठोस रणनीति तैयार करना होगा।

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