नई दिल्ली: अमेरिका में 34 साल बिताने के बाद, 73 वर्षीय हरजीत कौर को वापस भारत भेज दिया गया है। यह मामला सिर्फ एक निर्वासन का नहीं, बल्कि इसके पीछे छिपी अमानवीयता की दर्दनाक कहानी का है। हरजीत के वकील का आरोप है कि उन्हें लंबे समय तक जंजीरों में बांधकर रखा गया, कंक्रीट की कोठरी में बंद किया गया और अपने परिवार से आखिरी बार मिलने तक नहीं दिया गया।
यह कहानी 1991 में शुरू हुई थी, जब हरजीत कौर एक अकेली माँ के रूप में अपने दो बेटों के बेहतर भविष्य के लिए अमेरिका पहुँची थीं। पति की मृत्यु के बाद, वह पंजाब के उस समय के अशांत राजनीतिक माहौल से अपने बच्चों को बचाना चाहती थीं।
अमेरिका में उन्होंने एक साड़ी की दुकान में दर्जी का काम करके अपना जीवन चलाया, ईमानदारी से टैक्स चुकाया और गुरुद्वारों में निस्वार्थ सेवा भी की। इस दौरान उन्होंने शरण के लिए आवेदन किया, लेकिन उनकी याचिका खारिज कर दी गई।
अब, तीन दशकों के बाद, उन्हें अचानक देश छोड़ने का फरमान सुना दिया गया। उनके वकील, दीपक आहलूवालिया ने सोशल मीडिया पर इस पूरी प्रक्रिया को “अमानवीय” करार दिया।
उन्होंने बताया कि हरजीत कौर को 23 सितंबर को दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतारा गया। उन्हें रविवार की रात अचानक बेकर्सफील्ड से लॉस एंजिल्स ले जाया गया, और वहाँ से अमेरिकी अप्रवासन और सीमा शुल्क प्रवर्तन (ICE) द्वारा एक चार्टर्ड उड़ान में जॉर्जिया, फिर आर्मेनिया और अंत में नई दिल्ली भेज दिया गया।
आहलूवालिया के अनुसार, परिवार ने अधिकारियों से केवल दो साधारण मांगें की थीं: “पहली, उन्हें एक कमर्शियल फ्लाइट से भेजा जाए, और दूसरी, उन्हें कुछ घंटों के लिए अपने परिवार से मिलने दिया जाए।” लेकिन अधिकारियों ने दोनों ही मांगों को ठुकरा दिया।
यह मामला इस साल अमेरिका द्वारा भारतीयों के निर्वासन की बढ़ती लहर में सबसे नया और चर्चित मामला बन गया है।
विदेश मंत्रालय के अनुसार, जनवरी 2025 में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत के बाद से, जुलाई के अंत तक कम से कम 1,703 भारतीय नागरिकों को अमेरिका से निर्वासित किया जा चुका है। इनमें से 90 प्रतिशत से अधिक मामले सिर्फ पाँच राज्यों से हैं: पंजाब (620), हरियाणा (604), गुजरात (245), उत्तर प्रदेश (38), और गोवा (26)।
हरजीत कौर की मुश्किलें 8 सितंबर को शुरू हुईं, जब वह सैन फ्रांसिस्को में ICE कार्यालय में अपनी नियमित पेशी के लिए गई थीं। वहाँ उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और दो सप्ताह तक फ्रेस्नो और बेकर्सफील्ड के हिरासत केंद्रों में रखा गया। परिवार का आरोप है कि इस दौरान उन्हें उच्च रक्तचाप और मधुमेह की निर्धारित दवाएं भी नियमित रूप से नहीं दी गईं।
अमेरिका स्थित मानवाधिकार संस्था, ‘द सिख कोएलिशन’ ने इस मामले को उठाते हुए ICE के व्यवहार को “अस्वीकार्य” बताया है। संगठन का कहना है कि एक बुजुर्ग विधवा के साथ ऐसा सलूक बेहद निंदनीय है।
हालांकि हरजीत की शरण याचिका 2005 में ही खारिज हो गई थी और 2012 में उनकी अंतिम अपील भी नामंजूर कर दी गई थी, फिर भी पिछले 13 वर्षों से वह ICE के सभी नियमों का पालन कर रही थीं। वह हर साल अपनी उपस्थिति दर्ज करातीं और अपना वर्क परमिट भी नवीनीकृत कराती रहीं।
उनकी अचानक गिरफ्तारी और निर्वासन के खिलाफ कैलिफोर्निया में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। सैकड़ों लोगों ने “हमारी दादी को अकेला छोड़ दो” और “हरजीत कौर यहीं की हैं” जैसे नारों वाली तख्तियों के साथ रैलियां निकालीं। कांग्रेसी जॉन गारमेंडी और कैलिफोर्निया के सीनेटर जेसी अरेगुइन जैसे स्थानीय नेताओं ने भी ICE से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया था।
वहीं, ICE ने अपनी कार्रवाई का बचाव करते हुए कहा कि कौर ने नौवें सर्किट कोर्ट ऑफ अपील्स तक अपनी सभी कानूनी अपीलें दायर कीं और हर बार हार गईं। एजेंसी के मुताबिक, “अब जब उन्होंने सभी कानूनी रास्ते खो दिए हैं, तो ICE अमेरिकी कानून और न्यायाधीश के आदेशों को लागू कर रहा है।”
लेकिन मानवाधिकार समूहों का तर्क है कि यह मामला ट्रम्प प्रशासन के तहत बढ़े निर्वासन की मानवीय कीमत को उजागर करता है। ‘द सिख कोएलिशन’ ने अपने एक बयान में कहा, “यह निर्वासन सिर्फ एक दादी के बारे में नहीं है। यह उन अप्रवासी परिवारों पर होने वाली व्यवस्थागत क्रूरता के बारे में है, जो दशकों से अमेरिका में रह रहे हैं, काम कर रहे हैं और अपने समुदायों की सेवा कर रहे हैं।”
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