नई दिल्ली: देश के सबसे शक्तिशाली संचार इकोसिस्टम में मची हलचल के बीच एक बड़ी खबर सामने आई है। प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) में विशेष कर्तव्य अधिकारी (OSD – संचार और सूचना प्रौद्योगिकी) और संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी हिरेन जोशी एक बार फिर डिजिटल दुनिया और मीडिया के संपर्क सूत्रों में लौट आए हैं। उनकी संदिग्ध ‘अनुपस्थिति’ और उसके बाद प्रसार भारती के चेयरमैन के अचानक इस्तीफे ने सत्ता के गलियारों में कई सवालों को जन्म दे दिया था।
अचानक ‘गायब’ होने के बाद फिर से एंट्री
हिरेन जोशी, जो 2019 से देश के सबसे पावरफुल ऑफिस का अहम हिस्सा रहे हैं, बड़े पत्रकारों के व्हॉट्सऐप फीड में एक स्थायी उपस्थिति माने जाते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स और कई पत्रकारों के अनुसार, वे अक्सर हेडलाइंस की दिशा तय करने और कवरेज के तरीके को लेकर निर्देश देते रहे हैं।
लेकिन, 12 अक्टूबर, 2025 के बाद से अचानक उनकी तरफ से व्हॉट्सऐप संदेश आने बंद हो गए थे। कुछ पत्रकारों का दावा है कि 24 नवंबर के बाद तो निर्देश मिलना पूरी तरह बंद हो गया था और ऐसा लगा कि वे ग्रुप्स से बाहर हो गए हैं।
बिना किसी मेमो या आधिकारिक अधिसूचना के, उनका मीडिया से संपर्क तोड़ना उनकी कार्यशैली के विपरीत था। अब, वे व्हॉट्सऐप ग्रुप्स में वापस जुड़ गए हैं, जिससे अटकलों का एक नया दौर शुरू हो गया है।
विपक्ष के सवाल और सोशल मीडिया पर चर्चा
जोशी की गैरमौजूदगी को लेकर सोशल मीडिया पर तरह-तरह की चर्चाएं गर्म थीं। इसी बीच, 3 दिसंबर को कांग्रेस नेता और प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कुछ तीखे सवाल उठाए। खेड़ा ने आरोप लगाया कि जोशी ने “भारतीय लोकतंत्र का गला घोंटने” में अहम भूमिका निभाई है।
उन्होंने पूछा, “जोशी के लॉ कमीशन वाले सहयोगी को बिना किसी सम्मान के जाने और घर खाली करने के लिए क्यों कहा गया? उनके बिजनेस पार्टनर कौन हैं? भारत को यह जानने का अधिकार है।”
खेड़ा ने सोशल मीडिया पर चल रही उन चर्चाओं का हवाला दिया जिनमें जोशी के विदेशी दौरों और संभावित व्यावसायिक संबंधों की बात हो रही थी।
दिलचस्प बात यह है कि एक ऑनलाइन न्यूज़ आउटलेट ने इस प्रेस कॉन्फ्रेंस पर आधारित अपने आर्टिकल को हटा दिया है।
कौन हैं हिरेन जोशी?
‘ओपन मैगजीन’ के मुताबिक, “हिरेन जोशी सिर्फ मोदी के इकोसिस्टम का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि वे उस इकोसिस्टम के मदरबोर्ड हैं। वे पीएम के पॉइंट पर्सन हैं, जिन्होंने न केवल डिजिटल रणनीति पर सलाह दी, बल्कि पूरे ‘नमो’ (NaMo) ऑनलाइन यूनिवर्स को शून्य से खड़ा किया।”
पुणे से इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर और ग्वालियर स्थित ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट’ से पीएचडी करने वाले जोशी के पास शिक्षण का लंबा अनुभव है।
वे भीलवाड़ा के माणिक्य लाल वर्मा टेक्सटाइल एंड इंजीनियरिंग कॉलेज में 18 साल से अधिक समय तक पढ़ा रहे थे। 2008 में, जब उन्होंने एक कार्यक्रम में आई तकनीकी खराबी को ठीक किया, तो तत्कालीन गुजरात मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की नजर उन पर पड़ी और वे मोदी की टीम का हिस्सा बन गए।
इस्तीफों का दौर और गहराता रहस्य
जोशी की वापसी की खबरों के समानांतर, पूर्व वरिष्ठ आईएएस अधिकारी नवनीत सहगल का प्रसार भारती के चेयरमैन पद से अचानक इस्तीफा देना एक और महत्वपूर्ण घटनाक्रम है। सहगल ने अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा होने से बहुत पहले, महज 20 महीनों में ही पद छोड़ दिया और उनका इस्तीफा 24 घंटे के भीतर स्वीकार भी कर लिया गया।
सहगल का जाना मोदी सरकार की अपारदर्शी संचार मशीनरी में एक और बड़े बदलाव की ओर इशारा करता है। यह सवाल उठाया जा रहा है कि क्या उनका एग्जिट जोशी की ‘अनुपस्थिति’ से किसी तरह जुड़ा था?
यह सर्वविदित है कि मोदी सरकार में कई अहम नियुक्तियों का अंत अप्रत्याशित रहा है। चाहे वह वित्त सचिव एस.सी. गर्ग हों, आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल, या फिर चुनाव आयुक्त अशोक लवासा और आम चुनावों से ठीक पहले अरुण गोयल का इस्तीफा—इन सभी के पीछे अक्सर “निजी कारणों” का हवाला दिया गया। लेख में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के “अचानक एग्जिट” का भी जिक्र है, जिसके पूर्ण तथ्य सामने आने अभी बाकी हैं।
क्या संसद सत्र बना वापसी की वजह?
हिरेन जोशी अब वापस आ चुके हैं, लेकिन उनके संक्षिप्त ‘वनवास’ के बारे में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है। वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने इस पर चुटकी लेते हुए पूछा है कि क्या उन्हें “धनखड़” (Dhankhared) कर दिया गया था?
वहीं, विश्लेषकों का मानना है कि संसद सत्र जारी होने के कारण प्रमुख विपक्षी दल इस मुद्दे पर जिस तरह की रुचि दिखा रहा था, शायद उसी दबाव के चलते उन्हें चुपचाप वापस लाया गया है।
उक्त आर्टिकल मूल रूप से द वायर वेबसाइट द्वारा प्रकाशित किया जा चुका है.
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